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गणगौर माता से पति की लंबी उम्र ओर खुशहाली के लिए करेगी मातृशक्ति प्रार्थना

इंदौर Published by: सोनाली जोशी, संगीता पालीवाल, संगीता जो Updated Mon, 19 Mar 2018 04:09 AM
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इंदौर। हिन्दू समाज में चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल स्त्रियों के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। स्त्रियाँ नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं। पालीवाल एवं मेनारिया ब्राह्मण समाज (24, 44, 52) श्रेणी इंदौर की मातृशक्तियों में मीना पालीवाल, सोनाली जोशी, भावना जोशी, रेखा पुरोहित ने पालीवाल वाणी को बताया कि गणगौर पर्व मूलतः राजस्थान की मेवाड़-मारवाड़ी संस्कृति का परिचायक है। बरसों पहले राजस्थान से ही मातृशक्तियां गणगौर माता की पूजन चलन शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक यह चला आ रहा है। विवाहित स्त्रियां सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत करती है। इसमें मातृशक्तियां गणगौर माता का पूजन करती है। बाग-बगीचे, धर्मशाला, घर-परिवार में अपनी सहेलियों के साथ मिलकर हंसी ठिठौली करने के साथ ही 16 दिनों तक भव्य रूप से मातृशक्तियां गणगौर माता की पूजा-अर्चना करती है।

मातृशक्ति में गणगौर माता के प्रति श्रद्धा और आस्था कायम

मेनारिया ब्राह्मण समाज महिला मंड़ल 52 श्रेणी इंदौर से पूजा जोशी, संगीता जोशी ने पालीवाल वाणी को बताया कि पहले की तरह आज भी व्रत को लेकर आस्था और श्रद्धा कायम है। विवाह के पहले साल युवतियां अपने पीहर में आकर व्रत मनाती है। 16 दिनों तक उत्साह का माहौल रहता है। शाम को सहेलियों के साथ बगीचे में जाकर मौज-मस्ती करती है। मंजू पुरोहित, कविता पालीवाल ने बताया कि पालीवाल समाज का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस पर्व का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। जो पुराने गीत चल रहे हैं उन्हीं को महिलाओं द्वारा गाया जाता है। नए गीत नहीं लिखे जाते। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाती है।

 माता पार्वती अपने पीहर आती है शिवरात्रि के बाद

श्री पालीवाल 24 श्रेणी इंदौर की ममता जोशी, रेखा पुरोहित, कुसुम जोशी, मंजु जोशी, भावना जोशी, वंदना पुरोहित, जमनाबाई पुरोहित आदि मातृशक्तियों ने पालीवाल वाणी को चर्चा में बताया कि मूलतः राजस्थान का पर्व है। ऐसा माना जाता है कि शिवरात्रि के बाद माता पार्वती अपने पीहर आती है। उसी प्रतीक के रूप में पर्व मनाया जाता है। सभी विवाहित महिलाएं फूल, पत्ती व द्रुप लेकर बगीचे में जाती है जहाँ गणगौर का पूजन होता है। यहाँ मेहंदी, हल्दी, जवारे, चुनड़ी के साथ सुहाग के गीत गाए जाते हैं। पश्चात कहानी सुनाई जाती है।

तेजी से बढ़ रहा है गणगौर माता का पर्व  

आजकल की पढ़ी-लिखी यु‍वतियां भी पूरे उत्साह से पर्व को मनाती है। पालीवाल समाज 44 श्रेणी इंदौर की अनिता व्यास, भावना बागोरा, चंचल पुरोहित, भावना जोशी, प्रिया जोशी, यामिनी जोशी सहित कई मातृशक्यिों ने पालीवाल वाणी को चर्चा में आगे बताया कि समय के साथ गणगौर पर्व का उत्साह भी बढ़ता जा रहा है। खासकर सुहागिन महिलाएं सज धजकर आकर्षक श्रृंगार करती है तथा सहेलियों के साथ 16 दिनों तक मौज-मस्ती करती है। धार्मिक महत्व के अनुसार 16 दिनों तक घर में तरह तरह के पकवान बनाए जाते हैं।

गणगौर माता की वंदना

# गौर गौर गणपति, ईसर पूजे पार्वती,पार्वती के आला टिका, गौर के सोने का टिका,
माथे है रोली का टिका, टिका दे चमका दे राजा राजना वरत करे।
# हल्दी गांठ गठीली ईसर राज की
ब्रह्मदास की बहू है हठीली,
मांगी सोना री बिंदी, बिंदी बेच घड़ाई बई पारो झमकाई।
# ऊंचो चोड्यो चोखण नो जल, जमुना रो नीर मंगावो जी राज, जखे ईश्वर तापेड़ियां बाकी राण्या ने गौर पूजाओ जी राज।
गौर पूजन ता लूकेबे शायह या जोड़ी अबछल रखो जी राज,
सदाचल राखो जी राज।
# गौर ए गणगौर माता खोलए किवाड़ी
बाहर ऊबी थारी पूजण वाली।
# पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
# ईशरदास जी बीरो चूनड़ी रंगाई बाई रोवां के दाय नहीं आई रे
नीलगर ओज्यूँ रंग दे म्हारी चुनड़ी
गणगौर के दौरान सभी महिलाएं बगीचे में एकत्र होकर गीत गाती है। ऊपर लिखे कुछ गीतों के मुखड़े का यही अर्थ है कि पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं गणगौर माता से प्रार्थना करेगी ओर महिलाएं कहती है कि माता हमारी जोड़ी सदा बनी रहे।

पालीवाल वाणी ब्यूरो- सोनाली जोशी, संगीता पालीवाल, संगीता जोशी
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