नितिनमोहन शर्मा ●
कांग्रेस का "बम" फूटने से पहले ही "फुस्स" हो गया..!! धमाका तो दूर अब तक तो " सुरसुरी" भी " बम" में नजर नही आई। उलटे बम का दम उनका ही दल निकालने पर आमादा भी हो चला हैं। दल में ऐसे कोई हालात नजर नही आ रहें हैं कि थोड़ा बहुत ही सही, कम से कम बम का दम कुछ तो नजर आए। न उनके लिए उनकी पार्टी का संगठन काम करता नजर आ रहा है और न "गांधी भवन" में कोई हलचल हैं। जो बैठकें हो रही हैं, वे " उठावना बैठक" ही नजर आ रही हैं। " बम" स्वयम भी शहर से दम पाते नजर नही आ रहे औऱ वे न जाने क्यों अब तक " बेदम" बने हुए हैं। जबकि मिशन 2023 में वे भाजपा की अविजित "अयोध्या" को जीतने का दम भर रहे थे। तब बिरादरी का दबदबा दिखा रहे थे और स्वयम को " धनपति" के रूप में पेश भी कर रहें थे। अब बम के दम की बजाय उनकी ही पार्टी में उनकी "कंजूसी" के किस्से आम हो रहें हैं।
बात है इंदौर संसदीय क्षेत्र की, कांग्रेस की और उसके उम्मीदवार अक्षय कांति बम की। बम को भाजपा के उस गढ़ में मैदान में उतारा हैं, जहां से कांग्रेस के हर बड़े नेता ने चुनाव लड़ने से किनारा कर लिया। इंदौर में 35 साल से निरंतर परास्त कांग्रेस को इस बार भाजपा से दो दो हाथ करने के लिए कोई उम्मीदवार ही नही मिला। जितने स्थानीय नामचीन नेता थे, सबने हार का बेहतरीन स्वाद चख रखा हैं। लिहाज़ा किसी ने कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को " हाथ " ही नही रखने दिया। उलटा " दाम" प्रदेश नेतृव के ऊपर ही आ गया कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को ही लड़ना चाहिए। पटवारी भी परिणाम जानते थे। अभी उन्हें अपने ही इलाके में "चित से पट" हुए वक्त भी नही बीता था। लिहाजा एक नाम का ही सही, " बम" तलाश लिया गया। अब ये बम पार्टी के समक्ष इस तरह हाज़िर हैं, जैसे शहीद होकर वो कांग्रेस पर अहसान कर रहें हैं। बस बम की बेदम होने का ये ही असल कारण है और उनके इस मंतव्य को उनके ही दल के नेता और जमीनी कार्यकर्ता पूर्णरूपेण सत्य करने में जुट गए हैं।
शहर तो दूर, प्रदेश में भी कांग्रेस कही नजर नही आ रही। सिवाय उम्मीदवारों के पर्चा भरवाने के कांग्रेस कही दिख नही रही। पार्टी के बड़े नेता भी चुनावी रणभूमि से नदारद हैं। कमलनाथ औऱ दिग्विजयसिंह जैसे नेता अपने अपने इलाके में, उम्र के इस पड़ाव पर अपने अपने अस्तित्व की लड़ाई में फंस चुके हैं। बचे पटवारी औऱ उमंग सिंगार जो टिकट की लड़ाई के शह मात के खेल में लगे हुए हैं। ऐसे में संगठन पूरी तरह लावारिस हो गया हैं औऱ चुनोती 28-1 को बचाने तक सिमट गई हैं। डर तो 29-0 का भी मंडरा गया हैं। ऐसे में भाजपा की बल्ले बल्ले अभी से नजर आ रही हैं। इन सबके बीच फ़ंसे हुए है अक्षय कांति बम। बम के साथ तो " जिधर दम-उधर हम" वाले नेता और कार्यकर्ता भी नजर नही आ रहें। कारण बम स्वयम भी तलाश रहे हैं लेकिन सामने कुछ नही आ रहा। ख़ुलासा फर्स्ट के सूत्रों की माने तो इस बार कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने तय कर लिया है कि आखिर कब तक " धनपति" के लिए पसीना बहाएंगे? अगर कोई जमीनी नेता को टिकट मिलता तो जी जान से काम करते। अक्षय का पार्टी में क्या योगदान?
बम के लिए कहने को विधानसभावार कार्यकर्ता सम्मेलन शुरू हुए है लेकिन ये जीत के जुनून की बजाय औपचारिक ज्यादा नजर आ रहें हैं। पार्टी के स्थानीय दफ्तर गांधी भवन में पसरा सन्नाटा भी इस बात का गवाह हैं कि बम तो पहले से बेदम हैं। बम के लिए पार्टी के हालात इस कदर हो चले है कि चुनाव वाले दिन जिले के सभी 2 हजार से ज्यादा बूथों पर बाहर टेबल लग जाये तो बहुत हैं। बूथ के बाहर टेबल लग भी गई तो ये तो पुख्ता है कि बूथ के अंदर बैठने वाले भी सब जगह शायद ही उपलब्ध हो। मिशन 2023 में जो जुनून बूथ प्रबंधन को लेकर था और जिस तरह से बूथ व्यवस्था को पार्टी ने चाकचौबंद किया था, वह बम के वक्त पूरी तरह नदारद हैं। न मंडलम सेक्टर सक्रिय हैं और न ब्लॉक लेवल पर कोई हलचल हैं। जबकि विधानसभा चुनाव के वक्त ये दोनों स्तर पर पार्टी सबसे मजबूत थी।
कमलनाथ ने जिस बूथ प्रबंधन के काम को जबरदस्त प्राथमिकता दी थी, उनके जाने और पटवारी के आने के बाद ये काम पूरी तरह लावारिस छोड़ दिया गया हैं। कहा तो कांग्रेस कमकनाथ के नेतृत्व में बूथ मैनेजमेंट में भाजपा के समकक्ष जाकर खड़ी हो गई थी और कहा आज के हालात। पार्टी नेताओं की माने तो प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से जीतू पटवारी ने संगठन के लिए चार आना काम भी नही किया हैं। करते भी कैसे? 90 फीसदी जगहों पर कमलनाथ द्वारा तैनात किए गए नेता ही अब तक काबिज़ हैं। काम किनसे ले और कैसे ले? प्रदेश संगठन की ये असमंजसता और बेफिक्री बम के दम को पूरी तरह बेदम किये हुए हैं।