एप डाउनलोड करें

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग शुरुआत से ही विवादो के घेरे में : सरकार पूरे प्रकरण का गंभीरता से संज्ञान ले

इंदौर Published by: Sunil Paliwal-Anil Bagora Updated Sun, 06 Dec 2020 01:47 PM
विज्ञापन
Follow Us
विज्ञापन

वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें

इंदौर । भ्रष्टाचार में लिप्त भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के स्थान पर नियुक्त की गई राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग आते ही प्रथम चरण में विवादों के घेरे में आ गया है। “प्रतिवर्ष एमबीबीएस दाखिलों के लिए न्यूनतम शर्ते नियमावली  2020” के नाम से भारत के राजपत्र पर जारी की गयी अधिसूचना में नए सत्र में आने वाले मेडिकल कॉलेज के प्री -क्लीनिकल विशेषग्यता के अंतर्गत तीन विभाग एनाटोमी फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री में गैर-एमबीबीएस मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों का अनुपात 30 / 50 प्रतिशत  से घटाकर मात्रा 15 प्रतिशत कर दिया है जबकि माइक्रोबायोलॉजी और फार्माकोलॉजी विशेषग्यता में से पूर्ण रूप से हटा दिया गया है प्इन पांच विशेषज्ञताओ के मेडिकल एमएससी / पीएचडी  योगयता धारक नॉन-मेडिकल शिक्षक, जो की एक वैज्ञानिक की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते है, एनएमसी  के इस फैसले से बुरी तरह क्षुब्ध है। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग से अपेक्षित था की वह भूतपूर्व भारतीय आयुर्विज्ञान ● परिषद् के दिशा निर्देश एवं नियमावली को लागू करेगा। जारी विज्ञप्ति में लिखा गया था कि एनाटोमी, फिजियोलॉजी,,फार्माकोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग में 30 प्रतिशत और बायोकेमिस्ट्री विभाग में 50 प्रतिशत का अनुपात मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों का होगा। इस विज्ञप्ति के द्वारा संभंधित लोगो / पदाधिकारियों एवं हितकारियो से दिशा निर्देशों के लिए मशवरे लिए गए थे। एनएमसी के इस दुर्भागयपूर्ण और विपरीत रवैये से मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षक आश्चर्यचकित रह गए है। एक वर्ग के लोगो ने मेडिकल एमएससी पीएचडी धारक वैज्ञानिक शिक्षकों को सुनिश्चित व्यवस्था से हटाने के लिए शोर मचा रखा है जिसका अनुचित कारण  नया पाठ्यक्रम और चिकित्सा शिक्षा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा बताया  गया है।

● पाठ्यक्रमों से जुडी ज़रूरी दिशा निर्देशों की व्याख्या अपने आप ही कही खो गई

मेडिकल कॉलेजो में गैर चिकित्सा शिक्षकों का योगदान आज से नहीं बल्कि सं 1960 से है जब मुदलियार कमिटी के सुझाव और सिफारिशों पर गैर चिकित्सकीय विषयो में गुणवतापूर्ण शिक्षक उपलब्ध कराने हेतु विज्ञान से जुड़े छात्रों के लिए एमएससी पाठ्यक्रम की शुरुआत की गयी थी। पूर्व में एमएससी पाठ्यक्रम का नियंत्रण भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान के अधीन था और उन्ही के निर्देशानुसार मेडिकल कॉलेज में यह विषय पढ़ाए जाते थे। समय के साथ-साथ बिना किसी कारण या लिखित वक्तवय के भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान ने अपने अधीनस्थ इन पाठ्यक्रमों का संज्ञान लेना छोड़ दिया और  1956 में भारतीय  आयुर्विज्ञान परिषद् अधिनियम की प्रथम सूची में दर्ज इन पाठ्यक्रमों से जुडी ज़रूरी दिशा निर्देशों की व्याख्या अपने आप ही कही खो गई। एक वक़्त था जब मेडिकल एमएससी की महत्वता को ध्यान में रख कर तकरीबन 95 मेडिकल कॉलेजो में यह पाठ्यक्रम चलाया जाता था जो की अब मात्रा 35 कलजो तक ही सीमित  रह गया है।

● मेडिकल एमएससी पीएचडी वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया पूरी तरह से बाधित करने की मांगे एवं कोशिशे अपने चरम पर

ज्ञात रहे की मेडिकल एमएससी पाठ्यक्रम दुसरे एमएससी के पूरी तरह से अलग हैए गैर चिकित्सा विशेषज्ञताओ में मेडिकल एमएससी का पाठ्यक्रम एमडी पाठ्यक्रम पर आधारित है।  दोनों की पाठ्यक्रम मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी ऑफ़ मेडिसिन के तहत चलाये जाते है। एमबीबीएस कर चुके स्नातक उम्मीदवार छात्र पहले की तुलना में अब ज़्यादा संख्या में गैर चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों में एमडी करने के लिए लिए आगे आने लगे है जिससे की, इनके अनुसार, रोज़गार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है, अतः समाधान के तौर पर मेडिकल एमएससी पीएचडी वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया पूरी तरह से बाधित करने की मांगे एवं कोशिशे अपने चरम पर है। रोज़गार प्रतिस्पर्धा जैसे भ्रामक तथ्यों को दरकिनार कर यदि देखा जाए तो भारत के कई मेडिकल कॉलेजो में रोज़गार उपलप्ध है, फिर वो चाहे दूरदराज़ इलाको में हो या दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रो में।  वास्तविकता में कई बार रिक्तिया खाली चली जाती है परतु इन रिक्तियों को भरने के लिए उचित योग्यता और अनुभव वाले शिक्षक नहीं मिलते है। ऐसे मेडिकल कॉलेजो में पढाई और लेबोरेटरी से जुड़े काम जैसे की कोरोना की जांच आदि, कुशल, सक्षम एवं दक्ष मेडिकल  एमएससी पीएचडी वैज्ञानिकों द्वारा ही संभव हो पाए है।

● गैर चिकित्सक शिक्षकों में भय और असमंजस की स्थिति बनी

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग  जारी अधिसूचना के मुताबिक़ नयी नियमावली आगामी 2021-22 के नए सत्र से लागू की जाएंगीप्  बावजूद इसके गैर चिकित्सक शिक्षकों में भय और असमंजस की स्थिति बनी हुई है क्यूंकि इस नियमावली को गैरकानूनी तरीको से वर्तनाम में चल रहे मेडिकल कॉलेजो में ज़बरदस्ती लागू करा जाएगा अथवा इसका भरसक प्रयास भी किया जाएगाप् इस विषम असामंजस्य की स्थिति पर अभी तक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

● गैर चिकित्सक मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षक से रोज़गार या उससे जुड़े अवसरों को उनसे छीन लिया

यद्यपि भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजो से सभी एमडी धारक शिक्षकों का लेखा जोखा और विवरण अपने पास सुनिश्चित किया है परन्तु अपने छद्मवेश रवैये के कारण गैर चिकित्सकीय शिक्षकों का विवरण कभी न लिया है और न ही कभी लेने का कोई प्रयास तक किया है। प्रखर अनुमान के तौर पर गौर किया जाए तो भारत देश में लगभग 4000-5000 तक या उससे भी ज़्यादा मेडिकल एमएससी पीएचडी धारक गैर चिकित्सक शिक्षक आचार्य, सेह आचार्य,सहायक आचार्य अथवा वरिष्ठ प्रदर्शक के तौर पर मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजो में कार्यरत है. राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग द्वारा जारी इस नयी अकारण नियमावली  की वजह से गैर चिकित्सक मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षक से रोज़गार या उससे जुड़े अवसरों को उनसे छीन लिया गया है।  

● एक विशेष वर्ग के अहंमानी एमडी गैर चिकित्सको के लिए वीभत्स ख़ुशी लेकर आयी 

पक्षपात की मिसाल देती यह नयी नियमावली जहाँ एक विशेष वर्ग के अहंमानी एमडी गैर चिकित्सको के लिए वीभत्स ख़ुशी लेकर आयी है वही प्रखर, कुशल, दक्ष, देश हितो के लिए समर्पित मेडिकल एमएससी पीएचडी वर्ग के लिए असमय, अकारण और अनचाही परेशानिया लेकर आयी है। इस दुर्भाग्यपूर्ण प्रकरण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय मेडिकल एमएससी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ श्रीधर राव ने पालीवाल वाणी को बताया है की मेडिकल एमएससी पीएचडी धारक गैरचिकित्सको की मेडिकल कॉलेजो में नियुक्ति और उनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा कोई नयी या अनोखी बात नहीं है। दुनिया भर के विकसित और विकासशील देशो में कुशल वैज्ञानिको द्वारा गैर चिकित्सक विषयो को पढ़ाये जाने का प्रचलन है। पश्चिमी देशो के श्रेष्ट चिकित्सा संस्थानों में 50 से 60 प्रतिशत तक वैज्ञानिक ही शिक्षक की भूमिका निभाते है। यहाँ तक की चिकित्सा क्षेत्र में लिखी गई कई महत्वपूर्ण किताबें या उसके अध्याय भी एमएससी पीएचडी वैज्ञानिकों द्वारा की लिखे गए है। 

● दुष्प्रचार और भ्रांत धारणाये फैलाई गई 

मेडिकल एमएससी और एमडी का पाठ्यक्रम ना केवल एक सामान है बल्कि मेडिकल एमएससी पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में विद्यार्थियों को प्रथम वर्ष एमबीबीएस के प्रारूप के अनुसार शरीर रचना विज्ञानं, शरीर विज्ञान और जैव रसायन विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय भी पढ़ाये जाते है। राष्ट्रीय मेडिकल एमएससी टीचर्स एसोसिएशन महासचिव श्री अर्जुन मैत्रा ने आगे बताया है की मेडिकल एमएससी जन - साधारण नहीं होते, जैसे की उनके लिए दुष्प्रचार किया जाता रहा है और भ्रांत धारणाये फैलाई जाती रही है। यद्यपि स्नातक डिग्री में फर्क हो सकता है परन्तु स्नातकोत्तर डिग्री सभी की एक प्रकार है और इन शिक्षकों की विशेष सेवाएं इनकी स्नातकोत्तर डिग्री की वजह से ही संभव हैप् डॉ राव ने आगे यह भी बताया की हमारे चिकित्सा सहयोगियो  की भाँती मेडिकल  एमएससी पीएचडी शिक्षक भी एमबीबीएस को पढ़ाये जाने वाले नए पाठ्यक्रम के लिए प्रशिक्षित किये जा चुके है और यह वर्ग राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के मानकों  के अनुसार अपने विषयो में शिक्षा प्रदान करने, पाठ्यक्रमो का एकत्रीकरण , अन्य विषयो और विशेग्यताओ  के साथ संरेखण करने में सक्षम एवं निपुण है। अतः राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग को चाहिए की एक विशेष वर्ग के वर्चस्व को कायम करने और मेडिकल एमएससी पीएचडी धारक शिक्षक और वैज्ञानिकों को हटाने की बजाय उन्हें एक साथ जोड़े ताकि सभी वर्ग साथ मिलकर भारत को चिकित्सा क्षेत्र की अग्रिम श्रेणी में ले आयेप्  डिकल एमएससी पीएचडी शिक्षक एमबीबीएस पाठ्यक्रम का चिकत्सा विभाग के सहयोगियो के साथ मिलकर नए मानकों के अनुसार सीधे एवं क्षैतिज एकीकरण करने पूरी तरह समर्थ और दक्ष है। वर्त्तमान में जारी यह विवाद कोई नया नहीं है। सन 2018 में भी भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक षड़यंत्र की तरह ग़ैर चिकित्सक मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों के अनुपात को आधा कर और फिर उनकी नियुक्तियों से पूरी तरह समाप्त करने का प्रस्ताव रखा थाप् हालांकि तब भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान के कार्यभार की देख रेख कर रहे बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकार कर हज़ारो मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों को रहत की सौगात दी थीप्  परन्तु बेहद खेद की बात है की यह भय उत्पन्न करने वाला  यह प्रकरण फिर से उजागर किया गया है. चिकित्सा क्षेत्र में कई दशकों से सेवाएं देने के बावजूद आज भी वैज्ञानिक वर्ग की सुनने वाला और इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

● राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग में भी मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों कर कोई प्रतिनिधित्व नहीं आने दिया 

श्री मैत्रा ने स्पष्ट किया है की लम्बे अरसे से क्षेत्र में होने के बावजूद आज तक ना ही भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में बल्कि अब राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग में भी मेडिकल एमएससी पीएचडी शिक्षकों कर कोई प्रतिनिधित्व नहीं आने दिया गया है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक अल्पसंख्यक है परन्तु उनके हितो की रक्षा के लिए कोई रूपरेखा नहीं है। हमारी बातो, दलीलों को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है, जैसे की हमारा कोई अस्तित्व ही न हो। डॉ राव ने आगे बताया कि विज्ञानं से जुड़े किसी भी क्षेत्र का विकास और उसकी वृद्धि तभी संभव है जब उसमे हर वर्ग का योगदान हो। इसी तरह विविध प्रकार योगदान का गौरान्वित भारत देश की चिकित्सा शिक्षा के हित में है, बेहतर होगा की अहंकार की भावना को त्यागकर सभी वर्गों के श्रेष्ठ को चुन कर आगे बढ़ें।  

● सरकार पूरे प्रकरण का गंभीरता से संज्ञान ले

एक आशावादी के तौर पर डॉ. राव ने सरकार से दरख्वास्त की है इस पूरे प्रकरण का गंभीरता से संज्ञान ले, वैज्ञानिकों के हितों की रक्षा करें और भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के समय में लागू  मानकों को विस्थापित करें। वैज्ञानिकों के समुदाय को लगता है कि सरकार को पाठ्यक्रम को विनियमित करने और नैदानिक प्रयोगशालाओं में पेशेवर सेवाएं प्रदान करने वाले सदस्यों को पंजीकृत करने के लिए एक परिषद के गठन के साथ मेडिकल ड.ैब पाठ्यक्रमों की उपयोगिता पर एक स्पष्ट  निति का निर्माण करना चिहिएप् 2018 में लोकसभा में प्रस्तुत के प्रश्न “ क्या पहले से ही मेडिकल कॉलेजों में काम कर रहे हजारों गैर-चिकित्सा शिक्षक की नौकरियों के लिए किसी भी खतरे का सामना करना पड़ रहा है“ के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मंत्री माननीय श्री अश्विनी कुमार चौबे ने इसका खंडन किया थाप् वैज्ञानिकों का समुदाय आज भी इस सोच में है कि क्या मंत्रालय अपने शब्दों पर कायम रहेगा।

● पालीवाल वाणी ब्यूरो- Sunil Paliwal-Anil Bagora...✍️

? निःशुल्क सेवाएं : खबरें पाने के लिए पालीवाल वाणी से सीधे जुड़ने के लिए अभी ऐप डाउनलोड करे :  https://play.google.com/store/apps/details?id=com.paliwalwani.app  सिर्फ संवाद के लिए 09977952406-09827052406

और पढ़ें...
विज्ञापन
Next