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चाइल्ड पोर्न डाउनलोड करना और देखना POCSO अपराध है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट आज देगा फैसला

दिल्ली Published by: paliwalwani Updated Mon, 23 Sep 2024 12:54 AM
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चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अपराध नहीं : मद्रास हाई कोर्ट

नई दिल्ली. पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना POCSO और ITअधिनियम के तहत अपराध है या नहीं. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट सोमवार 23 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगा. 19 अप्रैल को मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिसके बाद अब कोर्ट सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाएगा

दरअसल मद्रास हाई कोर्ट का कहना था कि सिर्फ किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या उसे देखना कोई जुर्म नहीं है. POCSO अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत ये अपराध की श्रेणी में नहीं आता है.हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ NGO जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन एलायंस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की थी. इस दौरान ने कहा था कि बच्चे का पोर्न देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन बच्चे का पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाना ये अपराध होगा.CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि किसी से वीडियो का मिलना POSCO धारा 15 का उल्लंघन नहीं है, लेकिन अगर आप इसे देखते है और दूसरों को भेजते हैं तो ये कानून का उल्लंघन है.

सीजेआई ने कहा था कि सिर्फ इसलिए वो अपराधी नहीं हो जाता कि उसे वीडियो किसी ने भेज दिया है. पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है. वहीं मद्रास हाई कोर्ट का कहना है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अपराध नहीं है. हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने के आरोप में 28 साल के एक शख्स के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.

एनजीओ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस ने वकील एचएस फुल्का के जरिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. एनजीओ का कहना था कि इससे बाल अश्लीलता को बढ़ावा मिलेगा. याचिका में कहा गया था कि आम लोगों को यह धारणा दी गई है कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और इसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है, इससे बाल पोर्नोग्राफी की मांग बढ़ेगी, लोगबच्चों को पोर्नोग्राफी में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.

वकील एचएस फुल्का ने कहा कि अधिनियम कहता है कि अगर कोई वीडियो या फोटो है तो उसे हटाना होगा, जबकि आरोपी लगातार वीडियो देख रहे थे. वहीं जब आरोपी के वकील ने वीडियो के ऑटोडाउनलोड होने की बात कोर्ट में कही तो CJI ने सवाल किया कि आपको कैसे पता नहीं चलेगा कि ये वीडियो आपके फोन में है. आपको पता होना चाहिए कि अधिनियम में संशोधन के बाद ये भी अपराध हो गया है.

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