इंदौर । बेटियां भले ही समाज में पराया धन मानी जाती हो, उनका रिश्ता अपने पैतृक परिवार से कभी नहीं छूटता। बेटियां ही हैं जो दो परिवारों को जोड़ सकती हैं। जिसका कोई नहीं होता उसका साथी और सारथी सांवरिया सेठ होता है। नानीबाई के मायरे की कथा भारतीय संयुक्त परिवार की परंपराओं का उत्कृष्ट प्रमाण हैं जहां भगवान अपने भक्त की प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए खुद चले आते हैं। अन्नपूर्णा रोड, देवेंद्र नगर स्थित नीमा उद्यान पर आज से प्रारंभ नानी बाई के मायरे की कथा के शुभारंभ सत्र में संबोधित करते हुए प्रख्यात भागवताचार्य पं. पवन तिवारी ने उक्त प्रेरक बाते कही। श्रीनाथजी सत्संग सेवा समिति के तत्वावधान में आज से प्रारंभ मायरे की इस कथा का श्रीगणेश संयोजक शिवांग-राजनंदिनी नीमा, मुकेश वल्लभदास नीमा, नंदकिशोर गोविंदादास नीमा आदि द्वारा व्यासपीठ पूजन के साथ हुआ। कथा मंगलवार 2 फरवरी को दोपहर 2 से सांय 6 बजे तक और बुधवार 3 फरवरी को सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक होगी। पं. पवन तिवारी यहां प्रतिदिन मायरे की कथा के विभिन्न प्रसंगों का भावपूर्ण एवं संगीतमय चित्रण करेंगे। मायरे की कथा में विभिन्न प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण करते हुए पं. तिवारी ने कहा कि ससुराल की संकीर्ण मानसिकता में डूबी यह कथा उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सबक है जो बहू को बेटी का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं है। बहू को बेटी मान लें तो सास-बहू के रिश्तों में माधुर्य घुल जाएगा। आज भी अनेक परिवार ऐसे हैं जो बहू को बेटी से भी बढ़कर स्नेह और सम्मान देते हैं। ऐसे परिवारों का तो सार्वजनिक सम्मान होना चाहिए। बेटी के मन में दो परिवारों की जिम्मेदारी का बोध होता है। नानीबाई केवल मायरे की कथा का पात्र नही बल्कि भारतीय समाज के प्रत्येक परिवार की बेटी हैं, कुछ अपवाद अवश्य हो सकते हैं।
संलग्न चित्र - देवेंद्र नगर स्थित नीमा उद्यान पर आयोजित नानीबाई रो मायरो कथा में संबोधित करते आचार्य पं. पवन तिवारी। दूसरे चित्र में उपस्थित श्रोता।
● पालीवाल वाणी ब्यूरों-Anil bagora_Sunil paliwall...✍️
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