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शीतला माता मंदिरों में लगी महिलाओं की भीड़ : शीतला माता की पूजा लगाया ठंडा व्यंजनों का भोग : शीतला मां की पूजा विधि

धर्मशास्त्र Published by: Paliwalwani Updated Thu, 24 Mar 2022 09:18 AM
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पुष्कर : तीर्थ नगरी पुष्कर में शीतला अष्टमी के पावन अवसर पर महिलाओं ने शीतला माता की पूजा कर ठंडा व्यजनों का भोग लगाकर अपने परिवार में सुख समृद्धि और खुशहाली  की कामना की. इससे पूर्व रात्रि में पुष्कर में स्थित विभिन्न शीतला माता मंदिरों में  माता जी का विशेष श्रृंगार कर भव्य भजन संध्या आयोजित की गई तथा देर रात्रि से ही महिलाओं ने शीतला माता की पूजा अर्चना शुरू कर दी सुबह तक महिलाओं की मंदिरों में लंबी-लंबी लाइनें देखने को मिली. पुष्कर में स्थित मुख्य चीर घाट छोटी बस्ती आईडीएसएमटी  कॉलोनी, पाराशर कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, गर्ल्स  स्कूल के पास, सर्वेश्वर कॉलोनी, संतोषी माता की ढाणी महाप्रभुजी की बैठक के पास, रेगर मोहल्ला सहित विभिन्न शीतला माता मंदिरों में सुबह से ही महिलाएं माता जी की पूजा अर्चना करती नजर आई और सभी मंदिरों में महिलाओं की काफी भीड़ देखने को मिली. पूजा अर्चना करने के बाद महिलाओं ने माता जी की कथा सुनी.

शीतला मां की पूजा विधि (Sheetala Mata Puja Vidhi) : इस दिन से गर्मी बढ़ जाती है और लोग ठंडे पानी से स्नान करना शुरू करते हैं. इसलिए सबसे पहले तो सुबह उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें और साफ वस्त्र धारण करें। फिर नीम के पेड़ में जल चढ़ाएं और पूजा पाठ करें। दोपहर 12 बजे के करीब मां शीतला के मंदिर में जाकर या घर पर ही पूजा अर्चना करें. माता को बासी भोजन का भोग लगाएं. उन्हें फूल, नीम के पत्ते और इत्र चढ़ाएं. कपूर से आरती करें और ऊं शीतला मात्रै नम: का जाप करें.

बासी भोजन का क्यों लगाया जाता है भोग? शीतला माता को मुख्‍य रूप से चावल और घी का भोग लगाया जाता है. मगर चावल शीतला अष्टमी से एक दिन पहले बना लिये जाते हैं. मान्‍यता है कि शीतला अष्‍टमी के दिन घर में चूल्‍हा नहीं जलाना चाहिए और न ही घर में खाना बनाना चाहिए. इसलिए एक दिन पहले ही यानी शीतला सप्‍तमी पर ही सारा खाना पका लिया जाता है. इस दिन के बाद से बासी खाना खाने की मनाही होती है, क्‍योंकि इस व्रत के बाद गर्मियां शुरू हो जाती हैं.

तला माता का रूप: शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है. ये अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं. गर्दभ (गधे) की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं. उनके एक हाथ में ठंडे जल का कलश भी रहता है. माता को साफ-सफाई, स्‍वस्‍थता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है. ऐसे तैयार करें चावल का प्रसाद: शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला को खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है. ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. इन्हें शीतला सप्तमी की रात को बनाया जाता है. इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों द्वारा ग्रहण किया जाता है.

शीतला अष्टमी की कथा (Sheetala Ashtami Katha):

हिंदू धर्म में प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा. मान्यता के मुताबिक इस व्रत में बासी चावल चढ़ाए और खाए जाते हैं. लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताज़ा खाना बना लिया. क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए. सास को ताज़े खाने के बारे में पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई. कुछ क्षण ही गुज़रे थे, कि पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई. इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया.

शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं. बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं. वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली. दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी. उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं. कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए. ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए. ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है. ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ. ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा. इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया. इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा.

शीतला माता की आरती (Sheetla Mata Aarti): 

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

ऊं जय शीतला माता।

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।

ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।

ऊं जय शीतला माता।

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।

ऊं जय शीतला माता।

इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।

ऊं जय शीतला माता।

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता।

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।।

ऊं जय शीतला माता।

ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।

ऊं जय शीतला माता।

जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।

ऊं जय शीतला माता।

रोगन से जो पीडित कोई शरण तेरी आता।

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।

ऊं जय शीतला माता।

बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।

ऊं जय शीतला माता।

शीतल करती जननी तुही है जग त्राता।

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।

ऊं जय शीतला माता।

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता ।

भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।

ऊं जय शीतला माता।

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