नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने राजस्थान के हजारों छोटे खनन पट्टाधारकों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने देरी से दायर पर्यावरण स्वीकृति आवेदनों को विचार के लिए स्वीकार करने का आदेश दिया है. यह फैसला SEIAA के देरी से पुनर्गठन के कारण हुआ, जिससे खनन गतिविधियां रुकी थीं. इससे राजस्थान के करीब 4,800 छोटे खनन पट्टाधारकों को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिनांक 12 नवंबर 2024 के पूर्व आदेश में संशोधन करते हुए, उन पुनर्मूल्यांकन (reappraisal) आवेदनों पर विचार करने की अनुमति दे दी है, जिन्हें राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) के सामने 3 सप्ताह की निर्धारित समयावधि से देरी से प्रस्तुत किया गया था.
यह आदेश माननीय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ द्वारा सिविल अपील संख्या 12476/2024 सहित विभिन्न मामलों में पारित किया गया, जिसमें राजस्थान ग्रेनाइट माइनिंग एसोसिएशन को पक्षकार के रूप में शामिल करने की अनुमति दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि इन आवेदनों की देरी आवेदकों की गलती नहीं थी, बल्कि राजस्थान में SEIAA के विलंब से पुनर्गठन के कारण हुई थी, जो कि 10.12.2024 को अस्तित्व में आया. जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई समय सीमा पहले ही समाप्त हो चुकी थी. इन आवेदनों को PARIVESH पोर्टल पर FORM-2 के माध्यम से दायर किया गया था, लेकिन विलंब से दायर होने की वजह से इन्हें विचारार्थ अस्वीकार कर दिया गया था.
राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने न्यायालय को अवगत कराया कि यदि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) या SEIAA इन विलंबित आवेदनों पर गुण-दोष के आधार पर विचार करना चाहें, तो राज्य को कोई आपत्ति नहीं है. इस पर न्यायालय ने सहमति व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया कि तीन सप्ताह की अवधि के बाद दायर आवेदनों को भी प्राधिकरण विचार कर सकते हैं.
राजस्थान ग्रेनाइट माइनिंग एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एस. नाडकर्णी और गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए.