एप डाउनलोड करें

अख़्तरी से अवधी तक: मालिनी अवस्थी की सुर-यात्रा और यतीन्द्र मिश्र का संगीत-लेखन—साहित्य आज तक 2025 का अद्वितीय संगम

दिल्ली Published by: paliwalwani Updated Wed, 26 Nov 2025 11:17 PM
विज्ञापन
Follow Us
विज्ञापन

वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें

  • लोक-संगीत की संवाहिका मालिनी अवस्थी और संगीत को नए आयाम देने वाले सम्मोहनकारी कथाकार यतीन्द्र मिश्र-साहित्य आज तक 2025 में रचा अप्रतिम समागम

रिपोर्ट : रविंद्र आर्य

नई दिल्ली.

मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम, इंडिया गेट में आयोजित साहित्य आज तक 2025 इस वर्ष भारतीय संगीत और साहित्य के इतिहास में एक अविस्मरणीय अध्याय बन गया।

मुख्य मंच पर लोक-संगीत की प्रखर प्रतिनिधि मालिनी अवस्थी और संगीत-जीवनी लेखन के सूक्ष्म अध्येता यतीन्द्र मिश्र का ऐसा संगम हुआ, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय संगीत केवल कला नहीं—बल्कि मिट्टी, इतिहास, संघर्ष और आत्मा का अनंत प्रवाह है।

21, 22 और 23 नवंबर 2025 को चले तीन दिवसीय महोत्सव में लोकधुनों से लेकर ग़ज़ल, ठुमरी, दादरा और अवधी-पूर्वांचली परंपरा तक कई सुर-कहानियाँ गूँजती रहीं। यह आयोजन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि भारतीय संगीत की जड़ों और उसकी परंपराओं को नए संदर्भ में समझने की अनूठी यात्रा थी।

बेग़म अख़्तर की विरासत—मालिनी अवस्थी और यतीन्द्र मिश्र की विशेष प्रस्तुति

21 नवंबर 2025 की शाम 5 बजे सत्र “अख़्तरी: उफ़ ये फ़साना-बेग़म अख़्तर की संगीत यात्रा” महोत्सव का सबसे भावपूर्ण और शोधपूर्ण प्रस्तुति-संग्रह बन गया।

मालिनी अवस्थी की गायकी-अख़्तरी की आत्मा का पुनर्जीवन

मालिनी अवस्थी ने ग़ज़ल, दादरा और ठुमरी की नजाकत को अपने स्वर-संपुट में समेटते हुए बेग़म अख़्तर की आत्मा जैसे मंच पर उतार दी। उनकी प्रस्तुति ने यह दिखाया कि जब लोक-संगीत और शास्त्रीय भाव मिलते हैं, तो परंपरा एक जीवित धरोहर बन जाती है। यतीन्द्र मिश्र का संगीत-विश्लेषण—अख़्तरी का पूरा रचनात्मक जगत जीवंत हुआ

संगीत-आलोचना और जीवनी लेखन के लिए प्रसिद्ध यतीन्द्र मिश्र ने इस सत्र में बेग़म अख़्तर के रचनात्मक संसार को विस्तृत रूप में सामने रखा। उन्होंने बेग़म अख़्तर के विभिन्न आयाम दर्शकों के सामने सरल भाषा में खोले—

● ‘रोटी’ फ़िल्म और अख़्तरी का सिनेमाई अध्याय

यतीन्द्र मिश्र ने बताया कि बेग़म अख़्तर केवल मंचीय कलाकार ही नहीं, बल्कि हिंदी सिनेमा की प्रारंभिक धारा में भी एक सशक्त उपस्थिति थीं।

‘रोटी’ फ़िल्म (1942) में उनका संगीत योगदान उस दौर में ग़ज़ल और ठुमरी को नए जनमानस तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम बना।

● दादरा, बोल-बनाओ और बँगला-ठुमरी की अनोखी शैली

उन्होंने समझाया कि बेग़म अख़्तर की दादरा शैली—उसकी नज़ाकत, ठहराव और ‘बोल-बनाओ’ की कला—उन्हें असाधारण बनाती है। ‘बोल बनाओ’ में शब्दों को गीत के भावों के अनुसार सँवारने की क्षमता—बेग़म अख़्तर को अद्वितीय बनाती है।

● ‘भोरे ही भोरे’-एक उदाहरण के रूप में

सत्र के दौरान यतीन्द्र मिश्र ने ‘भोरे ही भोरे’ जैसी रचनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे अख़्तरी बाई ने सुबह के राग, दादरा और भावपक्ष को अपनी अद्वितीय शैली से एक नई ऊँचाई दी।

यह गीत न केवल संगीत-प्रेमियों का प्रिय है, बल्कि शास्त्रीय परंपरा के भीतर उनकी समझ और साधना को भी प्रमाणित करता है।

● बेग़म अख़्तर: दर्द, तहज़ीब और गायकी का त्रिकोण

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अख़्तरी बाई फैजाबादी की गायकी केवल संगीत नहीं, बल्कि उनके जीवन-संघर्ष, सामाजिक स्थितियों और भीतर की तपस्या का संयोजन है—यही उन्हें ‘मल्लिका-ए-ग़ज़ल’ बनाता है।

लोक-संगीत और शास्त्रीयता—दो धाराएँ, एक ही सांस्कृतिक नदी

जहाँ मालिनी अवस्थी लोकधुनों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाती हैं, वहीं यतीन्द्र मिश्र संगीत की गहन परंपरा को शब्दों में इतिहासबद्ध करते हैं।

दोनों की एक साथ उपस्थिति ने दर्शाया कि लोक-संगीत और शास्त्रीय संगीत विरोधी ध्रुव नहीं—बल्कि भारतीय संस्कारों की दो प्रवहमान धाराएँ हैं, जिनका प्रवाह एक ही सांस्कृतिक समुद्र में मिलता है।

साहित्य आज तक 2025—विरासत और आधुनिकता का उत्सव

“राजजोग बाघा” द्वारा प्रस्तुत यह वार्षिक आयोजन इस बार संगीत-शोधकर्ताओं, युवा कलाकारों और परंपरा-प्रेमियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। तीन दिनों के इस महोत्सव ने यह फिर सिद्ध किया कि साहित्य और संगीत वह जीवित स्मृति हैं, जो समाज की आत्मा को दिशा देती हैं।

रविंद्र आर्य

  • विश्लेषणात्मक पत्रकार, लेखक और भारतीय लोक-संस्कृति के संवाहक
और पढ़ें...
विज्ञापन
Next