इंदौर : किसी भी अनुष्ठान की सफलता के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं – एकाग्रता, मौन और अनुशासन। भागवत वेदों का सार है। यह साक्षात भगवान कृष्ण का स्वरूप है। भागवत को कल्पवृक्ष भी कहा गया है। भागवत कथा हम बरसों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि समझे कितना है। कलियुग में मनुष्य के पास धैर्य, संयम और सहनशीलता का अभाव है। धर्म में भी कमी आती जा रही है। भौतिक साधनों के प्रति हमारी रूचि बढ़ रही है। भागवत हमारे मन की मलीनता को दूर कर उसे शुद्ध करती है। भागवत आत्म निरीक्षण का सबसे अच्छा उदाहरण है। चिंतन करें कि हम भगवत तत्व प्राप्ति के लायक हैं या नहीं।
ये दिव्य और प्रेरक विचार है वृंदावन धाम के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद की शिष्या साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने आज अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र द्वारा 25 कालोनियों के श्रद्धालुओं की भागीदारी में आनंद नगर स्थित आनंद मंगल परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के शुभारंभ सत्र में व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व शिवमोती नगर स्थित शिव मंदिर से भागवतजी की दिव्य शोभायात्रा बैंड-बाजों, ढोल-ताशों, गरबा एवं भजन मंडलियों की सुर एवं स्वर लहरियों के बीच निकली। एक रथ पर महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद एवं साध्वी कृष्णानंद सवार थे।
मार्ग में अनेक स्वागत मंचों से कहीं पुष्प वर्षा, तो कहीं सूखे मेवों और ठंडाई तथा फलों का वितरण कर स्वागत किया गया। कथा संयोजक राजेन्द्र समाधान एवं अशोक मित्तल ने बताया कि व्यासपीठ का पूजन विधायक आकाश विजयवर्गीय के आतिथ्य में संगठन के अध्यक्ष मृदुल अग्रवाल, महामंत्री सुनील अग्रवाल, अखिलेश गोयल, अतुल अग्रवाल, अरुण बागड़ी, पिंकी गोयल, राजेन्द्र अग्रवाल टीटू, महेश अग्रवाल, राकेश अग्रवाल, विकास मित्तल आदि ने किया। महिला मंडल की ओर से श्रीमती पुष्पा-जगदीश मित्तल, रूक्मणी देवी, अर्चना अग्रवाल, शांतिदेवी गोयल, अनीता अग्रवाल, उषा-राजेन्द्र अग्रवाल, सीमा बंसल आदि ने साध्वी कृष्णानंद की अगवानी की। समाजसेवी प्रेमचंद गोयल एवं श्याम मोमबत्ती भी उपस्थित थे। व्यासपीठ के सामने गोवर्धन पर्वत एवं भगवान श्रीनाथजी की मनोहारी झांकी भी बनाई गई है। कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के लिए शामियाना, शीतल पेयजल, पंखे, कूलर, रोशनी, साफ-सफाई, प्राथमिक चिकित्सा, सुरक्षा एवं सेनेटाइजर सहित समुचित प्रबंध किए गए हैं। कथा 8 मार्च तक प्रतिदिन दोपहर 3 से 6 बजे तक होगी।
श्रीमत भागवत की महत्ता बताते हुए साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि हमारे पास संसार के सारे कार्यों के लिए समय है, लेकिन भगवान की भक्ति, पूजा, और जप-तप के लिए या तो समय नहीं है या वहां भी हम जल्दबाजी करते हैं। याद रखें कि भवसागर को पार करने के लिए हमें कुछ न कुछ पुरुषार्थ करना ही पड़ेगा। पुराने समय में यज्ञादि अनुष्ठानों से भगवान की प्रसन्नता का आकलन किया जाता था, लेकिन कलियुग में नाम स्मरण को ही पर्याप्त माना गया है। चौरासी लाख योनियों में हम अब तक खाने-पीने और सोने तक का जीवन ही बिताकर आए हैं। दुर्लभ मनुष्य जन्म मिला है तो संसार के भौतिक साधनों में सुख ढूंढने के बजाय भगवत भक्ति में भी मन लगाएं। बंगला, गाड़ी, पद, पैसा, प्रतिष्ठा, बैंक बैलेंस- ये सब भागवत की दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं कहे जा सकते। श्रेष्ठ है तो केवल भगवत नाम। जैसे विदेशों में जाने पर वहां की मुद्रा लेना पड़ती है, वैसे ही ऊपर जाने पर नीचे की मुद्रा काम नहीं आएगी। जब तक जीवन है सदकर्मो में लगे रहें औऱ मनुष्य जीवन को सार्थक बनाएं।