Sahara India Case : कभी देश की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार रही सहारा इंडिया में एक समय देश के करोड़ों लोगों ने निवेश किया था. लेकिन कंपनी के कामकाज में पारदर्शिता ना होने और वित्तीय अनियमितताओं के चलते इसमें कई लोगों की गाढ़ी कमाई का पैसा फंस गया था.
मोटा रिटर्न पाने के लालच में लोगों ने सहारा की कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये का निवेश किया. लेकिन मैच्योरिटी पर इन कंपनियों ने निवेशकों को पैसा देने के बजाय ठेंगा दिखा दिया. अब ये जिंद एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है और फिर सहारा सेबी विवाद (Sahara India Case) सुर्खियों का हिस्सा है.
पटना हाईकोर्ट ने सहारा सहारा प्रमुख सुब्रत राय को 11 मई 2022 को अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने राय को किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार कर दिया। सहारा कंपनी ने विभिन्न स्कीम में हजारों उपभोक्ताओं से निवेश के नाम पर पैसा जमा करवाया था।
अवधि पूरी होने के बाद भी पैसे नहीं लौटाया। इस मामले में 2000 से अधिक लोगों ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायाधीश संदीप कुमार की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता प्रमोद कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सहारा को 27 अप्रैल 2022 तक का समय दिया था। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि सहारा के अधिकारी अदालत को बताएं कि वह कब और कैसे निवेशकों का भुगतान करेंगे। सहारा की तरफ से ऐसी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद अदालत ने सहारा प्रमुख सुब्रत राय को हाजिर होने का आदेश जारी कर दिया। कोर्ट ने सारी दलील सुनने के बाद कहा कि हजारों लोगों की गाढ़ी कमाई पर कोई ऐसे कुंडली मारकर नहीं बैठ सकता। लोगों के पैसे ब्याज समेत लौटाने ही पड़ेंगे।(Sahara India Case)
सहारा इंडिया (Sahara India) की शुरूआत साल 1978 में हुई थी। सहारा स्कैम (Sahara scam) मुख्य रूप से सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल ऐस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SHICL) से जुड़ा है। बात 30 सितंबर, 2009 की है। सहारा ग्रुप की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में आवेदन (DRHP) दाखिल किया था। डीआरएचपी में कंपनी से जुड़ी सारी अहम जानकारी होती है। जब सेबी ने इस डीआरएचपी का अध्ययन किया, तो सेबी को सहारा ग्रुप की दो कंपनियों की पैसा जुटाने की प्रक्रिया में कुछ गलतियां दिखीं। ये दो कंपनियां SHICL और SIRECL ही थीं।
इसी दौरान 25 दिसंबर 2009 और 4 जनवरी 2010 को सेबी को दो शिकायतें मिलीं। इनमें कहा गया कि सहारा की कंपनियां वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर (OFCDs) जारी कर रही है और गलत तरीके से धन जुटा रही है। इन शिकायतों से सेबी की शंका सही साबित हुई। इसके बाद सेबी ने इन दोनों कंपनियों की जांच शुरू कर दी। सेबी ने पाया कि SIRECL और SHICL ने ओएफसीडी के जरिए दो से ढ़ाई करोड़ निवेशकों से करीब 24,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। सेबी ने सहारा की इन दोनों कंपनियों को पैसा जुटाना बंद करने का आदेश दिया और कहा कि वह निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ उनका पैसा लौटाए।
इस दौरान वित्त राज्यमंत्री ने कहा था कि सेबी (SEBI) को 81.70 करोड़ रुपये के लिए 53,642 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट / पास बुक से जुड़े 19,644 आवेदन मिले हैं. सरकार ने यह भी बताया था कि शेष आवेदन का SIRECL और SHICL द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों में रिकॉर्ड ट्रेस नहीं हो पा रहा.
अब सहारा ने फिर से सेबी (SEBI) पर निवेशकों के 25,000 करोड़ रुपये रखने का आरोप लगाया है. इससे पहले भी सहारा की तरफ से यह बात कही गई है. सहारा ने पत्र में लिखा कि वह (सहारा) भी सेबी से पीड़ित है. हमसे दौड़ने के लिए कहा जाता है लेकिन हमें बेड़ियों में जकड़ कर रखा गया है.