इंदौर : इंदौर के पास चापड़ा में नया एयरपोर्ट (new airport) बनाए जाने की योजना खटाई में पडऩे के बाद अब दो नए नाम सामने आए हैं। इनमें इंदौर (Indore) जिले के ही देपालपुर के पास स्थित बनेडिय़ा और धार जिले के दिग्ठान (Digthan) के नाम शामिल हैं। दोनों ही स्थानों पर एयरपोर्ट बनाए जाने के लिए सर्वे करने के लिए 21 दिसंबर को एयरपोर्ट अथोरिटी ऑफ इंडिया की एक्सपर्ट टीम (Expert team of Airport Authority of India) इंदौर आ रही है। लेकिन जिन दो बिंदुओं के आधार पर चापड़ा के नाम को खारीज किया गया है, उनमें से प्रमुख दूरी की बात करें तो दोनों नए नाम भी लगभग उतने ही दूर हैं। वहीं सरकारी जमीन की उपलब्धता भी कितनी है यह भी अभी स्पष्ट नहीं है।
उल्लेखनीय है कि इंदौर एयरपोर्ट (Indore Airport) पर लगातार बढ़ते यात्री और उड़ानों के दबाव को देखते हुए इंदौर के पास नया एयरपोर्ट बनाए जाने की योजना है। कहा जा रहा है कि नए एयरपोर्ट का मुख्य मकसद कार्गो परिवहन होगा। इसके लिए पहले देवास जिले के चापड़ा का नाम रखा गया था। यहां एएआई की टीम ने सर्वे भी कर लिया था। सर्वे में जिस जमीन की जरुरत बताई गई उसमें से सिर्फ 5 से 10 प्रतिशत ही सरकारी थी, बाकी निजी जमीन थी। कुछ समय पहले नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और सांसद शंकर लालवानी ने इस पर यह कहते हुए आपत्ति ली कि यह इंदौर से काफी ज्यादा दूर है।
इससे यहां आने-जाने वाले लोगों को परेशानी होगी, इतनी दूर आने-जाने में वाहनों के कारण प्रदूषण भी बढ़ेगा। साथ ही एक तर्क यह भी था कि ज्यादातर जमीन निजी होने के कारण इनके मुआवजे पर बड़ी राशि भी खर्च करना होगी। इसी आधार पर दो नए नाम सुझाए गए हैं। लेकिन खास बात यह है कि जो दो नए नाम सामने आए हैं दूरी के लिहाज से वे भी इंदौर से चापड़ा जितने ही दूर हैं। इंदौर से चापड़ा की दूरी जहां 53 किलोमीटर है, वहीं देपालपुर के बनेडिय़ा की दूरी 46 और धार जिले के दिग्ठान की दूरी 52 किलोमीटर है। इस लिहाज से देखें तो इन दोनों स्थानों पर भी एयरपोर्ट बनाए जाने से इंदौर से संपर्क उतना ही दूर होगा। आने जाने में वाहनों का प्रदूषण का जो मुद्दा उठाया गया था वह भी कम नहीं होगा।
एयरपोर्ट अथोरिटी की जो एक्सपर्ट टीम 21 दिसंबर 2022 को इंदौर आ रही है उसने आने से पहले ही मौसम विभाग से इन दोनों ही स्थानों पर पिछले 15 सालों की मौसम की जानकारी मांगी है। इसमें इन क्षेत्रों में आमतौर पर रहने वाली हवा की दिशा, गति, तापमान और बारिश के आंकड़े प्रमुख हैं। एक्सपर्ट्स की माने तो हो सकता है कि इन दोनों ही क्षेत्रों में सरकार के पास जमीनें उपलब्ध हो, लेकिन जमीन कहां चाहिए यह तय करने के लिए हवा की दिशा महत्वपूर्ण बिंदू होगा, क्योंकि हवा की दिशा के आधार पर ही रनवे की दिशा तय की जाती है और उससे लगकर अन्य सुविधाओं के लिए स्थान। हो सकता है कि किसी स्थान पर सरकारी जमीन हो, लेकिन अगर रनवे के हिसाब से जमीन की मांग कहीं और की होगी तो वहां भी चापड़ा जैसी दिक्कत आ सकती है।
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