● माधवेन्द्र सिंह राजपूत
आमेट. आज से लगभग 87 वर्ष पहले भाप के इंजन से छुकछुक करती प्रारंभ हुई, रेल यात्रा का शुक्रवार को आखिरी सफर के साथ अपनी यादों को सहजती हुई इतिहास के पृष्ठ पर अंकित हो गई. 1933 में हिन्दुस्थान में राजतंत्रात्मक व्यवस्था के समय उदयपुर से जोधपुर को जोड़ने के लिए मेवाड़ और मारवाड़ रियासतों ने अपने खर्चे से रियासत की जनता को आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराने के उद्दश्य के लिए इस कठिन दुर्गम डगर पर मीटर गेज लाइन का निर्माण करवाया.
तत्कालीन समय से लेकर आज तक यह रेल लाइन अपने निर्माण के कारण अपने आप में एक आश्चर्य व कारीगरी मिसाल है. तकनीकी और संसाधनों के बिना भी इस रेल लाइन का निर्माण कोई सरल कार्य नहीं था. मेवाड़ और मारवाड़ की संस्कृति के बीच में ज्यादातर इस लाइन में अरावली की पर्तमालाये सीना तानें खड़ी थी.
अरावली की गहरी घाटियां जो दोनों रियासतों व संस्कृतियों को अलग-अलग करती थी. परंतु मानवीय इच्छा शक्ति व स्थानीय लोगों ने अपने श्रम से अरावली पर्वतमाला का सीना चीरते हुए इन पर्वतमाला की गहरी घाटियों को पाटते हुए रेल की पटरियां बिछा कर इतिहास रच दिया. साथ ही राजस्थान की सबसे बड़ी दो रियासतो की संस्कृतियों को जोड़ने का मार्ग स्थानीय लोगों ने भी अपना श्रम देकर इसे प्रशस्त करने में सहयोग दिया.
देश की आजादी से पूर्व उस समय चनले वाली राज मुद्राओ से इन लोगो को उनका पारश्रमिक दिया गया था. रेल लाइन का 1933 में श्री गणेश हुआ. तीन वर्ष बाद 1936 में पहली बार भाप के इंजन की छुक छुक करती आवाज के साथ ट्रेन का सफर पूरा हुआ. मानो पटरियो पर दोनो रियासतों के सपनों के साथ साथ लोगों की खुशियां दौड़ रही थी. पहली रेल गाड़ी का संचालन के समय उदयपुर से जोधपुर तक 50 से अधिक छोटे बड़े स्टेशन आबाद थे.
87 वर्ष तक नियमित सेवा उपलब्ध कराने के बाद शुक्रवार को कई स्टेशनों पर इस रेल गाड़ी का अंतिम सफ़र रहा. आगामी दिनों में जैसा रेल मंत्रालय के आदेशानुसार यह ट्रेन मात्र खामली घाट से मारवाड़ तक ही संचालित की जायेगी. पहले जब सभी जगह मीटर गेज लाइन थी. तब यह रेल लाइन उदयपुर जोधपुर के साथ देश के प्रमुख महानगरों से जोड़ती थी.
तत्कालीन रेल समय के हिसाब से लोग अपनी दिनचर्या की शुरुआत शुरू करते थे. उस समय लोगों के पास में समय देखने का कोई विशेष साधन उपलब्ध नहीं था. इसके चलते लोग इन ऐतिहासिक ट्रेनों के समय को अपना समय मानकर दिनचर्या की शुरुआत कर देते थे. समय के साथ बड़े-बड़े स्टेशन ब्रॉडगेज हो जाने का असर इस मीटर गेज पर भी पड़ा. उदयपुर से जोधपुर की बजाय यह ट्रेन मावली मारवाड़ तक सीमित होकर रह गई और शुक्रवार के बाद ये कामली घाट से मारवाड़ तक सीमित हो जायेगी. इस लाइन को बनाने के लिए 130 स्थान पर पहाड़ों को काटा गया.
90 मोड और 35 जगह पर ब्रिज बनाए गए थे. इसी रेलवे लाइन पर विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ऐतिहासिक स्थल गोरम घाट में टनल का निर्माण किया गया. इस लाइन पर उदयपुर, जोधपुर जैसे ऐतिहासिक स्थल थे. वही नाथद्वारा, द्वारकाधीश चारभुजा मंदिर को भी जोड़ती थी. प्रसिद्ध चारभुजा जी मंदिर के वजह से ही आमेट रेलवे स्टेशन का नाम चारभुजा रोड रखा गया.
रेल संचालन के बाद जब देश आजाद हुआ तो करीब 25 वर्षों के बाद बसो का संचालन होने लगा. आमेट से चारभुजाजी के दर्शनार्थ हेतु ट्रेन के समय सबसे पहले आमेट के पूंजीपति रतन लाल पूर्बिया के द्वारा एक बस का संचालन शुरू किया गया. यह बस आमेट से ट्रेन में आने वाले दर्शनार्थियों को चारभुजाजी के दर्शन करवाकर शाम तक वापस लौटती ट्रेन में सवारियों को छोड़ने के काम आती थी. जो उस समय चारभुजाजी के लिए आमेट से पहली बस सेवा थी.
इस ट्रेन के साथ ही रेलवे के द्वारा दो रियासतों आध्यात्मिक, ऐतिहासिक स्थलो व परम्पराओ के देश विदेस तक पहचान बनाने के लिए एक शाही रेल मीरा एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया जो लोगो के बीच मे शाही ट्रेल के नाम से काफी लोकप्रिय थी. सप्ताह में एक दिन चलने वाली इस ट्रेन को देखने के लिए लोग खड़े रहते थे. शुक्रवार को जब यह ट्रेन अपने अंतिम सफर की ओर मावली से मारवाड़ के लिए जा रही थी तो प्रातः 10.00 बजे चारभुजा रोड रेलवे स्टेशन आमेट पँहुचने पर नगरवासियों द्वारा रेल के रेलगार्ड और लोको पायलट व समस्त रेल स्टाफ का माला और केसरिया दुपट्टा पहना कर सम्मान किया गया.
इस दौरान नगर के दिनेश बाबेल, रतन टेलर, विनोद सेठ, महावीर कोठारी, पारसमल बाबेल, ख्यालीलाल लक्षकार, सुदीप छाजेड़, संजय बोहरा, अशोक गांधी, फरियाद हुसैन, दिनेश जांगिड़ सहित कई नगरवासी उपस्थित थे. नगरवासियों का कहना है की पूर्व सांसद स्वर्गीय हरिओम सिंह राठौड़ और राजस्थान की यशस्वीत उपमुख्यमंत्री व पूर्व सांसद राजसमन्द दिया कुमारी के साथ ही नगर के समाजसेवी राजनेता प्रताप सिंह मेहता के अथक प्रयासों से 50 वर्ष से अधिक समय से स्थानिय लोगो की जो मांग थी की इस रेललाइन को भी ब्रॉड गेज रेलवे लाइन में तब्दील हो जाये. वह कार्य भी धरातल पर तेजी से बढ़ रहा. एक-दो साल बाद इसी स्टेशन पर विद्युत से चलने वाली ब्रॉड गेज का इंजन सिटी देकर हमें वापस रेलवे स्टेशन पर हमें बुलाएगा. तब फिर से उदयपुर जोधपुर और भारत के विभिन्न महानगरों तक का सफर यहीं से प्रारंभ करेंगे.
● M. Ajnabee. Kishan paliwal