इंदौर : पर्यावरण के क्षेत्र में पिछले 20 वर्षो से अधिक समय से काम कर रही सामाजिक संस्था ‘सेवा सुरभि’ ने आज सुबह साउथ तुकोगंज क्षेत्र की एक निजी होटल में कोरोना काल के सकारात्मक बदलावों पर तो शहर के पर्यावरणविदों, प्रबुद्धजनों और मीडियाकर्मियों को आमंत्रित कर चर्चा तो की ही, आने वाले समय में इसके परिणामों पर भी विचार-मंथन किया। अधिकांश वक्ताओँ का मानना था कि कोरोना काल में जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण कम हुआ, लोगों में योग और ध्यान के प्रतिर रूचि बढ़ी, अपराधों में कमी आई, वाहन दुर्घटनाएं कम हुई। ऑनलाइन लेन-देन का प्रचलन बढ़ा, बिजली के साथ सौर ऊर्जा का भी इस्तमाल बढ़ा, नदियों का पानी अधिक साफ नजर आया और लोगों ने जंगली जानवरों को भी शहरों के करीब देखा।
इस परिचर्चा का शुभारंभ भी अनूठे अंदाज में हुआ जब पद्मश्री जनक पलटा और शहर के गांधीवादी विचारक अनिल त्रिवेदी तथा अन्य पर्यावरणविदों ने गमले में रखे एक पौधे को लोटे से जल देकर किया। विषय़ प्रवर्तन किया पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी ने। उन्होंने कहा कि कोरोना काल एक ओर मानवीय स्वरूप का दर्दनाक चेहरा था, वहीं दूसरी ओर अनेक सकारात्मक बातें भी सामने आई। नदी-नालों का पानी साफ हुआ, कार्बन का कम उत्सर्जन हुआ, शोर में कमी आई, लेकिन इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय सर्वे में पर्यावरण के मामले में भारत की बुरी स्थिति है, जिसे सुधारने की जरुरत है। इंजीनियर संदीप नारुलकर ने कहा कि उस दौर में मीडिया ने नकारात्मक खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया, लेकिन उसी मीडिया ने सकारात्मक खबरों और चित्रों को भी प्राथमिकता से जगह दी। यूरोपीय देशों के मुकाबले भारत में कोरोना से कम मौतें हुई, जबकि भारत की आबादी वहीं से कई गुना अधिक है। यह भी एक सकारात्मक तथ्य है। बीते वर्षों में हमारा पर्यावरण कितना बेहतर था, इसका उदाहरण यह है कि कोरोना काल में हमने बायपास से देवास की टेकरी देखी और एमआर 10 से पवन चक्कियां भी देखी। मुजफ्फर नगर के कलेक्टर के बंगले से सबसे ऊंचा पर्वत माउंट एवरेस्ट नजर आया और उन्होंने ही सर्वे आफ इंडिया को इस पर्वत का बारे में बताया। पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि आपदा काल में लोगों की संवादनाएं बढ़ीं। स्वयं मैंने ढेरो प्रार्थनाएं कंठस्थ की और खुद को ईश्वर के नजदीक पाया। मेरी संस्था ने 65 टीकाकरण केन्द्रों पर 28 हजार पौधे वितरित किए। एक बालिका तो ऐसी मिली, जिसने दो वर्षों से फूल तक नहीं देखे थे।
गांधीवादी चिंतक अनिल त्रिवेदी ने कहा कि आपदाकाल में समाज ने हमें अकेला छोड़ दिया और बाजार बंद हो गए, ऐसे समय परिवार की प्रधानता बढ़ गई थी। कोरोना अनुभवों का हाथी निकला, क्योंकि उसके बारे में पहले से किसी को कुछ पता नहीं था। आज भले ही इसका संक्रमण कम हुआ हो, लेकिन हम फिर भी लापरवाह होते जा रहे हैं। उन्होंने इस परिचर्चा में माइक के नहीं होने और बिसलरी की बाटल की जगह कांच के ग्लास में पानी होने पर कहा कि ये छोटे-छोटे प्रयास ही पर्यावरण को शुद्ध बनाएंगे। शिक्षाविद डॉ. एस.एल. गर्ग ने कहा कि मैंने केशर पर्वत पर उस दौरान 25 हजार पौधे लगाए, जिससे गर्मी में राहत मिली।
आज एक बारह फीट के पेड़ की जड़ों में दस हजार लीटर पानी रहत है। एक सागवान का पौधा पंद्रह वर्ष बाद एक लाख रुपए की कीमत रखता है। पौधों से हरियाली तो बढ़ती ही है, आर्थिक लाभ भी होता है। पर्यावरणविद डॉ. किशोर पवार कहा कि कोरोना काल में मैंने वर्षों बाद तीन तितलियां देखीं। ये तितलियां पर्यावरण शुद्ध होने पर ही दिखाई देती हैं, लेकिन अब फिर पहले जैसी स्थिति बन रही है। प्रो. रमेश मंगल ने कहा कि कोरोना काल में केन्द्र सरकार ने टीकाकरण का वृहद अभियान चलाकर बड़ा काम किया है। लेखक कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि कोरोना काल में कानून की सख्ती दिखी, वर्क फ्राम होम में जब बिजली के बिल अधिक आने लगे तो सौ उर्जा पैनल की मांग बढ़ गई। सामाजिक कार्यकर्ता अजीतसिंह नारंग ने कहा कि आपदाकाल में तकनीकी ज्ञान से संबंधित सामग्री पढ़ने का अवसर अधिक मिला, समुद्री जीव सुखी रहे, गैसों का उत्सर्जन कम हुआ।
पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी ने कहा कि उस दौरान पीथमपुर में लाखों की संख्या में पौधरोपण कराया, जिससे पर्यावरण में सुधार आया। निकेतन सेठी ने कहा कि कोरोना काल ने डिजीटल ट्रांजेक्शन का नया स्वरूप सामने आया। सबसे अधिक ऑनलाइन ट्रांजेक्शन हुए। वर्क फ्राम होम का चलन बढ़ा, लोगों ने ऑनलाइन प्रोडक्ट खरीदे। स्वप्निल व्यास ने कहा कि कोरोना काल ने तुलसी, गिलोय, आंवला और आयुर्वेदिक औषधियों की कीमत समझाई। पत्रकार हर्षवर्धन प्रकाश और अर्जुन रिछारिया ने भी कोरोना काल के सकारात्मक बदलावों पर प्रभावी विचार व्यक्त किए और आने वाले खतरों से भी आगाह किया। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत संस्था के मोहन अग्रवाल, गोविंद मंगल, कमल कलवानी, पवन अग्रवाल, अरविंद जायसवाल आदि ने किया। संचालन किया रंगकर्मी संजय पटेल ने और आभार माना संस्था के संयोजक ओमप्रकाश नरेडा ने।