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अरावली की पहाड़ियों पर विराजित सेंड माता : नवरात्रि में रही भक्तों की भीड़

राजसमन्द Published by: Devakishan Paliwal-Nanalal Joshi Updated Mon, 26 Oct 2020 08:11 PM
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लसानी। (धर्मनारायण पुरोहित की कलम से...) क्षेत्र के प्रसिद्ध शक्ति स्थलों में शुमार सेंड माता मंदिर की महिमा का गुणगान आसपास सहित कई क्षेत्रों में आज भी मौजूद है। अरावली की तीसरे नंबर की चोटी पर बना यह मंदिर 100 किलोमीटर दूर से अपनी रमणीय स्थिति का आभास कराता है। लगभग 500 वर्ष पुराना है। यह मंदिर आदिकाल से शक्ति स्वरूपा मां अंबे का यशोगान करता हुआ भक्तों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है। यहां आने वाले हर भक्त की झोली कभी खाली नहीं रहती है ऐसी मान्यता है। 

● सेंड माता मंदिर का निर्माण आमेट ठिकाने के राव मान सिहं ने करवाया

आमेट ठीकाने के महाराजकुंवर ज्ञानसिंह चूंडावत के अनुसार सेंड माता मंदिर का निर्माण आमेट ठिकाने के राव मान सिहं ने करवाया था। बताया जाता है कि आमेट ठिकाने के राव विक्रम सं० 1679 में इन जंगलों में भटक रहे थे। उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं रहा ऐसे में वहां एक ऊंटनी पर सवारी करके महिला प्रकट हुई उसने राव को सही रास्ते का ज्ञान कराया तथा बताया कि मेरा मंदिर इस पहाड़ी पर बना दो ऐसा आदेश मिलने पर आमेट ठिकाने के राव द्वारा भेडियो की जन्मस्थली अरावली की इस मनोरम पहाड़ी पर एक गुफा के पास मंदिर बनवा कर के मूर्ति स्थापित की गई, जिसे आज लोडी सेंड माता के नाम से जाना जाता है। कुछ वर्षों बाद देवी ने राव को स्वप्न में ऊच्ची पहाडी पर मंदिर बनाने को कहा तब विक्रम सं० 1720 में राव मान सिहं ने चालिस फुट (बीस हाथ) लम्बें विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण में नीचे से पहाड़ी शिखर पर एक ईट सिर पर रखकर पहुचाने वाले साहसी श्रमिको को एक-एक ईट ले जाने के बदले एक सोने काटका देकर सम्मानित किया गया। 

● ऊंटनी को क्षेत्रीय भाषा में सेंड कहा जाता है इसलिए सेंड माता नाम से

जानकारी में यह भी आया कि कालान्तर में में देवगढ़ ठिकाने के शासकों ने मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार और सीढिया निर्माण तथा महारावत विजय सिहं के द्वारा देवी माँ की नवीन मूर्ति स्थापना करवाये जाने का उल्लेख मिलता है। ऊंटनी को क्षेत्रीय भाषा में सेंड कहा जाता है इसलिए सेंड माता नाम से जानी गई। 

● अरावली की तीसरी सबसे बड़ी चोटी पर बना हुआ भव्य मंदिर

मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है तथा यह अरावली की तीसरी सबसे बड़ी चोटी पर बना हुआ है। भव्य मंदिर के अंदर कांच की नक्काशी बनी हुई है वही मूर्ति संगमरमर की है। नवरात्रि में नौ दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों का विभिन्न पोशाकों से श्रृंगार करवाया जाता है तथा पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना की जाती रही है। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ा रहता है तथा यहां का नजारा किसी मेले से कम नजर नहीं आता।  यह राजस्थान ही नहीं वरन महाराष्ट्र गुजरात मध्य प्रदेश के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र बना हुआ है। बताया जाता है कि मंदिर प्रांगण के समीप एक बड़ी चट्टान है जिस पर निसंतान व्यक्ति द्वारा पत्थर फेंका जाता है यदि वह पत्थर वहां ठहर जाता है तो उसके संतान अवश्य होती है ऐसी मान्यता बताई जाती है। समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर दूरदराज के लिए देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए एक स्थान से कम नहीं है। इस मंदिर के प्रांगण से 100 किलोमीटर के दायरे में बसे गांव एक टापू से दिखते हुए नजर आते हैं वहीं अगर मौसम साफ हो तो यहां से 200 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ का किला भी नजर आता है। प्राकृतिक आपदाओं से कई बार दो-दो हाथ हो चूके इस मंदिर में आज तक जनहानि नहीं हुई है। यह माता का चमत्कार ही है वही भक्तों का विश्वास। सेंड माता मंदिर जाने के लिए देवगढ़ से 12 किलोमीटर दूर वाया ताल भीम रोड पर लसानी कस्बे एवं देवगढ़ से करेड़ा वाया मदारिया सड़क मार्ग पर मदरिया गांव से 6 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है। मंदिर राजसमंद, राजस्थान जिले के अंतर्गत आता है। 

● पालीवाल वाणी ब्यूरों-Devakishan Paliwal-Nanalal Joshi...✍️

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