नितिनमोहन शर्मा...✍️
दो नेता। एक मुलाकत। कुछ बात। कई सवाल। कुछ कयास। कुछ हकीकत। ये सब हुआ है इंदौर में। ओर घटा भाजपा में। नेता थे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय। मुलाकात की जाजम बिछी विजयवर्गीय के निवास पर।खाने की टेबल पर। " 36 " समीकरण वाले दो नेताओ के बीच हुई इस " डिनर डिप्लोमेसी" ने "सरकार" को चौकाया भी ओर चौकन्ना भी किया। दो दिन पहले "सरकार" केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राजधानी दौरे से थरथरा रही थी। ये थरथराहट पूरी तरह कम हुई भी नही थी कि इस मुलाकात ने "सरकार" के फिसल जाने का खतरा बड़ा दिया। ऋतु भी पावस चल रही है जहाँ रपट जाने का खतरा हमेशा बरकरार रहता है। चाहे रास्ता हो या राजनीति। लिहाजा इस मुलाकात के मायने निकालने की जद्दोजहद भाजपाई हलकों में शुरु हो गई है।
प्रदेश भाजपा में सत्ता परिवर्तन की चल रही सुगबुगाहट के बीच दो बड़े नेताओं की एक मुलाकात ने प्रदेश की सियासत को गरमा दिया है। ये मुलाकात केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव ओर प्रदेश के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय के बीच हुई। दोनो नेताओ के बीच ये मुलाकात विजयवर्गीय के निवास पर हुई। बहाना बना सहभोज। मुलाकात को दोनो नेताओ ने शिष्टाचार भेट बताया। लेकिन इस " डिनर डिप्लोमेसी" ने प्रदेश भाजपा के कई क्षत्रपों को चौकाने के साथ चौकन्ना भी कर दिया। भोजन की टेबल के जरिये ये मुलाकात करीब दो घण्टे चली। इसके बाद सिंधिया का बयान आया- कैलाशजी के मार्गदर्शन में जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, उसे सहजता से निभाउंगा। इस बयान ने भाजपाई खेमे में ही नही, प्रतिपक्ष कांग्रेस हलकों के सियासी गर्मी घोल दी है। दोनो नेताओ की मुलाकात के बाद बाहर छनकर आई खबरें बता रही है कि इस मुलाकात में कुछ अहम बात हुई जिसका असर आने वाले दिनों में ताल तलैय्या की नगरी भोपाल में देखने को मिल सकता है।
सिंधिया-कैलाश की मुलाकात की ये जाजम महाँकाल की शाही सवारी के निमित्त बिछी थी। सिंधिया हर बरस उज्जैन से शाही सवारी में शामिल होंते है। इस बार भी उन्हें सवारी में जाना था लेकिन सीधे उज्जैन जाने के वे पहले इंदौर आये। दो दिन पहले ही विजयवर्गीय भी अमेरिका से इन्दौर लोटे थे। सिंधिया पहले राजा महाँकाल के दरबार मे हाजरी लगाकर आये और सीधे विजयवर्गीय के नंदानगर निवास पर पहुंचे। साथ मे पुत्र महाआर्यमान भी थे। क्रिकेट की सियासत के कारण दोनो नेताओ के बीच परस्पर प्रतिद्वंद्वीता के चलते ये मुलाकात सबके लिए चौकाने वाली तो थी ही, सिंधिया के मिजाज के प्रतिकूल भी थी। बावजूद इसके न केवल सिंधिया नंदानगर पहुंचे बल्कि पुत्र को भी साथ लेकर गए ओर कैलाश विजयवर्गीय से बेटे को शुभाशीष भी दिलवाया।
कहने को ये एक भोज मुलाकात थी। सार्वजनिक रूप से हुआ भी वही। डिनर टेबल तक तो विधायक रमेश मेंदोला, आकाश विजयवर्गीय, श्रीमती विजयवर्गीय ओर कैलाश केम्प के कुछ चुनिंदा सिपहसालार भी थे। लेकिन भोजन के बाद दोनो नेताओ की अलग से भी बात हुई। इस दौरान तीसरा ओर कोई नही था। ये मुलाकात ही सियासी पारे को पावस ऋतु की भीगी हवाओ में ऊपर चढ़ा गई।
इंदौर में हुई इस डिनर डिप्लोमेसी ने "भौपाल" के कान खड़े कर दिए। यहां एक दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह अपने सरकारी दौरे से "सरकार" को थरथरा गए थे। हालांकि शाह का राजधानी प्रवास राजनीति से पुरी तरह परे रहा लेकिन "सरकार" पूरे समय थरथराती रही। उसके ठीक एक दिन बाद इंदौर में सिंधिया-कैलाश मुलाकात ने "सरकार" की थरथराहट को कंपकपी में तब्दील कर दिया। अब मुलाकत हुई, कुछ बात हुई, क्या बात हुई....इस कयास में प्रदेश में संभावित "बदलाव" के दावेदारो को दुबला करना शुरू कर दिया है।
बंगाल प्रभार से मुक्त होने की खबरों के जरिये जहा एक तरफ विजयवर्गीय के डिमोशन के रूप में प्रचारित किया जा रहा था। वही इस मुलाकात ने विजयवर्गीय को फिर प्रदेश की सियासत के सेंटर में ला दिया है। ये बात और हे कि आजकल विजयवर्गीय आजकल ये दोहराते रहते है कि शिवराज के नेतृत्व में ही अगला चुनाव होगा लेकिन हकीकत वे अच्छे से जानते है। इसलिए वे अपनी तरफ आने वाली हर बाल को शिवराज के नेतृत्व वाले बयान से टर्न कर देते है। लेकिन सिंधिया का कैलाश विजयवर्गीय के मार्गदर्शन में काम करने के बयान ने भाजपाई हलकों में कई सवालों को एक साथ जन्म दे दिया है जिसका जवाब फिलहाल सिंधिया ओर कैलाश के अलावा किसी के पास नही। इस बयान के जरिये राजनीतिक पँडित विजयवर्गीय को आने वाले समय मे प्रदेश में अहम जिम्मेदारी मिलने से जोड़ रहे है।
बदले बदले से सरकार नजर आते है...कुछ इसी तर्ज पर इस बार महाराजा कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया नजर आए। कहा तो वे "अपने प्रोटोकॉल" को लेकर इतने सजग रहते है कि इसमें जरा सी कमी उनकी भृकुटियों को तान देती है और कहा वे अपने पुत्र और ग्वालियर राजघराने के उत्तराधिकारी को विजयवर्गीय से प्रणाम करवा रहे है। प्रदेश की क्रिकेट सियासत के कारण करीब एक दशक से दोनो नेता आमने सामने थे। ऐसे में रिश्तों में सुधार की पहल स्वयम सिंधिया द्वारा करना भी सबको चौका रहा है। एक समय था जब सिंधिया विजयवर्गीय केम्प को अपनी राजनिति के लेवल का ही नही मानता था। भाजपा में आने के बाद सिंधिया का विजयवर्गीय के निवास पर ये दूसरी बार जाना हुआ है। इसके पहले जब वे गए थे तो कैलाश विजयवर्गीय इंदौर में नही थे। तब भी सिंधिया ने विजयवर्गीय के परिवार के साथ लम्बा वक्त ही नही बिताया बल्कि भोजन भी किया था। सालभर में ये दूसरी मुलाकात हुई है।
इस मुलाकात के एक मायने मालवा निमाड़ की राजनीति से भी निकल रहे है। कैलाश विजयवर्गीय इस अंचल के प्रभावशाली नेता है। ये बात भाजपाई हलकों में स्टेब्लिश है। नतीज़तन सिंधिया में इस हिस्से में विजयवर्गीय का साथ मांगा है। ग्वालियर चंबल सम्भाग के बाद सिंधिया की राजनीति का केंद्र भी मालवा निमाड़ रहा है। पुरखो की रियासत का एक बड़ा हिस्सा इस अंचल तक था। लिहाजा सिंधिया परिवार के लिए मालवा हमेशा रुचि का विषय रहा है।