सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जजों के राजनीतिक पद लेने से पहले 2 साल का कूलिंग-ऑफ पीरियड पूरा करने की मांग को खारिज किया। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के रिटायरमेंट और राजनीतिक पद लेने में दो साल का अंतर जरूरी होना चाहिए।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा- रिटायर्ड जज को कोई पद लेना चाहिए या नहीं, यह उस जज की समझ पर ही छोड़ देना चाहिए। बेंच ने बताया कि वे इस मुद्दे पर नहीं जा सकते कि कोई जज लोकसभा में जा सकता है या राज्यसभा में।
बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि संविधान के आर्टिकल 32 के तहत इस विषय पर डायरेक्शन नहीं दिया जा सकता है। कोई जज किसी पद को लेना चाहता है या नहीं, इस बात का फैसला उस पर ही निर्भर करता है।
बेंच ने काउंसिल से पूछा- बहुत सारे ट्रिब्यूनल ऐसे हैं, जहां रिटायर्ड जज ही पोस्ट ले सकते है। चुनाव लड़ना या कोई दूसरा राजनीतिक पद लेने का फैसला सुप्रीम कोर्ट नहीं ले सकता।
पिछले कुछ समय में 2 रिटायर्ड जज कुछ ही महीनों में गवर्नर बने हैं। इस बात का फैसला सरकार पर निर्भर करता है। कोर्ट ने पिटिशनर को फटकार लगाई कि आप लोग किसी विशेष व्यक्ति को राज्यपाल नहीं बनाना चाहते हैं, इसलिए यह याचिका दाखिल की है। इसी कारण से यह मुद्दा उठाया गया है।
काउंसिल के वकील ने कहा कि राजनीतिक पदों का ऑफर देना हमारा काम है। कोर्ट के पास कई संवेदनशील मामले आते हैं। इन मामलों में कोई प्रावधान ना होने से लोगों के मन में गलत धारणा बनती है। सरकार के दिए हुए पद अगर जज लेते है तो लोगों पर क्या असर पडे़गा। इस बात की सिफारिश चीफ जस्टिस और लॉ कमीशन ने भी की है कि रिटायरमेंट के बाद थोड़ा समय दिया जाना चाहिए।