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85 लाख के चैक अनादरण मामले में संस्था सहित मां एवं बेटे को 1-1 साल की जेल और 1.39 करोड रूपये जुर्माना

मध्य प्रदेश Published by: Paliwalwani Updated Fri, 10 Dec 2021 02:36 PM
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बुरहानपुर: पिछले 8 साल से लंबित 85 लाख रूपये के चैक अनादरण के मामले के बहुप्रतिक्षित महत्वपुर्ण प्रकरण में बुरहानपुर न्यायलय ने महत्वपुर्ण फैसला देते हुए चैक जारी कर्ता संस्था सिद्धीविनायक पावरलुम बुनकर सहकारी संस्था की अध्यक्ष और उपाध्यक्ष मां (श्रीमती रजनी सोनी) तथा बेटे (श्री विशाल सोनी) सहित 3 को 1-1 साल जेल की सजा के साथ-साथ 1.39 करोड का जुर्माने का आदेश पारित किया।

उल्लेखनिय है कि परिवादी श्रीराम तोषनीवाल की ओर से अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने यह केस वर्ष 2014 में न्यायालय में लगाया था और तब से 8 साल बाद वर्तमान जे. एम.एफ.सी. बुरहानपुर ( श्री आयुष कनेल साहब) के न्यायालय ने यह फैसला सुनाया।

परिवादी श्रीराम तोषनीवाल की ओर से पैरवीरत अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल से 8 वर्ष की देरी के संबंध में पूछे जाने पर उन्होने बताया कि, हालांकि चैक अनादरण के मामलों में 6 माह के भीतर प्रकरण को निपटाए जाने का भरपुर प्रयास करने का कानून है, किंतु यह भी आदेश है कि आरोपी / अभियुक्त को बचाव का पुरा पुरा मौका मिलना चाहिए

जिसका सहारा लेकर इस मामले में ऐसे कई मौके आए जब आरोपीगण की ओर से बार-बार दस्तावेजो के प्रगटीकरण के लिए अनेको आवेदन तथा उनकी निरस्ती के बाद इन आदेशो की अनेको रिवीजन तथा उन रिविजनो की निरस्ती के बाद मा. उच्च न्यायालय में याचिका के अलावा, मा. न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के बदले जाने के आवेदन तथा कोविड- 19 महामारी की अवधि जैसे कई कारण रहे जिस वजह से उक्त मामले के निराकरण में अप्रत्याशित 8 वर्ष से अधिक का समय लग गया।

अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने यह भी बताया कि न्यायालय की ओर से शीघ्रअतिशीघ्र अंतिम निराकरण करने की कोशिश करते हुए आरोपीगण के विरुद्ध व्यर्थ के आवेदनों पर जुर्माना भी लगाया गया किंतु ऐसे जुर्माने की रकम उक्त प्रश्नाधीन चैक की रकम 85 लाख के मुकाबले लगभग नहीं के बराबर होती थी ऐसी स्थिती में उक्त जुर्माने से आरोपीगण पर कोई प्रभाव नही पडते हुए ऐसे व्यर्थ के आवेदन के कारण भी उपरोक्त अप्रत्याशित विलंब हुआ।

इसके अलावा समय गुजरने के साथ विलंब होने से सामान्यतः तीन से चार वर्ष की अवधि के दौरान न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का तबादला होने से और फिर नए पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रकरण तथा आरोपीगण के कंडक्ट को समझने में देरी होना भी विलंब का एक अतिरिक्त कारण रहा। परिवादी के अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने यह भी कहा कि प्रकरण का सुखद पहलु यह भी है कि इस मामले में पिछले 8 साल अप्रत्याशित विलंबन के दौरान प्रारंभ से अंत तक पहुंचने तक एक ही अधिवक्ता के रूप में उन्होने (श्री मनोज कुमार अग्रवाल) ही मामले को कडक्ट किया

ऐसी स्थिती में प्रकरण का कोई भी पहलु क्षीण / विलोपित नही हुआ, अन्यथा अधिवक्ता बदल जाने से भी कभी-कभी प्रकरण को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। अधिवक्ता श्री अग्रवाल ने कहा कि उनके लिए यह केवल एक कस था, जिसमें वे अपने पक्षकार द्वारा दिए गए मामले के तथ्यों को कानून के अनुसार मा. न्यायालय के समक्ष रखकर मा. न्यायालय को अपने पक्षकार के पक्ष में संतुष्ट करने में सफल रहे।

अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने यह भी कहा कि इस मामले को सफलतापूर्वक पुर्ण करने में उनके सहयोगी अधिवक्ता द्वय श्री सत्यनारायण बाघ के अलावा एडवोकेट श्रीमती अनिता मनोज, श्रीमती दिक्षा हर्ष एवं असिस्टेंट / भावी – अधिवक्ता श्री अजहर हुसैन का भी अमूल्य सहयोग 

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