मालवा की धरती ने सदा से ही अपने धीर-वीर और गंभीर होने के साथ-साथ रत्नगर्भा होने का प्रमाण दिया है, क्षेत्र चाहे संगीत, कला, साहित्य, चित्रकारी, खेल, राजनीति, प्रशासकीय हो चाहे पत्रकारिता। ऐसे ही एक लाल को मालवा की धरती ने जन्म देकर स्वयं को गौरवानुभूति से लबरेज़ किया होगा। 7 अगस्त को जन्मे राजेन्द्र माथुर साहब हिन्दी पत्रकारिता के ऐसे शिखर कलश रहे जिनसे आज भी भारतीय हिन्दी पत्रकारिता परिभाषित होती है। जिस अख़बार के संपादकीय पन्ने को आज कम ही लोग पढ़ते हैं, उसी पन्ने को पढ़ने की चाह लोगों में ज़िन्दा हुई भी तो उसमें माथुर साहब का बड़ा योगदान रहा है। और उस पन्ने की ताक़त का एहसास भी यदि सत्ता को करवाने वाले कोई शख़्स थे तो वो माथुर साहब ही थे। पाठको को भगवान मानने और उसकी चाहना के अनुरूप अख़बार को सत्यता के साथ पाठको के करकमलों में सुखानुभूति और असल मानसिक खुराक के रूप में पहुँचाने का दायित्व निर्वहन करने वाले संपादक का नाम भी राजेन्द्र माथुर ही है। संपादकीय संस्था क्या होती है, इस बात का एहसास यदि किसी ने करवाया तो वह राजेन्द्र माथुर रहे। हिन्दी पत्रकारिता को आपके अर्पण से सिंचित रखना आज पत्रकारों की महती ज़िम्मेदारी है। इन्दौर की धरती का गौरव और पत्रकारिता की नर्सरी नईदुनिया की संपादकीय आसंदी के सुशोभित रत्न श्री माथुर साहब द्वारा नवभारत टाइम्स में भी सेवाएँ दी गईं, और उन्होंने देश को बताया कि संपादकीय क्या होती हैं? ऐसे संपादक श्रेष्ठ आदरणीय रज्जू बाबू का आज पुण्य स्मरण दिवस है, नमन सहित श्रद्धांजलि।
● डॉ.अर्पण जैन ‘‘अविचल’’......✍️
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● पालीवाल वाणी ब्यूरो-Sunil Paliwal-Anil Bagora...✍️
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● एक पेड़...एक बेटी...बचाने का संकल्प लिजिए...
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