मुंबई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यह यूनिट अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है। यह फैक्ट चेक यूनिट केंद्र सरकार के बारे में सोशल मीडिया में वायरल हो रही फर्जी सूचनाओं और पोस्ट की पहचान करने के साथ उसे प्रतिबंधित करने के लिए बनाई जानी थी।
नियमों में फर्जी, झूठा और भ्रामक शब्द किसी परिभाषा के अभाव में अस्पष्ट हैं। जनवरी 2024 में जस्टिस गौतम पटेल और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ के अलग-अलग फैसले के बाद यह मामला टाई-ब्रेकर जज के पास आया था। जस्टिस चंदुरकर ने कहा कि आईटी एक्ट में संशोधन अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करते हैं। सरकार ने 2023 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में संशोधन किया था। इसके नियम 3 में केंद्र को झूठी ऑनलाइन खबरों की पहचान करने के लिए फेक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार दिया गया था।
ड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा समेत अन्य की याचिकाओं में तर्क दिया गया कि संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 की शक्तियों से परे थे। ये संविधान के समानता के अधिकार और किसी भी पेशे को अपनाने या कोई व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते थे। न्यूज वेबसाइट सीधे इसके दायरे में नहीं आतीं, लेकिन सोशल मीडिया वेबसाइट और वेब होस्टिंग सर्विस आती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को भी रद्द किया CJI चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 11 मार्च के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाने पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका पर यह फैसला दिया।