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तुम्हारा यूँ चले जाना

आपकी कलम Published by: आशीष कुमार Updated Fri, 18 Apr 2025 04:02 PM
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तुम्हारा यूँ चले जाना

तुम्हारा यूं आधा-अधूरा

छोड़कर जाना आज भी

मुझे परेशान करता है

ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें

अब याद नहीं करता या

तुमसे नफ़रत करता हूँ,

मैं तुमसे आखि़र

नफ़रत क्यों करूँगा

तुम तो मेरी वो

अधूरी मोहब्बत हो

जो सांसो में धड़कती

हो चाहत बनकर

तुम्हारे लिए तो मैंने ख़ुदा से

लाखों दुआओं मांगी हैं

हर दुआ में तुम्हारी खुशी

और सलामती मांगी है

मेरी धड़कनें तो तुम्हारी

सांसो की हवा बनकर

धड़कती हैं “सुकून“

बेचैनी और बेबसी मुझे

हर लम्हा तोड़ने की

कोशिश करती है पर

शायद उन्हें नहीं पता है

मैं एक ठुकराई हुई बद्द्आ हूँ

जो बस एक लाश की तरह है

और लाश के टुकड़े नहीं होते,

लाश को या तो जलाया जाता है

या दफ़नाया जा सकता है।

-आशीष कुमार

- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां editor@paliwalwani.com  URL | www.paliwalwani.com मेल करें. 

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