नई दिल्ली : आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने कहा कि रेवडि़यां कभी भी 'मुफ्त' नहीं होती हैं और जब राजनीतिक दल ऐसी योजनाओं का एलान करते हैं तो उन्हें मतदाताओं को उनके वित्त पोषण सहित अन्य पहलुओं के बारे में बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुफ्त उपहारों की घोषणा के साथ इन जानकारियों को जोड़ने से लोकलुभावन एलान के प्रति प्रलोभन कम हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि जब सरकारें मुफ्त सुविधाएं देती हैं तो कहीं न कहीं लागत की भरपाई की जाती है।
इनके जरिये ऐसी सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं में निवेश किया जा सकता है, जो क्षमता निर्माण करती हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया, 'रेवड़ी (मुफ्त उपहार) कभी भी मुफ्त नहीं होती, विशेष रूप से ऐसी हानिकारक सब्सिडी, जो कीमतों को विकृत करती है।' उन्होंने कहा कि इससे उत्पादन और संसाधन आवंटन को नुकसान पहुंचता है, जैसे मुफ्त बिजली के चलते पंजाब में पानी का स्तर गिरना प्रमुख है।
गोयल ने कहा कि इस तरह की मुफ्त सुविधाएं स्वास्थ्य, शिक्षा, हवा और पानी की खराब गुणवत्ता की कीमत पर मिलती हैं, जिनसे गरीबों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। प्रख्यात अर्थशास्त्री ने तर्क दिया, 'जब राजनीतिक दल ऐसी योजनाओं का एलान करते हैं तो उन्हें मतदाताओं को इस बारे में बताना चाहिए कि इनके लिए धन कहां से आएगा।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल के दिनों में 'रेवड़ी' (मुफ्त उपहार) बांटने के प्रतिस्पर्धी लोकलुभावन घोषणाओं पर प्रहार किया था, जिससे ना केवल करदाताओं के धन की बर्बादी होती है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी होता है। इस तरह के एलान भारत के आत्मनिर्भर बनने के अभियान को बाधित कर सकते हैं।