चित्तौड़गढ़. आज श्री नीलिया महादेव गौशाला द्वारा शास्त्रोचित रावण दहन किया गया तथा कामधेनु रथ यात्रा प्रारंभ की गई. जिले के 1008 भगवान चारभुजा नाथ के मंदिरों तक यह रथ पहुंचेगा तथा दीपावली के अवसर पर प्रत्येक मंदिर में 108 गौमय दीपक प्रज्वलित कर एक अदभुत दीपोत्सव मनाया जायेगा.
पहली बार रावण का सम्मान : हर साल दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया जाता है. एक तरह से रावण की मृत्यु का जश्न मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पहली बार रावण का सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार का कार्यक्रम हुआ. गाय के गोबर से बने 8 फीट के पुतले को बिस्तर पर लेटकर पुरे विधि-विधान से अंतिम विदाई दी. गोनंदी संरक्षण समिति और श्री नीलिया महादेव गौशाला समिति ने रावण की विदाई दी. सनातन और शास्त्रों के अनुसार आज दोपहर शहर के पदन पोल इलाके में रावण को विदा किया. इस दौरान सैंकड़ो लोगों ने भावूक होकर पहली बार अद्भूत नजारा देखा.
सनातन धर्म के अनुसार अंतिम विदाई : कामधेनु दीपावली महोत्सव समिति के संयोजक कमलेश पुरोहित ने पालीवाल वाणी को बताया कि गाय के गोबर और अन्य पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से करीब 8 फुट का रावण का पुतला बनाया. आज तक रावण का पुतला खड़ा कर जलाया जाता है. यह पहला मौका है, जब पुतला लेटा हुआ है, सनातन परंपरा के अनुसार विदाई कार्य संपन्न कराएं. पुजारी ने आगे बताया कि रावण एक वीर योद्धा और ब्राह्मण था. शत्रु भी हो तो भी अंतिम संस्कार हमेशा सम्मान के साथ करना चाहिए. रावण की मृत्यु का जश्न मनाने की परंपरा के विपरीत, हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार समारोह किया.
शास्त्रों में नहीं है रावण दहन मनाने की कोई परंपरा : कामधेनु दिवाली महोत्सव समिति के संयोजक पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि देश में लंबे समय से रावण जलाने की गलत परंपरा चल रही है. इस प्रथा को बदलने की जरूरत है. रावण एक ब्राह्मण, योद्धा और वीर था. रामायण या शास्त्रों में कहीं भी रावण दहन पर उत्सव या आतिशबाजी का कोई उल्लेख नहीं है. उन्होंने कहा कि बाजारवाद के इस दौर में रावण का जलना तमाशा बन गया है. समिति का प्रयास है कि दशहरे की सही और सार्थक परंपरा को आगे बढ़ाया जाए.