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सावधान : घर में 10 साल से ज्‍यादा समय तक किराएदार रखा है तो ख़बरदार वरना घर से धो बैठेंगे हाथ !, जानें क्‍या है कानून

अन्य ख़बरे Published by: Pushplata Updated Thu, 25 Jan 2024 12:16 PM
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किराए के लिए मकान तलाशना आसान नहीं है, यदि मकान मिल भी जाए तो किराएदार की पूरी हिस्‍ट्री निकाली जाती है, तब जाकर उसे मकान किराए से दिया जाता है। मकान किराए से देने के बाद जब मालिक से किराएदार के संबंध अच्‍छे हो जाते हैं तो वह उस मकान में लंबे समय तक किराए से रहता है और एक समयावधि‍ बीतने के बाद किराएदार के मन में यदि खोट आ जाती है तो वह उस मकान पर अपना दावा कर देता है, जिस मकान पर पह दस साल से ज्‍यादा समय से रह रहा है।

इस दावे को चैलेंज करने के लिए मकान मालिक कोर्ट, तहसीलों के चक्‍कर काटता रहता है। लेकिन यदि मकान मालिक कुछ सावधानी बरतें तो वह इन समस्‍याओं से निजात पा सकते हैं और कोर्ट-कचहरी से भी बच सकते हैं।

अक्‍सर हम सुनते हैं, जहां मालिक जब किराएदार से घर खाली करने के लिए कहता है तो किराएदार ऐसा करने से मना कर देता है। कई बार मालिक जब घर खाली करने के लिए जबरदस्ती करता है। लेकिन वह लंबे समय से उस घर में रहने का दावा कर मकान खाली करने से इनकार कर देता है। वहीं वह उस मकान पर अपना मालिकाना हक पाने के लिए भी दावा कर सकता है। अगर आप भी इस बारे में जानना चाहते हैं तो हम इसे सिलसिलेवार समझते हैं, जिसमें हम आपको लिमिटेशन एक्ट 1963 के बारे में बता रहे हैं…

इन नियमों को जानना जरूरी

आपको इस बारे में पता होना चाहिए कि कोई भी किराएदार मकानमालिक की संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।

हालांकि, कुछ ऐसी खास परिस्थितियां होती हैं, जहां किराएदार मकान पर अपना हक जता सकता है

  • अगर किराएदार किसी प्रॉपर्टी पर 12 साल या उससे ज्‍यादा समय के लिए रह रहा है और संपत्ति उसके कब्‍जे में है तो उसको बेच सकतात है। इस बारे में ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के एडवर्स पॉजेशन में जानकारी दी गई है। अर्थात किराएदार के पास संपत्ति का एडवर्स पजेशन है, तो इस स्थिति में वह उस संपत्ति का मालिक माना जाता है।
  • लिमिटेशन एक्ट 1963 में इस बात का जिक्र किया गया है कि निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन की वैधानिक अवधि 12 साल है। यह अवधि कब्जे के पहले दिन से शुरू हो जाती है।
  • आपके लिए जरूरी है कि मकान, दुकान को किराए पर देते समय रेंट एग्रीमेंट जरूर बनवाना चाहिए। रेंट एग्रीमेंट का इस्तेमाल आप एक सबूत के तौर पर कर सकते हैं कि संपत्ति संबंधित व्यक्ति को किराए पर दिया है।

क्‍या है लिमिटेशन एक्‍ट ?

भारत में, लिमिटेशन एक्ट 1963 वह कानून है जो उस अवधि को नियंत्रित करता है, जिसके अंदर मुकदमा दायर किया जाना है। जिसमें देरी, माफी आदि के लिए प्रासंगिक प्रावधान शामिल हैं। बता दें सामान्य कानून में लिमिटेशन के क़ानून में जो नियम हैं। इस सामान्य नियम का एक अपवाद अनुदेशात्मक अधिकारों का कानून है, जिससे अधिकार स्वयं नष्ट हो जाता है।

अधिकार समाप्‍त हो जाएगा…

परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 27 उद्घोषणा करती है। “धारा 27: किसी भी संपत्ति पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर करने के लिए किसी भी व्यक्ति तक सीमित अवधि के निर्धारण पर संपत्ति के अधिकार का समाप्त हो जाना, ऐसी संपत्ति पर उसका अधिकार समाप्त हो जाएगा।”

अनुच्‍छेद 64 में क्‍या है प्रावधान

परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 64 में यह प्रावधान प्रतिकूल कब्जे के (Important News) कानून को स्थापित करता है। ये अनुच्छेद 12 वर्ष की अवधि निर्धारित करता है। जिसके भीतर किसी विशेष संपत्ति पर दावा करने का अधिकार समाप्त हो जाता है, लेकिन दोनों उस तारीख में भिन्न हैं, जिस दिन सीमा की अवधि शुरू होती है।

अनुच्छेद 64 उन मामलों से संबंधित है जहां विवाद होता है यह आवश्यक नहीं है कि कब्‍जा अधिकार पर आधारित हो, और ऐसे मामलों में परिसीमा की अवधि उस समय से चलती है जब वादी को संपत्ति से बेदखल कर दिया गया था।

अनुच्‍छेद 65 में क्‍या है प्रावधान

परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्‍छेद 65 में यह प्रावधान प्रतिकूल कब्जे के (Important News) कानून को स्थापित करता है। ये अनुच्छेद 12 वर्ष की अवधि निर्धारित करता है।

अनुच्छेद 65 उन मामलों से संबंधित है जहां विवाद स्वामित्व पर भी आधारित है, और ऐसे मामलों में अवधि परिसीमा उस समय से शुरू होती है जब प्रतिवादी वादी के प्रतिकूल हो जाता है।

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