● सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
मेरी पत्रकारिता का शैशवकाल चल रहा था। नई दुनिया जैसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त अखबार के जरिए मेरी पत्रकारिता धीरे-धीरे ही सही, अपनी ठीक दिशा पकड़ रही थी। मैंने पहले ही लिखा था कि आपातकाल और अखबारों पर सेंसरशिप मेरे लिए अवसर लेकर आई थी।खबरें खोजने और सूत्रों को पकड़ने, अपने विश्वस्त सूत्रों का विश्वास जीतना भी पत्रकारिता के लिए आवश्यक योग्यता होती है।
मेरे मानस, सोच और चिंतन में राष्ट्रवादी विचारों का अंकुरण, आदरणीय स्वर्गीय रामसिंहजी शेखावत के इतिहास ज्ञान से ही हुआ था। एक दिन सेन्ट्रल जेल में भीतर जाने का अवसर मिल गया था। यह संयोग ही था कि उस दिन आदरणीया दीदी स्वर्गीय गीतादेवी शेखावत, आदरणीय रामसिंह जी शेखावत से मिलने आई थीं। मैं भी वहीं था। उनकी मुलाकात के बाद मैंने शेखावतजी के हाल पूछे। वे मल्हारगंज में हमारे निवास के सामने ही रहते थे। आज भी उनके बेटे, पोते, बहूओं के साथ वहीं रहते हैं। शेखावतजी और दीदी तो रही नहीं। दीदी पार्षद भी रहीं हैं।
दादा की सीख की छाया तले मैं तो पत्रकार बना ही, उनका पोता पराक्रम सिंह शेखावत भी दिल्ली में पत्रकारिता का ध्वज थामे हुए है। शेखावतजी ही थे जिन्होंने मेरे विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श को देखकर स्वदेश में नौकरी लगवाई थी और आदरणीय स्वर्गीय माणिकचंदजी बाजपेयी के सुपुर्द किया था।
खैर शेखावतजी से पांच मिनट में मिले संकेत से पता चला कि वे सभी मीसाबंदियों सहित अन्य कैदियों को इतिहास बताते हैं। याने वे प्रतिदिन देश का सही इतिहास बताते थे। वे विस्तार से समझाते थे कि किस तरह कांग्रेस सरकार की शह पर षडयंत्र पूर्वक नेहरुवादी, वामपंथी इतिहासकार बच्चों, इतिहास के विद्यार्थियों को गलत इतिहास पढ़ा रहे है। आक्रमणकारी मुगलों को महान बताया जा रहा है। इस बीच उनके मिलने का समय समाप्त हो जाने पर वे चले गए।
मैंने जेल अधिकारियों और वहाँ तैनात जेलकर्मियों से जो जाना उससे गर्व से सीना फूल गया। मेरे प्रथम राष्ट्रवादी गुरुदेव शेखावतजी की इतिहास पाठशाला के बारे में जानने को मिला। मीसाबंदियों ने बताया कि शेखावतजी भारतीय इतिहास के गौरवशाली चरित्रों का वर्णन करते थे। संपूर्ण इतिहास उनको कंठस्थ था।
खासकर राजपूती इतिहास के वे गहन अध्येता थे। उनका प्रस्तुतिकरण प्रभावी और अदभूत था। उनकी शैली और जोशीले हावभाव सहज ही आकर्षित करते थे। गौरवशाली इतिहास बताते हुए उनके नैत्रों की चमक देखते ही बनती थी। उनकी पाठशाला के प्रमुख प्रसंग थे- पानीपत के राणांगण में राणा सांगा का पराक्रम, खिलजी के विरुद्ध चित्तौड़ी वीरों का शौर्य, रानी पद्मिनी की बुद्धिमत्ता और जयमल फत्ता का बलिदान, जौहर ज्वाला का अदभूत वर्णन, राणाप्रताप और अकबर का संघर्ष, छत्रपति शिवाजी की विजयगाथा, अजेय यौद्धा बाजीराव पेशवा प्रथम के अलावा देवी अहिल्या बाई की शौर्य गाथा तथा परोपकारी शासन व्यवस्था।