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पत्नी को उसके माता-पिता की आर्थिक मदद करने से रोकना क्रूरता : हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश Published by: paliwalwani Updated Mon, 15 Apr 2024 10:08 PM
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जस्टिस रोहित आर्य और न्यायमूर्ति संजीव एस कलगांवकर की हाई कोर्ट की बेंच ने कहा

जबलपुर. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई पति अपनी पत्नी द्वारा अपने माता-पिता को आर्थिक रूप से समर्थन देने के कार्य पर आपत्ति जताता है, तो यह क्रूरता के समान होगा. जस्टिस रोहित आर्य और न्यायमूर्ति संजीव एस कलगांवकर की हाई कोर्ट की बेंच ने आगे कहा कि पत्नी के नियोक्ताओं से शिकायत करना कि उन्होंने उसकी (पति की) अनुमति के बिना उसे नौकरी पर कैसे रखा, यह पत्नी के साथ “गुलाम” के रूप में व्यवहार करना है. उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 19 के तहत पति द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

पति ने अपनी याचिका में पारिवारिक अदालत के एक फैसले को चुनौती दी थी, जिसके तहत अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत उसकी पत्नी की याचिका को स्वीकार कर लिया था और तलाक की डिक्री दे दी थी.

क्या है मामला : अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) का विवाह अप्रैल 2002 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था, हालांकि, वे वर्तमान में फरवरी, 2009 से पिछले 15 वर्षों से अलग-अलग रह रहे हैं. शादी के 8 साल बाद पेशे से डॉक्टर पत्नी ने फैमिली कोर्ट के समक्ष HMअधिनियम की धारा 13 के तहत एक याचिका दायर की.

जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके पति के पास कमाई का कोई स्रोत नहीं था और शादी का उसका एकमात्र इरादा पत्नी की आय से एक शानदार जीवन जीना था. महिला ने यह भी आरोप लगाया कि शादी के बाद उसका पति उसे सागर स्थित अपने घर ले गया और मांग की कि वह अपने माता-पिता से नाता तोड़ ले. पति नहीं चाहता था कि उसकी पत्नी अपने माता-पिता पर कुछ खर्च करे.

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