नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संपत्ति के हिस्से (property share) की हकदारी के सिद्धांत (Principles of entitlement) पर जोर देते हुए कहा है कि शून्य और अमान्य विवाह से पैदा बच्चे (children born out of invalid marriage) भी पूर्वज की संपत्ति में वैध हिस्सेदारी के हकदार (Entitled to legitimate share in ancestor’s property) हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे बच्चों को वैध बच्चा माना जाएगा और संपत्ति में वैध हिस्सा तय करने के उद्देश्य से उन्हें समान (कॉमन) पूर्वज के विस्तारित परिवार के रूप में माना जाएगा।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। पीठ ने कहा कि एक बार जब समान (कॉमन) पूर्वज ने शून्य व अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैध संतान माना हो तो ऐसे बच्चे संपत्ति के उसी तरह हकदार होंगे जैसा वैध विवाह से पैदा बच्चे की तरह उत्तराधिकारी होंगे।
मामले के मुताबिक, मुथुसामी गौंडर (मृत) ने तीन शादियां कीं थी। जिनमें से दो शादियां अमान्य घोषित कर दी गईं। इन तीन शादियों में से गौंडर के पांच बच्चे हैं, चार बेटे और एक बेटी। वैध विवाह से पैदा हुए वैध पुत्र ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष संपत्ति के विभाजन के लिए मुकदमा दायर किया। अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने वैध विवाह के बच्चे के पक्ष में बंटवारे के मुकदमे का फैसला सुनाया।
ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए अमान्य विवाह से हुए बच्चों ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने उनकी अपील को खारिज कर दिया था। जिसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही मुथुसामी गौंडर के साथ अपीलकर्ता नंबर 2 और प्रतिवादी नंबर 2 के विवाह अमान्य हों लेकिन मुथुसामी गौंडर के पक्ष में विभाजित की गई काल्पनिक संपत्ति में मुथुसामी गौंडर के बच्चों को हिस्सा देने से इनकार करना कानून और तथ्य के हिसाब से अस्थिर है।