● नीरस चुनाव में इतने मत प्रतिशत की किसी को नही थी उम्मीद, इंदौर ने कर दिखाया
● चुनोतिविहीन चुनाव ने सारे संशय को धो डाला, इतने मत प्रतिशत की तो भाजपा को भी नही थी उम्मीद
● स्व-प्रेरणा से लोग निकले घर से बाहर, हर वर्ग ने मतदान में दर्ज की बढ़-चढ़कर की हिस्सेदारी
● "बम कांड" और नोटा के मचे शोर के बीच शहर ने खामोशी से मतदान कर बनाया रिकार्ड
● अल्पसंख्यक वोटर्स ने चौकाया, नही की जमकर वोटिंग, न लगी लम्बी कतारें
● भाजपाई खेमे में अब लाखो से जीत के दांवे, कांग्रेसियो को नोटा पर अब भी भरोसा
"मेरा-मेराया"चुनाव था न पहले ही दिन से? कांग्रेस लड़ने को ही तैयार नही थी। भाजपा ने भी चेहरा रिपीट कर माहौल को ठंडा कर दिया। नाम की घोषणा होते ही भाजपा में कोई उत्साह नही जागा। शेष कसर " बम-कांड" ने पूरी कर दी। चुनाव पूरी तरह नीरस, सुस्त व उत्साहविहीन हो गया। लेकिन इंदौर तो इंदौर है न?इंदौर भी गुस्सा हुआ और उदास भी।
लेकिन इस गुस्से और उदासी को उसने लोकतंत्र के सबसे बड़े यज्ञ पर हावी नही होने दिया। शहर अपने अनमोल मतदान के कर्त्तव्य के प्रति स्व-स्फूर्त उठ खड़ा हुआ। गर्मी की परवाह किये बिन। परिणाम ये रहा कि जिस चुनाव में 40 प्रतिशत मतदान की उम्मीद नही थी, वहां मतदान 62 प्रतिशत तक पहुँच गया। ये इंदोरियो के जज़्बे का कमाल हैं। इंदौर के ऐसे ही "बोलबाले" होते रहे भिया...!!
इंदौर ने कर दिखाया। किसे उम्मीद थी कि इतना मतदान हो जाएगा? बेहद नीरस व उत्साहविहीन चुनाव था इस बार। शेष कसर दलबदल, नामांकन वापसी की घटना ने पूरी कर दी। चुनाव, चुनोतिविहीन हो गया। रहा सहा उत्साह भी जाता रहा। न प्रचार का शोर मचा, न सभा की धूम हुई। माहौल पूरी तरह ठंडा। सबके हाथ पैर फुले हुए थे। दल के भी, तंत्र के भी।
एक तरफ चुनाव आयोग का मत प्रतिशत बढ़ाने का दबाव और दूसरी तरफ ऐसे सुस्त हालात। लेकिन कहते है न इंदौर सबसे अलग है, जरा हटकर ही हैं। सोमवार को इस शहर ने एक बार फिर समूचे देश को बता दिया कि इंदौर और इन्दौरी कितने जगरूक हैं। माहौल कुछ भी हो। ये शहर अपना कर्तव्य नही भूलता। कहा तो 35-40 प्रतिशत मतदान का अंदेशा और कहा 61-62 प्रतिशत तक मतदान..!! 50-55 प्रतिशत मतदान को भी राहत माना जा रहा था कि इतना भी हो गया तो बहुत हैं। लेकिन " बोलबाले" इंदौर के।
चुनाव जरूर सुस्त रहा लेकिन इन्दौरी सुस्त नही हुए। वे चुस्त, दुरुस्त निकले। शहर में हुई राजनीतिक उठापठक से वह विचलित नही हुआ। जो राजी नाराजी शहर में मुखर थी, उसने शहर के मतदान प्रतिशत को प्रभावित नही किया। मतदान का प्रतिशत ये बात स्पष्ट बता रहा हैं कि इन्दौरी चौक-चौबारे पर बोलवचन कुछ भी कर ले लेकिन आखरी में करता वही है जो उसके मन को जँचता हैं। कल यानी सोमवार को इंदोरियो को ये ही जँचा कि " भिया ये अम-बम के चक्कर मे अपन को नही पड़ना है, अपन को तो वोट डालने चलना है"। वही हुआ भी। सुबह से ही स्वस्फूर्त मतदान शुरू हो गया। मौसम ने भी साथ दिया।
ठंडी हवाओं के साथ सुबह सुबह मौसम ऐसा सुहाना हुआ कि दिन चढ़ने से पहले पहले ही मतदान प्रतिशत का आंकड़ा 25 फीसदी को पार कर गया। दोपहर जरूर सुस्त रही लेकिन उतनी नही जितनी 40- 42 डिग्री तापमान के हिसाब से उम्मीद की जा रही थी। 38 डिग्री तापमान ने मतदान केंद्रों पर मतदाताओ की संख्या कम नही होने दी।
मध्यान्ह में गर्मी के दौर में भी पोलिंग बूथ सन्नाटे में नही डूबे। दिन ढलने के पहले तो मानो स्वयम मौसम भी मतदान करने आ पहुँचा। पहले अकस्मात घटाटोप। फिर तेज ठंडी हवाएं और फिर झम-झमाझम। जो गर्मी से डरे घर मे बैठे थे, वे मॉसम की इस मेहरबानी पर गदगद हो गए और जा पहुँचे पोलिंग बूथ। मतदान का आंकड़ा भी जा पहुँचा 61 प्रतिशत के पार।
चुनोतिविहीन चुनाव के सारे संशय भरचक गर्मी के मौसम में मतदान वाले दिन हुई बारिश के संग सँग धूल गए। सबसे ज्यादा डरी हुई थी भाजपा। उसके बाद जिला प्रशासन। जिला प्रशासन की भी मतदान प्रतिशत बढ़ाने की सारी तैयारी नामांकन वापसी की घटना से धूल-धूसरित हो गई थी। बावजूद इसके कलेक्टर आशीषसिंह की अगुवाई में समूचे सरकारी तंत्र ने हार नही मानी।
मतदान प्रतिशत के इज़ाफे को लेकर कलेक्टर के प्रयास जारी रहे। उन्होंने विभिन्न संस्थाओं, सामाजिक-व्यापारिक संगठनों, गेर सरकारी संगठनों, विभिन्न सोसायटी व ट्रस्ट के सहयोग से मतदान जागरूकता के वे सारे प्रयास किये, जो वे तय कर के बैठे थे। इसका नतीज़ा भी मत प्रतिशत के रूप में सामने आ गया। इसमें मतदान केंद्रों की व्यवस्थाओं का भी अहम भूमिका रही।
इस बार पोलिंग बूथ पर सिर्फ छांव ही नही, कूलर, पीने के ठंडे पानी से लेकर छाछ शरबत तक की व्यवस्था की गई थी। बुजुर्गों के लिये भी कुर्सियों का इंतजाम किया गया था। मतदान वाले दिन कही से भी कोई बड़ी अव्यवस्था की खबर नही आना इस बात का संकेत है कि कलेक्टर की अगुवाई में जिला, पुलिस, निगम आदि सरकारी अमले ने जबरदस्त काम किया।
बड़ा हुआ मत प्रतिशत भाजपा संगठन के परिश्रम और पसीने का भी प्रतिफ़ल हैं। ये चुनाव पूरी तरह से संगठन ने लड़ा। तन से भी, मन से भी और धन से भी। इस काम में पार्टी के दोनों अध्यक्ष, नगर इकाई के गौरव रणदिवे, जिला इकाई के चिंटू वर्मा और दो चुनाव संयोजक रवि रावलिया व आरएसएस से आये गोपाल गोयल की भूमिका सबसे अहम रही।
इनके साथ चुनावी कोर टीम ने दिन रात एक कर दिया। इस टीम के समक्ष कई किंतु, परन्तु आये लेकिन टीम अलसुबह से आधी रात के बाद तक चुनावी जमावट में डटी रही। ऐन वक्त पर खड़े हुए वित्तीय संकट से पार्टी संगठन ने ही पार पाया लेकिन चुनाव में अफरातफरी नही होने दी। उत्साहविहीन चुनाव में जमीनी नेताओ व कार्यकर्ताओ के उत्साह में कमी नही आने देने की चुनोती को भी पार किया और उन्हें चार्ज रखा।
मतदान प्रतिशत के लिए संगठन ने पूरी तरह आरएसएस की तर्ज पर काम किया और एक एक बूथ से सीधा संवाद व सम्पर्क बनाये रखा। सकेडो मीटिंग की गई। बूथ से लेकर मन्डल और पन्ना प्रमुख से लेकर विधानसभाओ की भी। बड़े नेताओं तक को बूथ की जवाबदेही दी गई कि आखरी दिन तो ये ही सम्भालना हैं। परिणाम सामने है। जिस चुनाव को " मरा मराया" मान लिया गया था, उसमे भाजपा संगठन ने टीम वर्क से प्राण फूंक दिए।
भाजपा में अब लाखो की जीत के दांवे शुरू हो गए हैं। कांग्रेस अभी भी नोटा से आस लगाए बैठे है। लेकिन भाजपाई अभी से 10-11 लाख से ऊपर की जीत बताने लगे हैं। कांग्रेस का कहना है कि ये जीत शब्द ही बेमानी है। सामने कोई था नही नही। लड़ाई हुई ही नही तो जीत केसी? भाजपा खेमे में मतदान के प्रतिशत का गुणाभाग कर जीत का आंकड़ा 11 लाख से ऊपर निकाला हैं। पार्टी नोटा को लेकर भी आश्वस्त हैं। उसका मानना है की ये आंकड़ा भी 50 हजार पार नही जाएगा। जबकि कांग्रेस का दांवा लाखो नोटा वोट का है। लेकिन कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका अल्पसंख्यक वोटर्स की तरफ से लगा। इस वर्ग के वोटर्स ने चौकाया। न लम्बी कतारे लगी न जमकर वोटिंग हुआ। भाजपा की बांछे इसके बाद से ज्यादा खिली हुई हैं।