मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टेटस (Pavo Cristatus) है. यह हंस के आकार का रंगीन पक्षी है, जिसके पंखों में कलगी लगी होती है. सामान्यतः एक मोर में 200 के करीब लम्बी पंखों वाली एक शानदार कांस्य-हरी पूंछ होती है. इसके आंखों के नीचे एक सफेद धब्बा और इसकी गर्दन पतली और लंबी होती है.
भारतीय सभ्यता-संस्कृति में मोर की महत्ता को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1 फरवरी 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया था. नर को मोर (Peacocks/Peafowls) और मादा को मोरनी (Peahens) के रूप में जाना जाता है. वहीं सामान्य तौर पर दोनों लिंगों के लिए मोर का उपयोग किया जाता है.
बता दें कि मोर हिंदू व बौद्ध मान्यताओं व परंपराओं का प्रतीक है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार मोर समृद्ध व रहस्यमय संबंधों वाला पवित्र पक्षी है. इसे आनंद, खुशहाली, सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है. हिंदू धर्म के जानकारों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने सिर पर मोर पंख पहना पसंद करते थे. वहीं प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक भगवान गणेश के भाई कार्तिकेय मोर को अपने वाहन के रूप में उपयोग करते थे.
भारत में मोर की झलक धर्म-संस्कृति और कला-शिल्प सहित अन्य क्षेत्रों में दिखाई देता है. 1963 में राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा मिलने के बाद से यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित जीवों में शामिल है. एक तरह से कह सकते हैं कि इस प्रजाति को विशेष संरक्षण प्राप्त है.
States Of India Bird 2020 की रिपोर्ट के अनुसार हाल के कई दशकों में भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. वहीं कई अन्य पक्षियों की संख्या में काफी कमी हुई है. ये रिपोर्ट जंगली संयुक्त राष्ट्र के पहल पर गुजरात के गांधीनगर में जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर आयोजित सम्मेलन में जारी किया गया था.