एप डाउनलोड करें

यह ऐसा देश हमारा

आपकी कलम Published by: Devdutt Paliwal Updated Fri, 15 Jul 2016 03:32 PM
विज्ञापन
Follow Us
विज्ञापन

वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें

ओ भरतवंश के लोगो
ओ मनु के प्रबल प्रतापी
यह भारत देश है मेरा
हैं इसकी कथा निराली

तुम चाहे कितना बाटो
हम नहीं हैं बाटने बाले
तुम कोशिश कितनी कर लो
हम मिलकर रहने वाले

हम करते हैं स्वागत दीपो से
खेलते हैं रंगो की होली
जहां नीर बदलता कोसों
और तीन कोस परबोली

 जहां  हिंदू  मुस्लिम सिख ईसाई
सब मिलकर पर्व मानते
सिंद्धांत अबल हैं जहाँ मगर
पर हिंदुस्तानी कहलाते 

 जब पथ मैं मिलता देवालय
तो शीश स्वयं झुक जाता
है सब धर्मो का संरक्षक
हम कहते  हैं भारत माता

पूरब पशिम उत्तर औ दक्षिण
ध्वनि एक सुनाई देती
यहाँ उंच और नीच का नाम हैं 
यहाँ तहजीव एक ही देती 

सदा जीवन  और सोच बड़ी
बस है यही हमारा नारा
हम जीयें सभी को जीने दें
है पहला सिद्धांत हमारा

ज्ञान ज्योति का केंद्र रहा
जो विश्व गुरू कहलाया
है क्या मूल्य शून्य का जीवन में
यह भी जग को हमने बतलाया

देवो ने लेकर जन्म  यहाँ
इसको धन्य बनाया
आदेश समझकर पिताश्री का
वन में जीवन बिताया

यह ऐसा देश हमारा
यह भारतवर्ष हमारा

जहाँ  पशुओं की करते हैं पूजा
वहीं नदियों को शीश झुकाते
यहाँ तुलसी की करते है पूजा
और सूरज को अर्क चढ़ाते

जहाँ  रंगबिरंगी पोशाकें
और है भाषाओ का मेला
जहाँ सूरज सबसे पहले उगता
है वह भारत ही अलवेला

करत है अपराध अगर
हम पहले न हाथ उठाते
देते है अवसर उसे प्रथम 
हर तरह उसे समझते

 जहाँ बसुधा है परिवार एक
हैम यह नीति सदा अपनाते
औरों के सुख मैं हो शामिल
हम सब खुशियां खूब मानते

जहा सिंद्धांत धर्म की  युगों युगों से
सदा होती आयी हैं पूजा
 पथ जग को जिसने  दिखलाया
वह कोई देश नहीं ही दूजा

आओ मिलकर एक साथ
मिल खुशियां सभी मनाएं
त्याग भेद सब भाव दिलों से
आओ आगे राष्ट्र बढ़ाएं

जब हो जायंगे सुखी सभी
तब फिरं होगा नया सबेरा
जहाँ पशु पक्षी मिलकर रहते हैं
वह भारत देश हैं मेरा

जहाँ भगत सिंह ने हंसकर के
था फांसी को स्वीकारा
घर की चिंता को छोड़ सभी ने
दिया  था वंदेमातरम नारा

आजाद बिस्मिल रानी झाँसी
और था गुरु नानक का डेरा
जहाँ भेदभाव  को जगह नहीं
वह भारत देश हैं मेरा

जहाँ नारी मैं सीता और सावित्री
हैं पुस्तकों मैं रामायण गीता
प्रबल प्रेम के बल पर जिसने
हैं सारे जग को जीता  

जग सारा जिसको मन चुका है 
हैं वह देश न कोई दूजा
माता की पदवी मिली जिसे
और देवो ने जिसको पूजा..

-- देवदत्त पालीवाल(निर्भय)

    9448417578

और पढ़ें...
विज्ञापन
Next