राजसमंद/देवगढ़ : सामाजिक युवा कार्यकर्ता श्री नीलेश पालीवाल ने पालीवाल वाणी को जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान के लोकल परिवेश में परिवारों में लोग अपनी बेटियों को चिड़कली कहकर बुलाते हैं। चिड़कली यानी चिड़िया की तरह चीं-चीं करने वाली लाड़ली। इसी आँगन की गौरैया और बेटियों के लिए देवगढ़ के नेहरु युवा केंद्र के करियर महिला मंडल की महिलाओ द्वारा इन्हें बचाने का
अनोखा संकल्प तीन वर्ष पूर्व लिया और सोन चिड़िया मेरी बेटिया अभियान द्वारा गौरैया संरक्षण के लिए प्रयास शुरू किये अभी तक बेटियों के नाम से 1200 से अधिक बर्ड हाउस बनाये जिन्हें जिले में कई उद्यानों, घरो की बालकनी, दीवारों, खुले स्थानों, छतो और पेड़ो पर लगाये गए मंडल की महिलाओ द्वारा किसी भी सदस्य के जन्मदिन पर और विशेष तोर पर बेटी के जन्मदिन पर इन्हें लगाया जाता है आज इस अभियान से कई संस्थान और लोग जुड़ चुके है और अब नन्हीं गौरैया घर,आंगन और विद्यालयों में चीं-चीं की सुमधुर ध्वनि करती हुई दिखाई दे रही है। पर्यावरण संरक्षण का सजग प्रहरी बनकर गौरैया संरक्षण के लिए इस प्रयास की जिले के उच्च अधिकारियो और कई जन्रातिनिधियो ने भी सराहना की है। गौरैया सहित चिड़िया की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणादायी कदम साबित हो रहा है। महिलाओ द्वारा वेस्ट वूडन प्लाई, कूलर ग्रास, वेस्ट कार्टून और मिट्टी के बर्ड हाउस बनाये जा रहे जो पक्षियों के संरक्षण लिए एक सराहनीय कदम है।
20 मार्च को भारतवर्ष में गौरैया दिवस मनाया जाता है. ऐसे में महिला मंडल की टोली कई जगह पर महिलाओं को गौरेया सखी के रूप में भी नियुक्त कर रही है. संस्था द्वारा अब तक 100 से ज्यादा महिलाओं को गौरिया सखी बनाया जा चुका. इतना ही नहीं युवाओं की टोली इन सभी को विशेष शपथ भी दिलाती है और इन सभी गौरिया सखी द्वारा मिट्टी के बर्तन वितरित किये जाते हैं, जिसमें कि सभी सुबह शाम पक्षियों के लिए पानी रख सकें इस मुहिम का विशेष फायदा भी देखने को मिलता है लोग पक्षियों के लिए पानी भी रखते हैं जब गौरिया उनके यहां पानी पीने और बर्ड हाउस में आती है तो वे उसकी फोटो खींचकर भी हमें भेजते हैं।
लॉकडाउन में महिला मंडल द्वारा सेल्फी विद परिंडा अभियान शुरू किया उस वक़्त कई पक्षियों को भूख-प्यास से तड़पते देखा। वह वक्त ऐसा था जब समूची मानव जाति घरों में कैद थी। तब बेजुबान जानवरों-पक्षियों को ना खाना मिला और ना पानी। तब मंडल ने सेल्फी विद परिंडा अभियान शुरू किया और घरों के बाहर छोटी चिड़िया गौरैया आने लगी तभी सभी ने सोचा की क्यों ना गौरैया के लिए स्थाई घर बनाया जाए और उसे लोगों में बांटा जाए। उसके बाद सभी ने मिलकर सोन चिड़िया मेरी बेटिया अभियान की शुरुवात की और आज कई बर्ड हाउस बन चुके है जिन्हें जिले के उच्च अधिकारियो की बेटियों के नाम से, दोस्तों व परिवारजनों की बेटियों के नाम से लगाये गए । सेल्फी विद परिंडा अभियान में मंडल की अपील पर पिछले तीन वर्षो में हजारो लोगो ने गौरैया के लिए परिंडे लगाये।
गर्मियों में चिड़िया उड़ का खेल, हाथ से रुमाल बनाकर माँ का खाना खिलाना, घर के खुले झरोखे में चिड़िया का आना ये सब विलुप्त सा हो गया है । गौरैया हमारे जीवन का हमेशा से अभिन्न अंग रही है आप बचपन से खुद को ढूँढना शुरू करेंगे तो गौरैया को पायेंगे आज हर एक घोंसला हमारे लिए माँ के आँचल के समान है क्योकि वहा जीवन पनप रहा है और जब जब नया जीवन जन्म लेता है तो प्रकृति आगे बढती है।
भावना पालीवाल : सामाजिक कार्यकर्ता, देवगढ़
गौरैया हमारी प्राकृतिक मित्र है और पर्यावरण में सहायक है। आने वाली पीढ़ी तकनीकी ज्ञान अधिक हासिल करना चाहती है, लेकिन पशु-पक्षियों से वह जुड़ना नहीं चाहती है। इसलिए हमें पक्षियों के बारे में जानकारी दिलाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
मीनल पालीवाल : अभियान प्रभारी, राजसमन्द