लाठी डंडों के दम पर टाइम पर बन्द होते शहर के लिए शुभ शगुन आया है। जिला प्रशासन ने तय किया है कि शहर का एक हिस्सा पूरी रात खुला रहेगा। ऐसा नये दौर के नए इंदौर के लिए किया गया है। अब हमारा शहर राजबाड़ा टोरी कार्नर छावनी मालवा मिल से कई गुना आगे निकल गया है न। बड़ी बड़ी कम्पनियां आ गई है। बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू हो गए है। आई टी कम्पनियों ने डेरा डाल दिया है। नतीज़तन एक बड़ा वर्ग भी तैयार हो गया है जिसे रात में काम करना होता है। ये नई पहल उन्ही लोगो के लिए है जो सबके काम आएगी। बस ये याद रखना कि आपका अनुशासन ही इस व्यवस्था को स्थाई स्थापित करेगा। जरा सी गड़बड़ फिर से इलाके में रात 11 30 बजते ही सीटियां बजवा देगी। इसलिए जिला प्रशासन की इस पहल को आप सब...माल, दुकान, पब, बार, मल्टीप्लेक्ससेल्फ वाले ही नही, आनंद लेने वाले भी डिसिप्लिन से कामयाब कीजिये। आपकी कामयाबी शहर के अन्य हिस्सों को भी देर सबेर रात में रोशन कर देगी। वैसे ही जैसे कभी इंदौर पूरी रात रोशन रहता था।
सुबह ए बनारस..
शाम ए अवध.......
शब ए मालवा.........
बनारस की सुबह, अवध (लखनऊ) की शाम, और मालवा की रात। ये मशहूर है देश मे। जिस मालवा की ठंडी बयार वाली रातों के लिए कभी कवि कालिदास ने लिखा था, आज वो मालवा फिर से अपनी रात को रोशन कर रहा है। मालवा का सिरमौर...इंदौर से इसका आगाज हुआ है। शुरुआत शहर के एक हिस्से में रात को गुलज़ार करने की हुई है। सब कुछ मनोनुकूल रहा तो रोशन रात का दायरा शहर के अलग अलग हिस्सों तक बढ़ाया भी जा सकता है। फिलहाल बीआरटीएस यानी अपना पुराना एबी रोड को ये सौगात मिली है। इस सौगात को पहले ही दिन जोरदार प्रतिसाद भी मिला। हालांकि अभी रंगत चढ़ने में वक्त लगेगा। ये कोई राजबाड़ा या सरवटे बस स्टेंड वाला इलाका तो है नही जो रात को आबाद होने को मचल रहा है। अब नए इंदौर का नया वाला हिस्सा है। ये हिस्सा हवाले भी नए इंदोरियो के है। लिहाजा रंग चढ़ने चढ़ते ही चढ़ेगा। वैसे शहर का ये हिस्सा यू भी रात होने के बाद ही " रँगीन" होता आया है लेकिन नियम कायदों के चलते इस रंगीनियत में आये दिन खलल पड़ता था। अब नियम कायदो के तहत इस तरफ रात गुलज़ार होंगी।
नई पीढ़ी ओर नए शहर को शायद ही ये पता हो कि ये शहर रात को जागने वाले शहरों में ही शुमार था। शहर ही नही, यहां के बाशिंदों में भी ये ही रिवायत रहा करती थी। आज भी है। कामकाज से निपटकर, घर आकर एक बार फिर व्यक्ति घर से बाहर निकलता है। पहले गली मोहल्लों ओर चौराहों पर देर रात तक दुकानें खुली रहती थी। इसलिए कुछ इलाके तो शहर के ऐसे थे कि वहां दो पालियों में ही काम होता था। दिन की टीम अलग। रात की अलग। इंदौर का ये रात का मिजाज ही उसे उस जमाने मे "मिनी बॉम्बे" बनाता था।
ये भी शायद ही अब किसी को याद होगा कि ये शहर देश का एकमात्र ऐसा शहर था जहां " पटिया संस्कृति" स्थापित थी। थोड़ा बहुत भोपाल भी था लेकिन नकल इंदौर की ही थी। ये पटिया संस्कृति भी बड़ी अनूठी थी। आज जिसे हम ओटले पर बैठना कहते है, उस जमाने मे ये ओटले ही पटिया होते थे। सबके अपने अपने ओटले यानी पटिये ओर सबके अपने अपने ग्रुप। राजबाड़ा, टोरी कार्नर, मालवा मिल, छावनी क्षेत्र पटिया संस्कृति के मूल ठिये थे। रात गहराते ही ये पटिये आबाद हो जाते थे। इन पटियो पर बैठने वाले भी कोई हल्के पतले लोग नही होते थे। शहर के नामचीन लोग भी इस संस्कृति के हिस्सा ही नही थे, बल्कि रौनक भी थे।
पटिये भी मिजाज के अनुकूल लगते थे। जैसी जिसकी तबियत, वैसा उसका ठिया यानी पटिया। कला संस्कृति वालो का अलग पटिया तो साहित्यकारों की जाजम का अलग पटिया। पढ़ने पढ़ाने वालो यानी मास्टर साहबो का अलग पटिया तो अफ़सरो का अलग। नेताओ की मंडली भी इन्ही पटियो पर आबाद होती थी। दादा पहलवान बहादुरों की जमात भी पीछे नही थी। उनके ठिये भी उनकी टीम से आबाद रहते थे।
गली मोहल्लों के मुहानों पर भी ऐसे पटिये यानी ठिये होते थे जो देर रात तक मोहल्लों के बड़े बुजुर्गों से आबाद रहते थे। देर रात घर आने वाली नोजवान पीढ़ी इनकी नजर से बच नही पाती थी। ये एक तरह से उस जमाने के सीसीटीवी कैमरे थे जो गली मोहल्लों ओर कालोनियों की आधी रात तक चौकीदारी करते थे। देर रात को "खाये पिये" आने वालो में भी डर रहता था कि फ़लाने अभी तक बेठे होंगे यार.....!!!
शहर की दशा और दिशा भी ये पटिये तय करते थे। शहर के नेता ही नही सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले और प्रबुद्ध वर्ग की चिंतन का केंद्र ये पटिये ही थे। तब रोशन रात ही इस कस्बाई इंदौर के विकास व अन्य गतिविधियों के चिंतन का मुख्य आधार हुआ करती थी। पटिये पर आते ही दलगत राजनीति भी गल जाती थी। सिर्फ इंदौर ही चिंता और चिंतन का विषय होता था।
ताजा राते भी कुछ अतीत के इंदौर जैसी हो तो बात बने। केवल आमोद प्रमोद तक ये रोशन रात नही सिमटे। न मौज मस्ती तक सिमट जाए। इन रातों पर नजर ओर निगरानी बेहद आवश्यक है। अब ये नया इंदौर है। यहां बहुतायत में नए लोग है। नए अफसर है। नए नए कारिंदे है। नए नए नियम है। नई पहल भी है। ये पहल या प्रयोग सफल रहे इसके लिए नागरिकों को ही सबसे बड़ी भूमिका अदा करना होगी। सुरक्षा व्यवस्था भी चाकचौबंद रखना होगी ताकि अहिल्या नगरी के माथे पर कोई कलंक न लगे। रोशन हिस्से के माल दुकान पब बार व अन्य खाने पीने के ठिये ठिकानों को ये याद रखना होगा कि पूरा शहर ही नही, समूचे प्रदेश की नजर आप पर है। सरकार और प्रशासन ने पहल की है। इसे सफल आपका अनुशासन बनाएगा। ये अनुशासन केवल दुकानदारों तक सीमित नही रहना चाहिए। इसका अनुपालन उन लोगो के लिए ज्यादा आवश्यक है जो इस हिस्से में रात गुलज़ार करने आएंगे।