नई दिल्ली.
भारत सरकार का ताजा आंकड़ा दावा करता है कि देश में गरीबी अब सिर्फ 4 प्रतिशत रह गई है। यानी 142 करोड़ की आबादी में महज 5-6 करोड़ लोग ही गरीबी रेखा के नीचे बचे हैं, जबकि 12 साल पहले 2011-12 में यह आंकड़ा 29.3था। यह आकंडे नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSO) की ओर से जारी किए गए हैं।
इससे पहले जनवरी, 2025 में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने भी गरीबी को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया था। एसबीआई ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में शहर और गांवों में रहने वाले लोगों के बीच गरीबी कम हो रही है। एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश के इलाकों में फाइनेंशियल ईयर 2023-24 में गरीबी दर में कमी आई है। लेकिन एनएसओ के ताजा आंकड़े ने देश में बहस छेड़ दी है कि क्या ये आंकड़े सही हैं या सिर्फ कागजी हकीकत हैं?
न्यूज तक के मुताबिक, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSO) और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि के हवाले से यह आंकड़ा सामने आया है। रंगराजन समिति के 2014 के फॉर्मूले के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहर में अगर कोई व्यक्ति रोजाना 47 रुपये (महीने में 1,410 रुपये) से ज्यादा कमाता है तो वह गरीब नहीं है।
गांव में यह सीमा 32 रुपये रोजाना (960 रुपये महीना) तय की गई है। ऐसे में आज की महंगाई को देखते हुए सभी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या शहर में मात्र 47 रुपये में और गांव में महज 32 रुपये में एक दिन का गुजारा किया जा सकता है? सर्वे के मुताबिक, कई राज्यों में गरीबी में काफी कमी आई है। आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा शासित राज्यों में लगभग गरीबी खत्म हो गई है। हरियाणा में एक फीसदी से भी कम लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं।
वहीं, बिहार जैसे पिछड़े राज्य में गरीबी मात्र 4.4 फीसदी रह गई है। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि अगर वाकई बिहार में इतनी कम गरीबी है तो विपक्ष बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा क्यों उठा रहा है? एसबीआई की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि बिहार में गरीबी के आकड़ों में शानदार सुधार हुआ है।
लेकिन, बिहार में सीएम नीतीश कुमार के सर्वे ने 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को गरीब बताया था तो फिर 4.4का दावा कैसे सच हो सकता है? और अगर गरीबी इतनी कम है तो देशभर में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन क्यों बांटा जा रहा है?
वहीं, जब डॉ. शमिका रवि से पूछा गया कि अगर गरीबी 4है तो मुफ्त अनाज और मनरेगा क्यों? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘पहले अनाज गोदामों में सड़ता था, अब बांटा जा रहा है। मनरेगा से मौसमी बेरोजगारी में मदद मिलती है।