नितिनमोहन शर्मा...✍️
पतंग से पहले आप-हमारा गला काटने वाला मांजा फिर से शहर में आ गया है। चाइना नाम का ये मांजा, मांजा नही...मौत की डोर हैं। ये बात पतंग उड़ाने वाले से लेकर मांजा बेचने वाले और शहर के जिमेदारों को भी पता है। फिर भी सब गहरी नींद में है। जबकि बगल के उज्जैन में इस सम्बंध में कठोर फैसला ले लिया गया है। उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह में फरमान जारी कर दिया कि चाइना का नायलोन वाला मांजा जिसने भी बेचा, उसकी दुकान ही नही मकान भी तोड़ दिया जाएगा। उज्जैन कलेक्टर सिंह बीते साल इसी मौत की डोर से एक युवती की हुई दर्दनाक मौत को भूले नही थे। नतीजतन उन्होंने वक्त रहते सतर्कता बरती और इस मामले में धारा 188 के तहत सख्त आदेश जारी कर दिए।
इसके उलट इंदौर में इस मामले में सन्नाटा है। न कोई हलचल। न कोई दिशा निर्देश। न ये अहसास भी कि पतंगबाजी का त्यौहार आ गया। रस्म अदायगी का फ़रमान मकर संक्रांति के एक दो दिन पहले निकलने का रिवाज इस बार भी दोहराया जाएगा? इसका फायदा मौत का मांजा बेचने वालों ने उठाया है। लाखो का माल इन्दौर में न केवल आ गया है बल्कि दुकानों में जमा भी हो गया है। वक्त रहते अगर जिम्मेदार नही जागे तो फिर स्थिति हाथ से निकल जायेगी और मांजा के रूप में मौत की ये डोर पतंगबाजों के हाथ तक पहुंच जाएगी।
सक्रांति में अब दिन कितने बचे है। ख़ुलासा फर्स्ट जन सरोकार के तहत वक्त रहते शहर के जिम्मेदार तंत्र को आगाह कर रहा है। उम्मीद है इस बार इंदौर के आसमान में मौत की डोर की जगह हमारा वो ही मांजा नजर आएगा, जो ईमानदार पतंगबाजी के लिए जाना जाता है। चाइना के मांजे से पतंगबाजी बेईमानी है। नायलोन का धागा तो हर पेंच काटेगा ही। दम है तो 'साकल तोड़' या 'मुर्गा ' धागन को सुतकर पतंग काटकर दिखाओ। कब तक गले, गर्दन, हाथ, नाक, गाल काटते रहोगे?
चाइना का मांजा कहना ही गलत है। मांजा तो है ही नही। नायलोन का महीन धागा है। जो न टूटता है और न नष्ट होता है। प्लास्टिक पर प्रतिबंध वाले इस शहर में चाईना का मांजा भी प्लास्टिक ही है। हर बरस ये जानलेवा मांजा सेकड़ो निर्दोष पंछियों की जान ले लेता है। दर्जनों लोग भी इसका शिकार होते है। नायलोन का ये धागा इतना गहरा घाव देता है कि 10 - 20 टाँके भी घाव को भर नही पाते। अगर ये गर्दन पर लग जाये तो प्राण निकलना तय है। बावजूद इसके इस मांजे को लेकर इस शहर में कोई हलचल नही। न जनप्रतिनिधि स्तर पर। न शासन, प्रशासन स्तर पर। सामजिक संगठन जरूर चिंतित है लेकिन इस मूददे पर हर बरस की सरकारी रस्म अदायगी ने उनका मनोबल भी तोड़ दिया है।
मौत की इस डोर के शहर में चुनिंदा ही तो ठिकाने है और वो भी घोषित। कोई दबे छुपे नही। इन ठिकानों पर खुलेआम चीन का मांजा बिक रहा है। खबर छपने के बाद भले ही चीन का ये मांजा दबाया या छुपाया जाए और दबे छुपे बिकने लगेगा। जानलेवा डोर सिख मोहल्ला, काछी मोहल्ला, हरसिद्धि, मल्हारगंज, छावनी और रानीपुरा में बहुतायत में उपलब्ध है। बीते साल जिला प्रशासन मैदान में तो उतरा था लेकिन तब तक देर हो गई थी। मौत की डोर तब तक घर घर पहुंच गई थी। लगता है जिमेदारों ने बीते साल से सबक भी नही लिया। तभी तो चीन के नाम से बिक रही मौत की डोर इंदौर तक आ गई और बिकने भी लग गई।