आज हमारा भारतवर्ष एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां चुनौतियाँ बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक कमजोरियों से भी बड़ी बनती जा रही हैं। जब देश की सीमाएं चौकस हैं, सेना सजग है और आम नागरिक देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत है, तब देश को किसी भी आतंकी मंसूबे से डरने की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब देश के भीतर ही विभाजनकारी राजनीति, जातीय विद्वेष और ऊंट-पटांग बहसें अपना ज़हर फैलाती हैं, तब खतरा केवल सीमाओं पर नहीं होता, बल्कि आत्मा पर होता है – राष्ट्र की आत्मा पर।
आज आवश्यकता है कि हर नागरिक, हर विचारधारा, हर पार्टी, हर समूह – सब मिलकर एक ही स्वर में बोलें – "राष्ट्र सर्वोपरि।" दुर्भाग्यवश, राजनीतिक स्वार्थ, टीवी डिबेट की टीआरपी और सोशल मीडिया की सनसनी में कुछ लोग देशहित की जगह आत्महित को रखकर गंदी राजनीति का सहारा ले रहे हैं। नफरत की भाषा और झूठे विमर्शों से देश का माहौल दूषित किया जा रहा है।
आतंकवाद किसी धर्म या जाति का नहीं होता, और उससे लड़ने के लिए विचारों की गोलियां नहीं, बल्कि एकजुट संकल्प की दीवार चाहिए। जब पूरा देश एक साथ खड़ा होता है, तभी आतंकी ताकतें कमजोर पड़ती हैं। यह इतिहास ने कई बार सिद्ध किया है – चाहे वह कारगिल युद्ध हो, मुंबई हमला हो या पुलवामा जैसी कायराना हरकतें।
आज यह जरूरी है कि हम गहरी सांस लें और आत्मनिरीक्षण करें – क्या हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं? क्या हम अपने बच्चों को एक ऐसा भारत सौंपेंगे, जो नफरत से विभाजित है या एक ऐसा भारत, जो प्रेम, साहस और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत है?
यदि हर भारतीय यह प्रण ले कि वह देशहित को सर्वोच्च स्थान देगा, नफरत की राजनीति को ठुकराएगा, और आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाएगा – तो कोई ताकत इस देश को डिगा नहीं सकती। यही समय है जब हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें, क्योंकि आने वाली पीढ़ियाँ हमसे यही सवाल पूछेंगी – “जब देश को आपकी जरूरत थी, तब आपने क्या किया?”