डोल ग्यारस आज भाद्रपद मास की एकादशी तिथि 17 सितंबर 2021, शुक्रवार को देशभर में मनाई जाएगी। इसे जलझूलनी या पदमा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान के वामन रूप का अवतरण हुआ था, इसलिए इस दिन भगवान वामन की आराधना की जाती है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि एकादशी तिथि की शुरुआत गुरुवार सुबह 9:37 बजे से हुई है, समाप्ति शुक्रवार सुबह 8:08 बजे होगी। एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा, जो सुबह 6:03 बजे से मध्य रात्रि 3:36 बजे तक रहेगा। मान्यता है कि भगवान विष्णु की चार माह की निद्रा में एक समय ऐसा भी आता है, जब वे सोते हुए करवट बदलते हैं। इसी दिन को पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है।इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। इस कारण इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। भगवान विष्णु व कृष्ण मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है। इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। वाजपेय यज्ञ का फल से मतलब है कि इसका व्रत करने से व्यक्ति के सब कार्य सिद्ध होते हैं।
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इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग होने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश होता है तथा राक्षस आदि की योनि से भी छूटकारा मिलता है। संसार में इसके बराबर कोई दूसरा व्रत नहीं है। व्रत की कथा पढ़ने और सुन लेने भर से ही वाजपेय यज्ञ का फल मिल जाता है।
शुरू होता है गणेश विसर्जनः ज्योतिषाचार्य सतीश सोनी ने बताया कि शुक्रवार को परिवर्तनीय एकादशी मनाई जाएगी, जिसे जलझूलनी डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है। इसी दिन से भगवान गणेश के विसर्जन की शुरुआत होती हैं, जो अनंत चतुर्दशी तक चलती है। पंचांग में भादाै शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 सितंबर को पूरे दिन रहेगी, लेकिन इस दिन सूर्योदय एकादशी तिथि के पूर्व हुआ है। ऐसे में उदया तिथि की मान्यता के अनुसार जलझूलनी परिवर्तन एकादशी का व्रत 17 सितंबर के दिन रखना शास्त्र सम्मत होगा। एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन चावल, शक्कर, दही, चांदी की वस्तुओं को दान करना अति शुभ फलदाई होता है। सोनी के अनुसार इस दिन सूर्यदेव अपनी राशि को परिवर्तन करके कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। इससे कन्या संक्रांति का निर्माण होगा। ज्योतिष में जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है।
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एकादशी तिथि 16 सितंबर, गुरुवार को सुबह 09.39 मिनट से शुरू होकर 17 सितंबर की सुबह 08.08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। 16 सितंबर को एकादशी तिथि पूरे दिन रहेगी। उदया तिथि में व्रत रखने की मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी व्रत 17 सितंबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। पुण्य काल- सुबह 06.07 मिनट से दोपहर 12.15 मिनट तक। पूजा की कुल अवधि- 06.08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद 17 सितंबर को सुबह 06.07 मिनट से सुबह 08.10 मिनट तक महापुण्य काल रहेगा। जिसकी अवधि 02.03 मिनट रहेगी।
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डोल ग्यारस के पर्व का महत्व भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था। इस दिन भगवान विष्णु एवं बालरूप श्री कृष्ण की पूजा की जाती हैं, जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्यफल भक्त को मिलता हैं। इस दिन विष्णु के अवतार वामन देव की पूजा की जाती है, उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल प्राप्त होता हैं। डोल ग्यारस व्रत के प्रभाव से सभी दुखों का नाश होता है। इस दिन कथा सुनने से मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं। डोल ग्यारस की पूजा और व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ के समान ही माना जाता हैं। इस दिन रात के समय रतजगा किया जाता है।
एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही आरंभ हो जाता है। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत का संकल्प एकादशी तिथि को ही शुभ मुहूर्त में लिया जाता है। परिवर्तिनी एकादशी की तिथि पर स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करें। इसके बाद पंचामृत, गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम लगाकर पीले वस्तुओं से पूजा करें। पूजा में तुलसी, फल और तिल का उपयोग करना चाहिए। वामन अवतार की कथा सुनें और दीप जलाकर आरती करें। भगवान विष्णु की स्तुति करें। अगले दिन यानी 18 सितंबर, शनिवार को एक बार पुन: भगवान का पूजन करके। ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और व्रत का समापन करें। फिर व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर विधिपूर्वक करें।
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1. मंत्र- भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का तुलसी की माला से कम से 108 बार या अधिक से अधिक जाप करें।
2. मंत्र- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'।
3. मंत्र- 'कृं कृष्णाय नमः' मंत्रों का 108 बार जाप करना चाहिए।
त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था, उसने इंद्र से द्वेष के कारण इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर भगवान के पास गए और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: श्रीकृष्ण ने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। तब बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए उससे तीन पग भूमि देने का संकल्प करवाया और अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण कर लिए। अब तीसरा पग रखने के लिए राजा बलि ने अपना सिर झुका लिया और पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे वह पाताल चला गया।