मथुरा-वृंदावन में जन्माष्टमी से पहले हरियाली तीज धूमधाम से मनाया जा रहा है। भगवान बांके बिहारी सोने-चांदी के हिंडोले (झूले) में विराजमान हो चुके हैं। साल में सिर्फ एक दिन हरियाली तीज पर बांके बिहारी सोने और चांदी के हिंडोले में विराजमान होते हैं। फोटो खींचने पर बैन होने के बावजूद हिंडोले पर विराजमान बांके बिहारी की मनोहारी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने राधा रानी को झूला झुलाया। तभी से मथुरा में बृज में झूलन उत्सव की यह परम्परा चली आ रही है। मथुरा के कुछ मंदिरों में हरियाली तीज से लेकर रक्षाबंधन तक 13 दिन तक भगवान को झूले में विराजमान किया जाता है।जबकि, बांके बिहारी मंदिर में साल में एक बार केवल हरियाली तीज झूला दर्शन होते हैं। इस दिन महिलाएं गोपियों के रूप में अपना सोलह श्रृंगार करती हैं और घेवर फेनी का कान्हा को भोग लगाती हैं। मल्हार गाकर राधा-कृष्ण की झूलन लीला को जीवंत करती हैं।
बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज पर पड़ने वाला झूला कहीं और देखने को नहीं मिलता है। इस झूले की खास बात ये यह है कि यह 30 फीट ऊंचा और करीब 40 फीट चौड़ा है। इस झूले में 1 लाख तोला चांदी और 2 हजार तोला सोना लगा है। 120 भागों में बंटे इस झूले को लगाने के लिए कारीगरों को करीब 8 घंटे का समय लगता है।
इस झूले का निर्माण कराने वाले सेठ हरगुलाल के पौत्र विनीत वेरिवाल बताते हैं कि उनके दादा ने इस झूले का निर्माण कराने के लिए बनारस के कारीगर को ठेका दिया था। 1942 में झूले को तैयार करने के लिए लकड़ी करनपुर के जंगल से लाई गई थी। शीशम की लकड़ी को दो साल तक सुखाया गया था। इसके बाद झूले को बनाने का काम शुरू किया गया था। यह झूला 15 अगस्त 1947 को बनकर तैयार हुआ था। उसी दिन देश आजाद हुआ था। संयोग से उसी दिन हरियाली तीज का पर्व भी था। पहली बार भगवान इस दिव्य झूले में 15 अगस्त को ही विराजमान हुए थे।