नितिनमोहन शर्मा...✍️
श्रीमान...आप बारातियों की चिंता के दिन रात दुबले हो रहे है। कोई कसर उनकी आगवानी ओर आवभगत में आप नही छोड़ना चाहते। बहुत अच्छी बात है। हम भी ये ही चाहते है। हमारा मालवा ओर खासकर हमारा इंदौर तो है ही मेहमाननवाजी के लिए मशहूर। जब अन्य मुल्कों से लोग आए तो बरबस कह उठे..वाह इंदौर...जैसा सुना था-उससे बढ़कर पाया। लेकिन इन सबमे हमारा क्या दोष? बस इतना ही कि हम ' बराती' नही, ' घराती ' है। लेकिन इसमे भी हमारा कसूर क्या? इसी शहर में जन्मना क्या गुनाह है? नही न? तो फिर कीजिये न श्रीमान आप हमारी भी चिंता। हम कब तक ' स्मार्ट सिटी' का बोझ उठाते फिरेंगे। अब तो हमारे काम धंधे भी दम तोड़ने लगे है। सब तरफ तो बिखरा बिखरा ओर खुदा हुआ पड़ा है। शहर की नाक..जनता चौक राजबाड़ा ही धूलधूसरित पड़ा हुआ है। इससे सटे सभी बाजारों के भी ये ही हाल है।
आप बाहर से आने वालों को...शहर के बाहर बाहर घुमाने फिराने का मन बना चुके हो। इसलिए शहर के बाहरी हिस्से को आप युद्ध स्तर पर चाक चौबंद करने में जुट गए हो। लेकिन बीच शहर का भी तो कुछ कीजिये। इस हिस्से के लोगो ने अपने घर मकान दुकान तुड़वाकर आपके जबरिया ' स्मार्ट ' बनाये जाने की ज़िद को मान दिया है। पर आप तो इस मान को अपमान करने पर तुले हो। निवर्तमान महापौर को कुर्सी से उतरे 3 बरस से ज्यादा होने आए। अब तक आप सब मिलकर उनके कार्यकाल के काम पूरे नही कर पाए। काम भी वो जो उनके कार्यकाल में शुरू हुए। यानी 5 साल उनकी 'महापौरी' और 3 साल पद से मुक्ति के हो गए। यानी 8 साल होने को आये लेकिन बीच शहर-जिसे मूल इन्दौर कहते है...वो उजाड़ सा ही पड़ा है।
राजबाड़ा तो शहर का ह्रदय है न?? ह्रदय तक पहुचने वाली सभी सड़क रूपी धमनियों में आप अब तक ब्लॉकेज दूर ही नही कर पाए। उलटे 'ह्रदय' को भी खोलकर बैठ गए। ' ह्रदय' की दिक्कतों को दूर करने के लिए ' बायपास ' करने निकले थे आप लेकिन कोई ये बताने वाला ही नही कि ये ऑपरेशन कब तक पूरा होगा? ताकि शहर का ह्रदय फिर से धड़कने लगे? क्या बारातियों को आप बगेर राजबाड़ा लाये शहर से बिदा कर देंगे? ' इंदुर' के कुल देवता मल्हारी मार्तण्ड तो यही विराजते है न? तो फिर बगेर देवता दर्शन के उत्सव पूर्ण होगा?
एमजी रोड के भी तो ये ही हाल है। महापौर की निरंतर निगरानी और सख्ती के बाद भी काम की गति कछुआ रफ्तार से बाहर नही आ रही। कृष्णपुरा का गहरा गड्ढा भराया नही ओर बनी बनाई एमजी रोड पर फिर गहरा गड्ढा हो गया। गोपाल मंदिर और इमली बाजार तरफ तो भूकम्प सा नज़ारा है। गोपाल मंदिर वाले हिस्से को तो रंगरोगन कर खोल दिया था न? फिर पूरी सड़क क्यो खोदना पड़ी?
जिन हिस्सो में काम हो गया है, वहां के हालात वैसे ही फिर से हो गये है जिनसे निजात दिलाने के लिए इतनी बड़ी तोड़फोड़ की गई थी। दांवे किये गए थे कि बाजारो का कायाकल्प हो जाएगा। चोंडी सड़को पर ग्राहकी दूनी चौगुनी हो जाएगी। लेकिन वही ढांक के तीन पात वाली कहानी सीतलामाता बाजार से लेकर लोहारपट्टी तक हो गई है। इस पर विस्तार से फिर कभी क्योंकि जो जड़ो से उखाड़े गए, वे स्वयम को ठगा महसूस कर रहे हैं।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट ओर प्रवासी भारतीय सम्मेलन के रूप में आ रहे मेहमान हमारे लिए किसी बाराती से कम नही। बतौर घराती उनका स्वागत सत्कार और सम्मान हमारी जवाबदारी है। लेकिन इसमे घरातियों की उपेक्षा कहा तक उचित है? कब तक घरातियों के धैर्य की परीक्षा ली जाएगी? जिस तरह सरकारी अमला शहर के बाहरी हिस्सों में दिन रात एक किये हुए है, क्या वो बीच शहर के लिए ऐसा दिन रात एक नही कर सकता? ताकि 8 बरस से जूझ रहे बीच शहर को, यहां रह रहे बाशिंदो को, इस हिस्से के व्यापार को बारातियों के बहाने ही सही, परेशानियों से मुक्ति तो मिले।