एक समय था जब किसी स्टूडेंट्स की स्कूल में अध्ययन के अलावा टयूशन लगाना...समाज में शर्म का विषय हुआ करता था। ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चो के मा पिता भी इस बात को छुपाते थे कि उनका बच्चा किसी के यहां ट्यूशन पढ़ने जाता है। ट्यूशन यानी आपका बच्चा पढ़ने में मोहल्लों के अन्य बच्चो से कमज़ोर है। लेकिन आजकल ट्यूशन या कोचिंग क्लासेस जाना "स्टेट्स सिंबल" बन गया है। इसमें भी "ब्रांडेड" कोचिंग इंस्टिट्यूट होना यानी और ऊंचा रुतबा। हैरत की बात है कि ये ब्रांडेड कोचिंग इंस्टीट्यूट भी उन्ही बच्चों की भीड़ से भरे हुए है, जो पहले से ही नामचीन स्कूलो में पढ़ रहे हैं।
ये स्कूल भी सबसे ऊंची ओर सबसे अच्छी शिक्षा का ढोल पीटकर ही चार-पांच सितारा स्कूल के रूप में उगते जेआ रहे है। मंहगा ओर नामचीन स्कूल में होने के बाद भी ट्यूशन या कोंचिंग की जरूरत क्यों? क्या वहां की पढ़ाई घटिया है? घटिया है तो फिर मोटी फीस ओर ये भव्य स्कूल क्यो? लेकिन कोचिंग फिर भी आवश्यक क्यो? बस वो ही स्टेटस सिंबल कि पड़ोसी का बच्चा किसी नामचीन क्लासेस में जा रहा है तो अपना वाला भी जाएगा। अन्यथा जो शिक्षा के क्षेत्र में नाम कमाने वाले है...वो तो सामान्य स्कूल या सरकारी स्कूलों से भी पढ़कर ऊंचाई पा रहे है।
ये कोचिंग के नाम से बनी नई दुकाने तो एक तरह से विद्यार्थियों में भी असमानता के बीज ही बो रही है। अलग बस्ता। अलग ड्रेस। अलग टी शर्ट। अलग वेन। सब कोचिंग के नाम छपी हुई है। बस ये नाम ही अहम का हिस्सा हो गए है। नव धनाढ्य वर्ग के लिए। उन्हें बस इन इंस्टीट्यूट में अपना बच्चा भेजना भर है बस। वहां क्या हो रहा है, इससे कोई मतलब नही। न समय इतना। पैसे कमाने से ही वक्त नही। पेरेंट्स की चिंता और चिंतन का विषय समाज मे अपने स्टेटस मेंटेन करने तक सीमित है। पढ़ाई लिखाई भी उसी का हिस्सा हो चला है। इसी मानसिकता का पोषण करने के लिए शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में " धंधा" शुरू हुआ है।
इंदौर को "एजुकेशन हब" के नाम से प्रचारित कर ये सब शिक्षा की दुकानों ने कब्ज़ा जमा लिया है। लेकिन इन दुकानों के अंदर हो क्या रहा है? इसकी फिक्र किसी को नही। उन पेरेंट्स को भी नही जो अपने बच्चों को यहां भेज रहे है तो फिर दूसरा क्यो करने लगा? इन इंस्टीट्यूटस के अंदरखाने की अराजकता बाहर आती ही नही। जिम्मेदारी तो अखबारों की भी प्रमुख है लेकिन उनके मुंह पन्ने भर भर विज्ञापन देकर बन्द कर दिए गए है। फीस ओर रूल्स व रेगुलेशन के पालन करवाने वाला जिम्मेदार तंत्र भी इन महंगी शिक्षा की दुकानों के आगे नतमस्तक है। कार्रवाई करने वाले तंत्र से जुड़े साहब बहादुरों के नोनिहालो को यहां मुफ़्त में दाखिला मिल जाता है। शेष सब जाए भाड़ में...!!
लेकिन सवाल उन मा बापों से है जो इन इंस्टीट्यूट में अपने नोनिहालो को भेजकर निहाल हो रहे है। क्या कभी उपर जाकर देखा है कि आपका बच्चा इन कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाई के अलावा क्या कर रहा है? अपने बच्चे को घर के दरवाजे से बिदा करने या इंस्टिट्यूट के नीचे छोड़कर आने और मोटी फीस जमा करने के अलावा कभी ये तलाशने की जहमत उठाई की इन शिक्षा की दुकानों के अंदर क्या चल रहा है?
ये सब सारे सवाल शहर की मशहूर एलन कोचिंग इंस्टीट्यूट की क्लासेस से बाहर आये एक वीडियो के बाद सामने आए है। वीडियो इंस्टीट्यूट की क्लॉस का है। पूरी भरी हुई क्लास में नोनिहाल लड़के लडकिया आलिंगनबद्ध हो रहे है। डांस कर रहे है। कमर और कूल्हे मटका रहे है। वह भी बेंच पर खड़े होकर। कुछ बच्चे इस खेल में शामिल है तो कुछ वीडियो बना रहे है। कुछ तालियां भी कूट रहे है। कुछ शर्मा भी रहे है। लेकिन शर्म से क्या होना है? रहना यानी पढ़ना तो उसी माहौल में है। या तो उसी माहौल में ढल जाओ या फिर "पिछड़े" कहलाओ।
आसानी माहौल में ढलने में रहती है और फिर ऐसे वीडियो सामने आते है। वीडियो में क्लॉस रूम में, इंस्टीट्यूट की ड्रेस में ये सब चल रहा है। वीडियो में नजर आ रहे अधिकांश बच्चे नाबालिग है। लेकिन वीडियो में जो हरकतें हो रही है, वो बालिग की श्रेणी में भी नही आती। हालांकि वीडियो छोटा है लेकिन इन कोचिंग्स मे जो बड़ा चल रहा है, उसको उज़ागर करता है। एलन इंस्टीट्यूट के शहर के अलग अलग हिस्सों में महंगे सेंटर है। महज पांच सात पहले शहर में आये इस इंस्टीट्यूट ने शहर में कोचिंग को लेकर ऐसा माहौल तैयार किया कि यहां एडमिशन हो गया तो आपका बच्चा कितना भी ढपोरशंख हो...नाम कमा ही लेगा। ये बात और है कि इसी सपने को दिखाकर ये इंस्टीट्यूटस मोटा पैसा कमा रहे है।
याद है कि भूल गए भंवरकुआं क्षेत्र की वो जलती इमारत..जिसकी ऊंचाई से जान बचाने के लिए आपके ही घर के ये नोनिहाल छलांग लगा रहे थे और मौत के मुंह मे समा रहे थे? भूल ही गए होंगे न आप सब लोग लाक्षागृह बनी उस इमारत व कोचिंग इंस्टीट्यूट को जिसके जरिये नोकरशाही दहाड़ मारकर बोली थी कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट को अब नियम कायदों के दायरे में लाएंगे। फिर क्या हुआ? नही पता न? तो फिर जब आपको ही अपने बच्चों की फिक्र नही तो फिर वो तंत्र आपके नोनिहालो की फिक्र क्यो करने लगा जो इन्ही इंस्टीट्यूटस से नियमित उपकृत होता है? और फिर समय तो आपके पास भी कहा है? आप भी तो चार चढ़ाव चढ़कर ऊपर जाने की ज़हमत नही उठाते की क्लासेस के नाम पर हो क्या रहा है? आप ऊपर नही चढ़ सकते तो आपका बच्चा तो नीचे आएगा ही...नैतिक पतन होगा ही...ऐसे वीडियो सामने आते रहेंगे ही।
खुलासा फर्स्ट का काम था आप सब पेरेंट्स को सावधान करने का। अब ये आप पर है कि आप इन दुकानों पर कितना दबाव बनाते हो? जिनको दबाव बनाना है, वो तंत्र तो स्वयम इनसे दबा हुआ है। आप तो नही दबे हुए हो। आप तो मोटी फीस बगेर नागा दे रहे हो न? तो फिर दबाओ न इन शिक्षा के नाम पर बनी महंगी दुकानों को जहा आपके बच्चे पढ़ाई के नाम पर आलिंगनबद्ध हो डांस कर रहे है...!!