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कुछ जिम्मेदारी आपकी भी बनती है : पैदल करे त्योहारी खरीदी, माहौल का आनंद ले, बजाय हॉर्न बजाने के

इंदौर Published by: Paliwalwani Updated Fri, 21 Oct 2022 11:09 AM
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  • बीच शहर के बाजारों के अंदर तक वाहन लाने से बचे
  • किसी अच्छी जगह देखकर बाजारों से दूर ही कर दे वाहन पार्क
  • पैदल करे त्योहारी खरीदी, माहौल का आनंद ले, बजाय हॉर्न बजाने के
  • सरकारी फ़रमान का इंतजार क्यो, नागरिक स्वयम करे पहल, बाजार से दूर रखें वाहन

नितिनमोहन शर्मा...✍️

  • ...आप तो इस शहर के बाशिंदों हो न? यही पले-बड़े। फले-फुले। तो क्या आप शहर की उत्सवी तासीर को नही समझते? ऐसा हो ही नही सकता। जब समझते हो तो फिर क्यो अपने दो पहियों-चोपहियों के साथ बाजारों में ' भरा " रहे हो? आपको नही पता अपने शहर के बाजारो की बनावट? तंग गलियों ओर संकरे मार्ग के बीच बने बाजारों में आम दिनों में ही ट्रेफ़िक रेंग कर चलता है। तो फिर दीप पर्व जैसे त्योंहार में यहाँ क्या हाल होता है...आपको भी तो पता है। 
  • फिर ऐसी क्या जिद या मजबूरी की आप वाहनों के साथ ही लदे-फदे राजबाड़ा, सराफा, सीतलामाता बाज़ार, मारोठिया बाजार, बजाज खाना चोक, बरतन बाजार,आड़ा बाजार, इतवारिया बाजार, सुभाष चौक, खजूरी बाजार, कृष्णपुरा आदि स्थानों तक आना चाहते हो? या फिर जेलरोड, काछी मोहल्ला, रानीपुरा, महारानी रोड, सियागंज वाले बेल्ट में कार लेकर क्यो घुसना चाहते हो? या जरूरी है कि छावनी चोराहे तक ही वाहन लेकर आना? या फिर मालवा मिल-पाटनीपुरा की पट्टी में जाकर फँसना? 
  • ...क्या इंदौर के बिगड़े ट्रेफ़िक की सब जिम्मेदारी यातायात विभाग, नगर निगम, जिला प्रशासन, पुलिस महकमे की ही है? यहां के बाशिंदों की कोई जिम्मेदारी नही? देश के सबसे साफ सुथरे शहर का ट्रेफ़िक सबसे बेतरतीब क्यो है? इस पर जिमेदार तो चिंतन मन्थन कर ही रहे है...आप भी थोड़ा माथे पर हाथ रखकर सोचो कि इसमे बिगड़े ट्रैफ़िक में मेरा क्या रोल रहा? ट्रेफिक अमले, पुलिस, जिला ओर निगम प्रशासन को कोसना तो आसान है। और कोसा जाना भी चाहिए कि आखिर जवाबदेही तो उनकी ही बनती है लेकिन एक नागरिक समाज होने के नाते हम सबकी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती होगी न? देश के कुछ शहरों...खासकर पूर्वोत्तर के प्रान्तों के नागरिकों का ट्रेफ़िक सेंस देखा है न..? और मुम्बईकर का। क्या उसका 10 प्रतिशत भी आप-हम पालन करते है? 
  • हम तो कतार में खड़े रहने को ही अपनी तौहीन समझते है। जैसे इस शहर में पीछे खड़े होने की रखी ही नही। जिसे जहा जगह मिली, घुसेड़ दिया अपना वाहन ओर खड़े हो गए सामने वाले वाहन की छाती पर। जबकि आप जरा सा धीरज धर ले तो सामने वाला वाहन पहले निकल जाएगा और रास्ता क्लियर..!! पर आप तो इंदौरी हो। 'हम भी खेलेंगे नही तो खेल बिगाड़ेंगे' की तर्ज पर जब हम ही नही निकल् पा रहे तो 'अगला' ऐसे कैसे निकल जाए? अब बाज़ार के भी वाहन उस दिन से ही ले जाना रोकोगे जब कोई सरकारी आदेश आएगा।
  • ...हम सरकारी फ़रमान का इंतज़ार करे ही क्यो? वो तो धनतेरस पर आएगा। लकीर के फ़क़ीर की मानिंद कि आज से बाजारो में वाहनों पर रोक..!! इसके पहले आप स्वयम पहल करें न। बाजारों से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर आप स्वयम वाहन पार्क नही कर सकते? कितना फर्क पड़ जायेगा? ज्यादा से ज्यादा 500 कदम का फासला आपको पैदल तय करना होगा। बहुत हुआ तो हजार कदम। यू भी तो पसीना बहाने के आप सुबह शाम " तमाशे " करते ही हो। तो फिर त्यौहार के दौर में ये काम बाग बगीचों ओर जिम की जगह शहर की सड़कों पर ही कर लो न। आपका काम आसान हो जाएगा और शहर के ट्रेफिक पर सवाल उठने भी कम हो जाएंगे। आपको अच्छा लगता है क्या जब सफाई में अव्वल शहर के बिगड़ैल ट्रेफिक की बात देश के अन्य हिस्सों में हो? 
  • ...तो भिया, जैसे सफाई की बिगड़ी व्यवस्था को आदत बनाकर सुधार लिया...जिसकी रत्तीभर किसी को उम्मीद नही थी। वैसे अपना ट्रेफ़िक भी आप हम सुधार सकते है। बाजार से दूर करे वाहन पार्क और करे खूब पैदल खरीददारी। वाहन पर सवार होकर, ट्राफ़िक जाम करते हुए हॉर्न पर हॉर्न बजाने ओर गालियां बकने की बजाय त्यौहार का आनंद ले...बाजारो की रंगत देखे। झिलमिल पर्व का आनंद ले। आख़िर अपना इंदौर उत्सवप्रेमी शहर जो है। तो फिर उत्सव मनाओ न...ट्रेफ़िक का सन्ताप क्यो?
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