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मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है : रश्मि भारद्वाज की स्त्री कविता की प्रशंसनीय कृति

आपकी कलम Published by: paliwalwani.com Updated Sat, 12 Jun 2021 07:24 PM
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महिलाओं के दुख, दर्द, त्याग, तप, सहनशीलता, संघर्षशील जीवन, उच्च आदर्शों तथा लैंगिक भेदभाव पर हिन्दी साहित्य विशेषकर काव्य जगत में बहुत कुछ लिखा गया है जिसका सिलसिला आज भी जारी है.इस श्रंखला में रश्मि भारद्वाज की कविताओं में नारी की व्यथा कथा का जो चित्रण है, वह अन्यत्र दिखाई नहीं देता। उनकी कविताओं में नारी शक्ति इतनी व्यथित है कि वह स्त्री के साथ भेदभाव का दोषी ईश्वर को मानती है.

'ईश्वर, लेकिन अब चिंता की बारी तुम्हारी है

वह इनकार कर रही है तुम्हारी उस सत्ता को मानने से

जो इतनी सी उम्र में ही उसे बेवजह का भार सौंपती है

वह हमउम्र लड़कों का मुक्त किलकना देखती है

बार-बार पूछती है

इनके हिस्से कौन सा दर्द है

घोषित करती है

कि पक्षपाती है यह ईश्वर

जिसकी सृष्टि का सारा करतब’

'मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है' रश्मि भारद्वाज की स्त्री कविता की प्रशंसनीय कृति है। पुस्तक में स्त्रियों के संवेदनशील और सामाजिक, आर्थिक, मानवीय तथा न्यायिक बल्कि शारीरिक विषयों पर रश्मि जी के अन्त:करण की मौलिक ध्वनि प्रस्फुटित होता है. rashmi-bhardwaj-hindi-poetry 'रिक्त स्थान' नामक कविता नारी-पुरुष भेदभाव का सटीक वर्णन करती है,यथा-'एक पुरुष ने लिखा प्रेम रची गयी एक नयी परिभाषा एक स्त्री ने लिखा प्रेम लोग उसके शयनकक्ष का भूगोल तलाशने लगे’ स्त्री विमर्श पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है. रश्मि भरद्वाज ने स्त्री जीवन की महीनता को अनुभव के साथ लिखा है जिसे पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है। उनकी कविताएँ हमें ठहरकर, सोचने पर विवश करती हैं। यहाँ कुछ भी ऐसा नहीं जिसे पढ़ा न जाए, सब कुछ तो बार-बार पढ़ने का मन करता है। कुछ नहीं, बहुत-सी पंक्तियाँ ऐसी हैं जिन्हें दिमाग के किसी हिस्से में हमेशा के लिए सँजोने का मन करता है। कई अवसर ऐसे आते हैं, जब हम इतने भावुक हो उठते हैं कि भावनाएँ हमें जकड़ लेती  हैं। एक तरह से ख़ुद में बँध जाते हैं; कोई शब्द नहीं, स्थिर, शून्य से. जब पाठक के साथ ऐसा हो तो समझ लीजिए उसने पढ़कर कुछ महसूस किया है. रश्मि भरद्वाज की चीज़ों को नापने की कुशलता उसी समाज से आई है जहाँ ज़िन्दगी के उतार-चड़ाव वाले किस्से-कहानियाँ खुरदरे-चिकने मैदानों पर तैरते हैं. वहीं स्त्री-पुरुष संसार के अलग-अलग रंगों में ख़ुद को भिगोते हैं, और जीवन के नये अध्याय रचते हैं- जीवन यही है. इसी जीवन के संगीत में सुबह-शाम के नज़ारे हैं. रश्मि भारद्वाज वहाँ बिखरी खामोशियों, ख्वाहिशों, उम्मीदों को चुनकर प्रस्तुत करती हैं. उनके सवाल भी हैं, जिन्हें हर स्त्री जानना चाहती है. उत्तर भी हैं, जो शायद आजतक अनुत्तरित हैं.रश्मि भारद्वाज का यह संग्रह नारी के बारे में कहीं अधिक व्यक्तिगत लेकिन गंभीर विषयों में बहुत कुछ कहता है. ये कवितायें हमें नारी जीवन से साक्षात्कार कराती हैं। वास्तव में यह संग्रह कविताओं का नहीं, ज़िन्दगी की तहों की वास्तविकता कहती कविताओं का संग्रह है. रश्मि भारद्वाज की कविताओं में सुकून है। उनका काव्य संग्रह 'मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है' बेहद खूबसूरती से रचा गया है. यकीनन आपको हर कविता मखमली-सी लगेगी या यों कहें उनके काव्य से प्यार कर बैठेंगे। बहुत ही सुन्दरता से उन्होंने एक-एक पंक्ति को लिखा है, जिसे पढ़ना मन को राहत देता है। काव्य में एक असर होना चाहिए, एक लय होनी चाहिए, पाठक को संतुष्टि मिलनी चाहिए. पढ़ने के बाद वह उसके असर को महसूस करे. वह सोचे, सोचने पर मजबूर हो जाए. गहराई शब्दों में होती है, शब्द जब कविता रचते हैं, तो वहाँ एक तरह से रंगों का बिखराव होता है, जो काव्य को उत्कृष्ट बनाता है. यही रश्मि भारद्वाज की कविताओं में मिलता है. ऐसी कवितायें पढ़ना खुशकिस्मती भी है. 

मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है : रचनाकार : रश्मि भरद्वाज

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन : पृष्ठ : 120

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