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दीपोत्सव में जगमगाती जिंदगी : डॉ. रीना रवि मालपानी

आपकी कलम Published by: डॉ. रीना रवि मालपानी Updated Sun, 23 Oct 2022 08:49 PM
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करे कर्मो का अनूठा दीप प्रज्वलन, तम रूपी दनुज का उन्मूलन।

दीपक का मयूख प्रतीक है आस, सूक्ष्म तरणि का अनुपम विश्वास।।

भारतीय संस्कृति की अलौकिक सुंदरता भी विचारणीय है। पूरे वर्ष त्यौहारों का अनवरत क्रम दिखाई देता है। प्रत्येक त्यौहार कुछ नवीन शिक्षा एवं जीवन को नए उल्लास के रंग से जोड़ता है। निराशा और अवसाद से दूर हर समय अनवरत प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश देता है। दीपोत्सव हमनें प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में मनाया था। जब भगवान विष्णु ने श्रीराम रूप में अवतार लिया तब सम्पूर्ण जीवन मात्र संघर्ष की अनवरत यात्रा की। अनेकों विषाद ने श्रीराम के जीवन का घेराव किया, परंतु श्रीराम ने सहजता से प्रत्येक संघर्ष को स्वीकार कर शिक्षाओं के अनेक क्रम अपने अवतार में जोड़े। कहा जाता है कि राम नाम स्वयं कल्पवृक्ष के समान है। प्रभु श्रीराम के आगमन की खुशी में हम दीपोत्सव मनाते है और राम नाम की आध्यात्मिक पूँजी भी बढ़ाते है।

हर्ष विषाद चित्त के विकल्प, कौशल्यानंदन विजयपथ के संकल्प।

भूपति राघव आत्मीक शौर्य के प्रतीक, मर्यादापूर्ण शील के रूपक।।

अर्थ के बिना जीवनयापन संभव नहीं है, इसीलिए सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु के साथ सदैव धन की देवी माँ लक्ष्मी रहती है। यही अर्थ की देवी सदैव श्रीहरि नारायण की सेवा में उनके चरण दबाती दिखाई देती है, क्योंकि श्रीहरि विष्णु सदैव धर्म की रक्षा करते है और माता भी बिना भेदभाव के सब पर अपनी कृपा बरसाती है। विष्णु प्रिया लक्ष्मी के आगमन को आतुर भक्त कुछ समय पूर्व से ही उनके स्वागत की तैयारियाँ प्रारम्भ कर देते है। उत्सव में रंगा हुआ परिवार माँ के आगमन पर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ करने के लिए प्रयासरत रहता है। 

भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य, उत्सव का ह्रदयगम प्राकट्य।

अल्पना के विपुल बहिरंग, इहलोक में हरिवल्लभा  के आविर्भाव के संग।।

दीपावली का पर्व हमें जीवन में प्रकाश की कीमत समझाता है। दीपावली में अमीर व्यक्ति घी के दीप, रंग-बिरंगी लाइट और केंडल्स प्रज्वलित करता है, वहीं गरीब वर्ग आशा के दीप को जीवन में जलाता है। हर बार अपने अथक परिश्रम से जीवन में तम का विनाश करने की ओर अग्रसर होता है। दीपोत्सव हमें दीपक की तरह हमेशा देदीप्यमान और प्रकाशवान देने की प्रेरणा देता है। नन्हा सा प्रकाश भी कैसे अंधकार का विनाश कर सकता है, यह हमें दीप की ज्योति सिखाती है। दीपक अपना स्वभाव किसी भी परिस्थिति में नहीं बदलता। वह स्वयं अस्तित्व समाप्त कर भी दूसरों के जीवन को प्रकाशवान बनाता है।

दीपक का मयूख प्रतीक है आस, सूक्ष्म तरणि का अनुपम विश्वास।

आस्था का प्रकाशवान,आनंदमय पर्व,आदरयुक्त मंगलभावना उत्तरोत्तर विकास के संग।।

प्रकाश के छोटे-छोटे रूप भी सृष्टि की सुंदरता को और भी बढ़ा देते है। इन त्यौहार से हम तम का विनाश कर अपने जीवन में भक्ति की अविरल धारा भी प्रवाहित कर सकते है। त्यौहार में खुशियों के साथ स्वयं को एवं अपने बच्चों को ईश्वरीय अनुभूति से जोड़े। इस दुनियों में यदि दु:ख की पुकार के समय भी मदद के लिए कोई तत्पर रहता है तो वह है ईश्वर, तो क्यों न दीपोत्सव में इस लौकिक जगत में रहकर हम माता से अलौकिकता का आशीर्वाद प्राप्त करें।

  • डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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