रिपोर्ट: रविंद्र आर्य
दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच करावल नगर से भाजपा प्रत्याशी कपिल मिश्रा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वे 2020 के दिल्ली दंगों के संदर्भ में बयान देते नजर आ रहे हैं।
इस वीडियो में मिश्रा "जमीयत उलेमा-ए-हिंद" और उनके "इकोसिस्टम" पर सवाल उठाते हुए दिखाई देते हैं। वे आरोप लगाते हैं कि एक मामूली कबाड़ी के पक्ष में देश के वरिष्ठ वकीलों की टीम खड़ी हो जाती है, जो दंगों में शामिल था। मिश्रा का कहना है कि ऐसे संगठन उस कबाड़ी को विशेष सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं, मानो वह कोई देश का सुपरहीरो हो।
यह वीडियो ऐसे समय में सामने आया है जब 5 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है। इस वीडियो के वायरल होने से राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने मिश्रा पर सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया है, जबकि भाजपा ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
कपिल मिश्रा पहले भी 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान दिए गए विवादित बयानों के कारण चर्चा में रहे हैं। हाल ही में, कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की आलोचना करते हुए कहा था कि पुलिस या तो मिश्रा के खिलाफ जांच करने में विफल रही है।
भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने एक वायरल वीडियो में जमीयत उलेमा-ए-हिंद पर आरोप लगाया कि उन्होंने दंगों में शामिल एक कबाड़ी की सहायता के लिए विशेष सुविधाएं जुटाई, जिससे वह न्यायिक प्रक्रिया में फायदा उठा सका। मिश्रा ने संगठन के "इकोसिस्टम" पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ विशेष संगठन एक खास वर्ग को कानूनी सुरक्षा देने का काम कर रहे हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के बारे कहा की उनका उद्देश्य केवल कानूनी सहायता प्रदान करना और न्याय सुनिश्चित करना नहीं है। उनका कहना है कि कानूनी मदद संविधान के तहत माना एक अधिकार है, परन्तु वे दंगा प्रभावित एक खास समुदाय को इसका फायदा पहुंचते आये है। एक खास वर्ग को कानूनी सुरक्षा देने का काम करते हुए जिससे कई लोग अदालतों से जमानत या बरी हो सके।
कानूनी सहायता द्वारा दंगों के मामलों में कई आरोपितों को कानूनी प्रतिनिधित्व मिला। दंगा प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री वितरित की। जिनका नुकसान हुआ, उन्हें आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाएं दी गईं।
इस वीडियो में कपिल मिश्रा विशेष रूप से "जमीयत उलेमा-ए-हिंद" को निशाना बनाते नजर आते हैं। उनका दावा है कि इस संगठन के पीछे एक व्यापक तंत्र (इकोसिस्टम) कार्य कर रहा था, जो हिंसा को एक खास दिशा देने की कोशिश कर रहा था। उनका कहना है कि एक मामूली कबाड़ी के लिए देश के वरिष्ठ वकीलों की टीम खड़ी हो जाती है, जो इस बात को दर्शाता है कि इस पूरे मामले में एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम किया गया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के बयान चुनावी गणित को प्रभावित कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस ने मिश्रा के इस बयान की निंदा करते हुए कहा है कि भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है। वहीं, भाजपा की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
विपक्षी दलों का कहना है कि यह बयान चुनावी माहौल में ध्रुवीकरण पैदा करने की एक रणनीति है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे विवादित बयानों का असर चुनाव परिणामों पर भी पड़ सकता है।
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की नजर ऐसे विवादित बयानों और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही सामग्री पर रहती है। सवाल यह उठता है कि क्या चुनाव आयोग इस वीडियो पर कोई कार्रवाई करेगा? चुनाव आयोग का अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह वीडियो सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला पाया गया तो कार्रवाई संभव हो सकती है।
कपिल मिश्रा के इस वीडियो ने एक बार फिर 2020 के दंगों की यादें ताजा कर दी हैं और चुनावी चर्चा का केंद्र बना दिया है। दिल्ली की राजनीति में ऐसे मुद्दों पर चर्चाएं लगातार बनी रहती हैं, लेकिन इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग और संबंधित प्राधिकरण इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं और मतदाता इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं।