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अगले हफ्ते से आ रहे हैं होलाष्टक, 8 दिन तक नहीं होंगे शुभ कार्य, नोट कर लें तारीख

धर्मशास्त्र Published by: Paliwalwani Updated Thu, 03 Mar 2022 01:22 PM
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मार्च का महीना शुरू हो चुका है। पिछले महीने की 17 तारीख यानि फरवरी से फाल्गुन का महीने की शुरूआत हो चुकी है। अब अगले सप्ताह से लगने जा रहे हैं होलाष्टक। हिन्दू मान्यता अनुसार इस दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं। 10 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो रही है जो होली दहन पर 17 मार्च को समाप्त होंगे। हिन्दु मान्यता अनुसार होलाष्टक का समय शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है।

8 दिन तक चलेंगे होलाष्टक 

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाते हैं। इसके बाद फाल्गुन की पूर्णिमा (Phalgun Purnima) को होलिका दहन के साथ ही इनकी समाप्ति हो जाती है। ये 8 दिन का समय (Holi) होलाष्टक कहलाता है। धार्मिक मान्यता अनुसार इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। उसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। जिसमें विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, मकान-वाहन की खरीदारी आदि कार्य वर्जित है।

नए कार्य की नहीं होती सुनवाई 

होलाष्टक में शुभ कार्य तो वर्जित होते ही हैं साथ ही कोई नया काम भी शुरू नहीं किया जाता है। जैसे बिजनेस, निर्माण कार्य या नई नौकरी भी करने से बचना चाहिए। पंचांग के अनुसार, साल 2022 के फाल्गुन माह में होलाष्टक की शुुरुआत 10 मार्च को तड़के 02 बजकर 56 मिनट से हो रही है। होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन हो जाएगा। फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका द​हन होता है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 17 मार्च दिन गुरुवार को दोपहर 01:29 बजे से शुरु हो रही है। जो 18 मार्च दिन शुक्रवार को दोपहर 12:47 बजे तक रहेगी। ऐसे में 17 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन के साथ होलाष्टक समाप्त हो जाएंगे।

नहीं होंगे मांगलिक कार्य 

10 मार्च से शुरू हुए होलाष्टक 17 मार्च तक चलेंगे। इस दौरान किसी भी तरह के शुरू कार्य और नए कार्य की शुरुआत नहीं की जाएगी। ये 8 दिन अपशगुन माने जाते हैं।

होलाष्टक को क्यों मानते हैं अपशगुन 

होलाष्टक के दौरान राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे भक्त प्रहृलाद बहन होलिका के साथ मिलकर बहुत यातनाएं दी थीं। इतना ही नहीं फाल्गुन की पूर्णिमा पर होलिका में जलाकर प्रहृलाद को मारने का प्रयास किया था। पर वह विष्णु की कृपा से जीवित बच गए। और होलिका मर गई थी। दूसरी कथा अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को अपने क्रोध अग्नि से भस्म कर दिया था। ये दो खास वजह हैं जिनके चलते ये समय अपशगुन माना गया है।

 

 

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