नई दिल्ली :
दरअसल, कोर्ट जिस मामले को सुन रहा था, उसमें भी दंपति ने प्रेम विवाह ही किया था. वकील की तरफ से इसकी जानकारी मिलने पर जज गवई ने यह टिप्पणी की. हालांकि, इस टिप्पणी को पूरी तरह जज की व्यक्तिगत टिप्पणी माना जाएगा. यह कोई आदेश नहीं है. कोर्ट जिस मामले को सुन रहा था उसमें उसने पति-पत्नी को मध्यस्थता के ज़रिए विवाद सुलझाने का निर्देश दिया है.
बार एंड बेंच के मुताबिक, हालांकि कोर्ट ने कहा कि हाल के एक फैसले को देखते हुए उसकी सहमति के बिना तलाक दे सकती है. दरअसल शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शादी का जारी रहना असंभव होने की स्थिति (irretrievable breakdown of marriage) में वह अनुच्छेद 142 के तहत अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकता है.