रेवाड़ी :
(पवन कुमार)
14 जनवरी 1998, वह दिन, जिस दिन एसएसपी ग्रुप की नीव रखी गईं और देखते ही देखते एसएसपी ग्रुप. ने 25 साल का एक लम्बा संघर्षपूर्ण सफर तैय किया I व्यक्ति कोई ना कोई सपने लेकर पैदा होता और उसे पूरा करने कि कोशिश करता है, वह बात और है कि संघर्ष के दौरान वह विपरीत परिस्थितियों में कितना टिक पाता है I इस दौरान कभी अर्थिक परिस्थितियों ने कमर तोड़ी तो कभी सहयोग ना मिलने से सफर और कठिन हो गया लेकिन फिर भी यात्रा को हमेशा जारी रखा.
बेशक़ निजी जिंदगी में ब्रेक लग गया हो और जिंदगी रूखी-रूखी भी लगने लगी और सफर रेगिस्तान में चलने जैसा हो गया,प्यास तो लगती,पर पानी नहीं मिलता,फिर भी चलते रहना है,मंजिल मिले या ना मिले पर आशा हमेशा बनी रहेगी I मुझे इतना तो पता था कि बेरोज़गारी देश कि सबसे बड़ी समस्या रहेगी, इस लिए क्यों ना इस पर काम करने का लक्ष्य रखा जाये और युवाओं में फैली बेरीज़गारी का एंटी वायरस बनकर रोज़गार दिलाया जाये, इसी सोच के कारण एसएसपी ग्रुप ने अपनी पहचान बनाकर मिसाल कायम कर रखी है.
मैंने और मेरे सहयोगी गुड़ियानी निवासी देसराज यादव ने एसएसपी ग्रुप कि स्थापना नारनौल रोड, क़ुतुबपुर, रेवाड़ी में अपने निवास स्थान पर की, जिसका उद्धघाटन 14 जनवरी 1998 को पूर्व रेवाड़ी विधायक रणधीर कापड़ीवास ने किया और यज्ञ-हवन संघ के ज़िला प्रचारक मालेराम ने किया I एसएसपी प्लेसमेंट एंड सिक्योरिटी सर्विसीज के नाम से एससपी ग्रुप ने अपना पहला प्रोजेक्ट शुरू किया और ऐसे समय में एसएसपी प्लेसमेंट रेवाड़ी की पहली प्लेसमेंट सर्विस बनी,जिस समय बावल,धारूहेड़ा में गिनी चुनी कम्पनिया थी और काम मिलने की सम्भावना भी नज़र नहीं आ रही थी,उस समय इसका बीज बोया I खेर सफर चलता रहा और आज कम से कम एसएसपी ग्लोबल जॉब को ऐसे मुकाम पर पहुँचाया कि रेवाड़ी से 100 किलोमीटर दूर तक लोग जानते है और अबतक रोजगार के क्षेत्र में लगभग पचीस हज़ार युवाओं को रोज़गार भी दिला चुके है.
मेरा दूसरा सपना था कि जागरूकता के क्षेत्र में काम करू,मुझे समाज का सेवक नहीं बनना है क्योंकि समाज सेवक समाज के अनुसार चलता है,हो सकता है वह समाज कि जरूरतों को तो पूरा कर दे पर समाज को जागरूक नहीं कर सकता और वर्तमान समय में राजनीति में आना अपने स्वार्थ को पूरा करना ही रह गया है ,इसलिए राजनीति में मैंने आने कि नहीं सोची. मैं जाति आधार पर दलित समाज से हूं और कहीं ना कहीं डॉक्टर बी आर अम्बेडकर,चाणक्य और पुष्पेंद्र कुलक्षेष्ट कि विचारधारा से प्रभावित भी हूं,इसलिए मैंने कलम को ही संघर्ष का माध्यम चुना I अनेक छोटे-बड़े समाचार पत्रों में काम करने के बाद स्वाभिमान जागा हम तो अखबारों के अनपेड वर्कर है और यह अहसास हुआ की मेरी कलम इन समाचार पत्रों में कुछ घुटन सा महसूस करने लगी है और 04 जून 1999 को एसएसपी टाइम्स के नाम से मासिक पत्रिका कि शुरुआत की, जिसका उद्धघाटन विजय सोमानी ने किया,कलम के हिसाब से तो यह ठीक रही पर आर्थिक परेशानियों और मार्केटिंग ना होने के चलते 2013 में ब्रेक लग गईं.
2016 में एसएसपी टाइम्स के बैनर तले नज़र के नाम से रेवाड़ी का पहला यू ट्यूब चैनल शुरु किया पर किसी मुकाम पर नहीं पहुंचा,ऐसा नहीं कि आगे जारी नहीं रहेगा,कुछ विश्राम के बाद, फिर नये रूप में अपनी सेवाएं देगी I मेरे पास थोड़ा-बहुत एन जी ओ का अनुभव भी था और मैं अपने आपको आर्थिक संकट से उभार नहीं पर रहा था और मुझे भी उठने के लिए सहारे कि जरूरत थी जो मिल नहीं रहा थी I मैं मदद के बदले मदद करने के लिए तो तैयार था पर अपने सिद्धांतो को ताक पर रखकर मदद नहीं लेना चाहता था और मुझे तलाश थी तो ऐसे व्यक्ति कि मैं उसका पूरक बनू और वो मेरा पूरक बने, वो मेरी महत्वकांशा पूरी कर सके और मैं उसकी I जिस तरह मुझे तलाश थी, तो किसी को भी मेरे जैसे कि तलाश थी, उनकी महत्वकांशा राजनीति में आने के थी और हैं भी I उनके पास पैसा था और मेरे पास अनुभव और सिस्टम और दोनों एक दूसरे के पूरक भी साबित हो सकते थे,पर उन्होने मुझे उपयोग कि वस्तु और नासमझ समझा,जो व्यक्ति मुझे क़ुतुबपुर से यह सोच अपने होटल में लाया और जगह दी यह सोचकर, कि वह मेरा भविष्य बनायेगे,लेकिन मात्र 15 दिन में मेरी उम्मीद को एक झटके के साथ पानी फेर दिया.
लेकिन हम ने भी हार नहीं मानी मोहमद गौरी की तरह जंग को जारी रखा I इस दौरान इस बात का तो अहसास हुआ कि आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति किस तरह पूँजीपतियों की कठपुतली होता है और इस चीज का भी अहसास दिलाया कि किसी की बेसाखियों के सहारे जंग नहीं लड़ी जाती और जब लगाम ही दूसरों के हाथ मैं हो तो जीतने का सवाल ही पैदा नहीं I जो सेठ यह कहता था कि पवन को कामयाब होना होगा तो मेरे ग्रुप के नीचे आना होगा और अब मैं कहता अगर उस सेठ और उसके ग्रुप को कामयाब होना होगा तो एसएसपी ग्रुप के नीचे आना होगा.
यह मैं अहंकार में नहीं बल्कि आत्म विश्वास के साथ कह रहा हूं I इन 25 साल के सफर के दौरान कुछ वैचारिक दोस्त भी मिले जो कंधे से कंधा मिलाकर मेरे साथ बुरे वक़्त में खड़े रहे जिन्होंने मुझे कभी अपने पथ से भटकने नहीं दिया,कुछ बुद्धिजीवीयों ने भी मुझे दिशा से भटकने नहीं दिया, उनकी जीवन शैली कहीं ना कहीं मेरे मनोबल को बढ़ाती रही,उनमें से कुछ नाम जिन्हें नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता जैसे के एल पी कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपलऍम एल रस्तोगी, राम चंद्र शास्त्री, गोवर्धन,वेदप्रकाश विधरोही, रघु यादव I एसएसपी ग्रुप के शुरुआती दौर में भड़ावास के फ़ौजी ओम प्रकाश यादव,रामपुरी से सुरेंद्र यादव,सतपाल शर्मा,पत्रकारिता क्षेत्र में अशोक प्रधान और बाद में विनय जेलदार और प्रवीन अग्रवाल साथ निभाया.
अगर प्रवीन अग्रवाल का साथ ना होता शायद मैं निन्यानवे पर आउट होकर पवेलियन वापिस लोट गया होता I अभी कश्मकश चल ही रही थी कि करोना काल में फिर एसएसपी ग्रुप कि नाव डूबती नज़र आई I ऐसी स्थिति में बिना किसी स्वार्थ के रजनी यादव परेशानी के बावजूद एक मजबूत स्तम्भ बनकर खड़ी रही I 16 जनवरी 2021 को एसएसपी फाउंडेशन ट्रस्ट बनाया गया जिसका उद्धघाटन कोसली विधायक लक्ष्मण यादव और पूर्व ज़िला प्रमुख सतीश यादव ने किया I जिस तरह रोजगार के क्षेत्र में एसएसपी ग्लोबल जॉब अपनी पहचान को कायम रखे हुए है उसी तरह एसएसपी फाउंडेशन ट्रस्ट सामाजिक गतिविधियों जारी रखेंगी i