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Raksha Bandhan 2023 subh mahurat : इस साल रक्षाबंधन में कब तक रहेगा भद्रा का साया? जानिए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषी Published by: Pushplata Updated Sat, 12 Aug 2023 02:30 PM
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Raksha Bandhan 2023: हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का पर्व बहुत ही खास होता है। भाई-बहन को समर्पित इस पर्व को पूरे देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाईयों के कलाई में धागा बांधकर लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। वहीं भाई बहनों को उपहार देने के साथ उसकी रक्षा का संकल्प लेते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इस साल 30 और 31 अगस्त दो दिन पड़ रहा है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि कभी भी बहनें भाई को राखी भद्रा काल में नहीं बांधना चाहिए। इससे अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। जानिए इस साल रक्षाबंधन में कब से कब तक रहेगा भद्रा का साया।

रक्षाबंधन 2023 तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 30 अगस्त 2023, बुधवार को सुबह 11 बजे से हो रहा है, जो 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 07 मिनट पर समाप्त हो रही है। इसलिए इस बार दो दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है।

रक्षाबंधन में कब से कब तक भद्रा का साया?

हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा का साया 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर रात 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। इस साल भद्रा धरती में हगी वास कर रही हैं। इसलिए इस अवधि में राखी बांधना अशुभ माना जा रहा है। इसलिए राखी 30 अगस्त को रात 09 बजकर 01 मिनट से बांध सकते हैं, तो 31 अगस्त को सुबह तक बांधी जाएगी।

रक्षाबंधन भद्रा पूंछ: 30 अगस्त की शाम 05 बजकर 30 मिनट से शाम 06 बजकर 31 मिनट तक
रक्षाबंधन भद्रा मुख: 30 अगस्त 2023 की शाम 06 बजकर 31 मिनट से रात 08 बजकर 11 मिनट तक

रक्षाबंधन 2023 में राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

30 अगस्त 2023 को रात 9 बजकर 1 मिनट से 11 बजकर 13 मिनट तक
31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक ही बांधे।
अमृत मुहूर्त- सुबह 05 बजकर 42 मिनट से 07 बजकर 23 मिनट तक।

कौन है भद्रा?

भद्रा भगवान सूर्य और माता छाया की पुत्री है। इसके साथ ही वह शनिदेव की बहन है। राक्षसों की नाश के लिए भद्रा की उत्पत्ति हुई थी। लेकिन जन्म के समय ही वह पूरे संसार कोअपना निवाला बनाने वाली थीं। ऐसे में हर तरह के मांगलिक, शुभ, यज्ञ आदि कार्यों में विघ्न आने लगे। ऐसे में बाद में ब्रह्मा जी के समझाने में उन्हें 11 कारणों में सातवें करण विष्टि करण में जगह दी गई। जहां आज भी वो विराजमान है।

कैसे निर्धारित होता है भद्रा का साया?

हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा का वास तीन लोक यानी स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी पर होता है। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में विराजमान होते हैं, तो भद्रा पृथ्वी पर वास करती है। पृथ्वी में वास करते समय भद्रा का मुख सामने की ओर होता है। इस कारण पृथ्वी लोक में जब भद्रा का वास होता है, तो किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कामों को करने की मनाही होती है, क्योंकि इसका अशुभ फल प्राप्त होता है।

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