नई दिल्ली : (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत निर्माण पर चिंता जताते हुए बुधवार को कहा कि स्थानीय पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना एक भी ईंट नहीं रखी जा सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मामलों की न्यायिक जांच होनी चाहिए। साथ ही, न्यायालय ने कहा कि वह अवैध निर्माण की जांच के लिए गठित निगरानी समिति के फैसलों पर गौर करने के लिए दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक न्यायिक समिति का गठन करेगा।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘‘अनधिकृत निर्माण अधिकारियों और उल्लंघनकर्ता के बीच तालमेल से होते हैं, जिससे निर्माणकर्ता के लिए लागत में इजाफा होता है। बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है तथा स्थानीय पुलिस अधिकारियों और निगम प्राधिकारों की मिलीभगत के बिना ईंट तक नहीं रखी जा सकती है।’’
पीठ ने कहा जैसे ही निर्माण के लिए ईंट रखने की कोशिश होती है वे आपके स्थान पर आ जाएंगे। जो कोई भी उस क्षेत्र का प्रभारी होता है वो बदलाव की व्यवस्था शुरू करता है। हर कुछ महीनों में वे आकर्षक पोस्टिंग के आधार पर बदल जाते हैं। पीठ ने कहा कि जब कोई अधिकारी बदलता है, तो कोई भी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता है और हर कोई कहता है कि यह पिछले अधिकारी के कार्यकाल के दौरान हुआ था।
शीर्ष अदालत ने कहा इससे निपटने के लिए कोई तरीका होना चाहिए। क्या इससे निपटने के लिए कोई सुझाव है? वास्तव में, हम इस प्रक्रिया में ‘ट्रायल कोर्ट’ बन गए हैं। हम यह नहीं कह रहे कि इस अदालत को मामलों से दूर हो जाना चाहिए। इन मामलों की न्यायिक जांच होनी चाहिए जिससे हमें मदद मिल सकती है।शीर्ष अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल या दिल्ली उच्च न्यायालय को मामले भेजकर अवैध निर्माणों को विनियमित करने के प्रयास वांछित परिणाम नहीं देते हैं, ऐसे में इस तरह मामला इस अदालत में पहुंच जाता है।
पीठ ने कहा प्रत्येक मामले के तथ्यों का विश्लेषण करने पर हम मानते हैं कि यह उच्चतम न्यायालय का कार्य नहीं है, खासकर जब अर्जियों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि इनमें से प्रत्येक अर्जी पर गौर करने के लिए समय निकालना मुश्किल है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह विचार किया गया था कि निगरानी समिति के निर्णयों से निपटने के लिए समुचित अधिकार के साथ दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक समिति का गठन किया जाएगा, जिसे उन मामलों पर गौर करने में सक्षम होना चाहिए जहां न्यायिक समिति सीलिंग का निर्देश देती है।
पीठ ने कहा हम मामले के सभी पहलुओं का विश्लेषण करने के लिए न्यायिक समिति को आवश्यक शक्तियों के साथ सशक्त बनाना चाहते हैं। समिति इस बात पर गौर करेगी कि आवंटन की प्रकृति क्या थी, क्या नीति में बदलाव हुआ, मानदंडों के अनुसार क्या मान्य है, उल्लंघन की प्रकृति क्या है।
शीर्ष अदालत ने अतिक्रमण को लेकर नगर निगम की भी खिंचाई की और कहा कि दुकानदारों ने फुटपाथ पर कब्जा कर लिया है जबकि लोग सड़क पर चलने को मजबूर हैं। पीठ ने कहा, ‘‘आप अपना काम नहीं कर रहे हैं इसलिए यह हाल है। क्या आपको कानून के तहत कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है?