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दर्द को मुस्कुराहट देता हुआ ये नेक इंसान...

आपकी कलम Published by: paliwalwani Updated Sun, 18 Feb 2024 06:38 PM
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प्रसिद्ध तीर्थ स्थान, कल कल बहती नदी या ख़ूबसूरत सड़कों, बड़े बड़े पुलों से ही कोई शहर सिर्फ़ ज़िंदा नही होता उसे असल मायने देते है, ऐसे लोग जो बस्तियों के अभाव को देखकर उसे पूरा करने में जुट जाते है. भले फिर उनके पास साधन हो न हो. नदी को गंदा देख अभियान चलाते है सफ़ाई का. 

उन्हें जब भी सड़क के किनारे के किसी लेम्प पोस्ट पर पढ़ते होनहार दिखते है ओर वो जुट जाते है, उनके लिए किसी रोशनी वाली जगह, कुछ किताबें, कापियाँ मुहैया करवाने में. देश के भविष्य को देख पाते है अपनी दूर दृष्टि से.

वो सड़क किनारे के सूखते हुए पौधों को भी रुक कर पानी देते है. भूख से बिलखते बच्चों के लिए दूध, राशन या ज़रूरत का लून, तेल समाज से मदद के लिए माँगने से तनिक भी परहेज़ नही करते. 

बिना साइकल की छात्रा को पैदल जाते देखकर वो अपनी एक मात्र साइकल या स्कूटी तक देने में एक पल भर नही सोचते. आप भी सोच रहे है, आज #kahaniwala किसकी बात कर रहा है. ऐसा कोई होता भी है भला क्या ? 

किस शहर का बाशिंदा है ऐसा रॉबिन हुड जो बस्तियों में फैले दर्द, दुःख ओर अभाव को देखकर जो बनता है वो सब करता है. फिर उसे ख़ुद तकलीफ़, अभाव सहना ही पड़े तो भी क्या ? …

तो मिलते है अवंतिका महाकाल की पवित्र भूमि के लम्बी दाड़ी रखने वाले ऐसे सपूत, रंगकर्मी, पर्यावरण कार्यकर्ता, लेखक समाजसेवी जिन्हें फ़िलहाल कानो से बिल्कुल नही सुनाई देता, होंठों को पढ़कर बात समझ लेते है. ऐसे गुणी श्री अमिताभ सुधांशु विश्वास जी से उनको जानेंगे तो आपको भी अच्छा लगेगा. 

अक्सर #kahaniwala  ने उन्हें बचे हुए भोजन को शादियों से, समारोह से इक्कठा करके गरीब बस्तियों में बाँटते हुए देखा है. तो अक्सर वृक्षारोपण के कार्य में लगातार उज्जैन वाले ग्रूप ओर अन्य संगठन के साथ काम करते कड़ी धूप में भी जुटे हुए देखा है.

अमिताभ जी लगातार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ में गरीब बस्ती में निशुल्क पढ़ाते है. गरीब बस्तियों में जूते या जो भी जीवन उपयोगी सामान हो उन्हें लगातार पहुँचाते है. ज़रूरत आते ही दौड़ पढ़ते है. 

उनके पास ….M.A इन English , संस्कृत , Economics, दर्शन शास्त्र (स्वर्ण पदक), ज्योतिर्विज्ञान में भी एम.ए. किया है. MBA इन finance , M.com in Account के साथ उनके पास अनेक शैक्षणिक योग्यता है. 30 वर्षों तक उच्च पद पर नौकरी करते हुए उन्होंने सेवा, मदद, रंग कर्म के साथ ख़ूब घूमना फिरना ओर लिखना जारी रखा. 

एक इंसान क्या कुछ नही कर सकता...तो उसकी जीवट मिसाल है, अमिताभ जी. उनका एक कविता संग्रह_ठहरा हुआ सा कुछ भी प्रकाशित हुआ है.

आपको 68 वर्ष की उम्र तक राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान, पर्यावरण  सरंक्षक पुरस्कार, अचीवर्स सम्मान जैसे कितने प्रतिष्ठित सम्मान देश भर की संस्थाओ, सरकारों से मिले है । 

किसी का दर्द ले सके तो ले उधार... गाने की पंक्तिया गुनगुनाते हुए उन्होंने कहाँ की समाज के पीड़ित, सोषित या ज़रूरतमंद लोगों के लिए मुझे किसी से भी मदद माँगने में कोई शर्म नही ओर इससे भी बाड़ी बात #kahaniwala  जी लोग बहुत अच्छे है, मददगार वो देखते है की आप उनके दिए सहयोग, दान का सदुपयोग करते है, तो वो बिना माँगे बहुत कुछ दे देते है. वो भी गुप्त दान कहकर. 

मेरा दिन जनाब ….कभी बस्ती में तो कभी पौधा रोपण में तो कभी नदी सफ़ाई में कैसे निकल जाता है मुझे पता ही नही चलता... कभी उज्जैन जाना हो तो आप कोशिश ज़रूर कीजिएगा इस रॉबिन हुड (दर्द देखते हुए आदमी) श्री अमिताभ सुधांशु को जो आज भी भरोसा ज़िंदा रखे हुए है की एक शहर ऐसे ही नेक लोगों ओर उनके निस्वार्थ काम से ही ज़िंदा शहर में शुमार होता है. वो टेक्स्ट करके ही ज़्यादातर बात करते है तो आप उनसे massenger पर बात कर सकते है, बेहद अच्छा लगेगाआपको यकीन जानिये.

-लक्ष्मण पार्वती पटेल 

-कहानी वाला

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