आमेट. महावीर भवन मे वीरपत्ता की पावन भूमि पर चातुर्मास हेतु विराजित साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा की दूध का सार मलाई है तो जीवन का सार भलाई है.
किसी के काम आओगे तो कोई तुम्हारे काम आयेगा : वरना इतना किसके पास वक़्त है, जो हर बार दौड़ा आयेगा. दूसरों को दोष देने में ही इंसान आधी ज़िंदगी निकाल देगा तो, खुद के लिए हमेशा दूसरों से भले की उम्मीद कहाँ से कर पायेगा. हम जब भी निस्वार्थ भाव से किसी की मदद के लिए कोई काम करते हैं, तो उसका लाभ जरूर मिलता है.
ऐसा काम करते समय ये नहीं सोचना चाहिए कि इस काम से हमें क्या लाभ मिलेगा. निस्वार्थ भाव से किया गया, काम हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी करता है और दूसरों को इससे लाभ मिलता है. दूध का सार मलाई है, वैसे ही जीव का सार भलाई है. हम अपने जीवन में भलाई को इसलिए अपना नहीं पाते, क्योंकि बुराई का दामन हमसे छूटता नहीं. जब तक हम बुराई को बुरा नहीं मानेंगे, तब तक हम उसका त्याग नहीं कर पाएंगे और जब तक हम बुराई से मुक्त नहीं होंगे, तब तक हमारा मन शांत नहीं होगा.
साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा : मन का ग्यारहवां दोष है तुच्छ वस्तुओं की चाह रखना. इसी तरह तुच्छ विचारों की चाह रखना भी मन के ग्यारहवें दोष में आता है. तुच्छ वस्तुओं का राग विश्वास को घटाता है, तो तुच्छ विचारों का राग वैराग्य को घटाता है. अगर हम वीतरागी बनना चाहते हैं तो हमें तुच्छ विचारों के राग को त्यागना होगा.
हम तुच्छ विचारों को त्याग नहीं पाते, उसे जकड़ कर रखते हैं. उन्होंने कहा कि जीवन का सार एकमात्र भलाई ही है. हमें संकल्प लेना चाहिए कि मैं अपने जीवन में तुच्छ विचार नहीं रखूंगा. मनुष्य का जीवन विषय वस्तु को भोगने के लिए नहीं बना है, लेकिन आज का मानव भगवान की भक्ति को छोड़कर विषय वस्तुओं को भोगने में लगा हुआ है.
जीवन में सदैव दूसरों की भलाई के काम को करते रहना चाहिए. दूसरों की भलाई करने वाले का भगवान भला करते हैं. मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद्र बड़ोला एवं मुकेश सिरोया ने बताया कि इस अवसर विनोद बाबेल, अनिल मुणोत, प्रकाश सरणोत, अशोक बापना, ज्ञानचंद्र लोढा, पवन मेहता, सुआलाल कोठारी आदि श्रावक-श्राविकाएँ उपस्थित थे. धर्म सभा का संचालन सुरेश दक ने किया.
M. Ajnabee, Kishan paliwal