इंदौर भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारियों की लूट डकैती का अड्डा है, पिछले 50 सालों से सबसे ज्यादा भू -कॉलोनी माफिया नेताओं जमीनों की हेर फेर करने में कलेक्टर अपनी मोटी वसूली कर अवैध कॉलोनी कटवाने में अपनी मूक भूमिका अदा करता है.
जब समाचार पत्र में विज्ञापन छपते हैं,नक्शे प्रकाशित होते हैं, प्लाटों की रजिस्ट्री होती हैं. पटवारी, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार, एडीएम, एसडीएम, डीएम, तक सब नगर निगम आयुक्त से लेकर सफाईकर्मी, दरोगा, कॉलोनी काटते बनते देखते रहते हैं.
चुपचाप वसूली करते रहते हैं, जब कॉलोनी बस जाती है तो फिर अवैध घोषित कर मोटी मांग की जाती है और वसूली में सब लगे रहते हैं, जो लोग वहां जीवन भर की कमाई व ऋण लेकर प्लाट खरीदकर मकान बना लेते हैं, जैसे मकान बनते जाते हैं. कमाई की रकम बढ़ती जाती है. इस बीच आये गये कलेक्टर अपना हिस्सा खा कर खा खिसकते रहते हैं.
फिर जब लेन देन का सौदा नहीं पटता तो उन कॉलोनीयों को अपनी बहादुरी दिखाने, दूसरे बुलडोजर चला कर जमींदोज करके लोगों को बेघर कर दिया जाता है. दूसरी तरफ वह नेता भू कॉलोनी माफिया यह सब कर्म करते-करते अगर बड़ा नेता बन जाता है. तो उसकी सारी कालोनियां, खदानें, बहुमंजिला वैध हो जाती हैं.
इंदौर जैसी नगरी में कोई भी कलेक्टर जो आता है मुफ्त में नहीं आता. लगभग एक अरब रु महीना उसे बैठने वालों को मुख्यमंत्री और ऊपर के अधिकारियों वर्तमान में मोदी और अमित शाह को पहचाने पड़ते हैं. मोदी अमित शाह और पूरी भेड़िया झुंड पार्टी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और पूंजीपति मित्रों की रखैल होने के उनसे मोटा कमीशन खाकर उनके लाभ के लिए उनकी सारी प्रतिद्वंदियों छोटे व्यापारिक उद्योगों को आपने देखा पिछले 10 सालों में आते ही साथ देश के छोटे उद्योगों व्यवसाईयों को खत्म करने सफाई, कैशलेस, नोटबंदी, जीएसटी और तालाबंदी के बहाने कैसे समाप्त किया जा रहे हैं.
अभी नया कलेक्टर आशीष सिंह जो आया और हर्षिका सिंह नेताओं के सारे पर नाच कर कभी स्मार्ट सिटी के नाम पर कभी सड़क चौड़ीकरण करने के नाम पर बड़े-बड़े बसे बसाए बाजारों को नष्ट करने का षड़यंत्र कर रहे हैं. सौंफ के नाम पर व्यापारी की फैक्ट्री तोड़ेंगे और वह सारे आका जो पिछले 50 साल से शिमला मटर के नाम पर साधारण मटर को पानी में भिगोकर फ्रीजर में रख और रंग करके नई ताजी हरी मटर बनाकर बेंच रहे हैं. उनका कुछ नहीं हो रहा.
कानूनन खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पास और कलेक्टर के पास में भी जो अपने आप को कानून से ऊपर समझता है. कानून उसकी रखैल है. अपने आकाओं के इशारे पर फैक्ट्री तोड़ने बुलडोजर चलाने मजदूरों को बेरोजगार करने भूख से मारने का भी षड्यंत्र कर रहे हैं. अगर सौंफ में पिछड़े पॉकेट कीइसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अपने आकाओं और नौ के नौ के इबीएम की जालसाजी से जीते हुए विधायकों के फायदे के लिए, व्यापारियों को लूटने डराने धमकाने और वसूली करने के लिए सौंफ का नमूना लेकर उसको आपको प्रयोगशाला में भेजना चाहिए. ना कि उसकी फैक्ट्री तोड़ने के लिए आपको खुला अधिकार मिल गया.
आप कौन हैं? वैज्ञानिक हैं. जो नमूना देखते ही आपको वह घातक दिखने लगा. फिर आपने अगर नमूना भेजा तो उसकी 7 दिन में जांच की रिपोर्ट भी आ गई. जबकि दूसरे नमूनों के रिपोर्ट जहां यह लाखों रुपए का खेल कर लेता है मनीष स्वामी और दूसरे खाद्य सुरक्षा अधिकारी तो यहीं बैठकर खराब रिपोर्ट भी अच्छी करवा कर मंगवा ली जाती है.
साधारण का भोपाल की सरकारी खाद्य प्रयोगशाला मेंलाखों नमूने लंबित रहते हैं, स्टाफ न होने के कारण चार छह महीने तक रिपोर्ट नहीं आती. जिस कानून से आपकी नियुक्ति हुई आपके कार्य करने के अधिकार मिलेऔर इसके लिए आपको जनधन से वेतन मिलता है. उन कानूनों की सीमा में रहिए.
और व्यापारियों जागिए इकट्ठे होइये. आवाज उठाइए सड़कें जाम कीजिए. खाद्य सुरक्षा अधिकारी, कलेक्टर जिसको सबसे ज्यादा डर जिला एवं सत्र न्यायालय से लगता है. उसमें शासकीय पद का दुरुपयोग करते हुए डराने धमकाने जबरन वसूली के प्रकरण लाद दीजिए.
खाद्य सुरक्षा मानिक अधिनियम 2006 में कहीं भी नहीं लिखा कि आप किसी की फैक्ट्री तोड़ सकते हैं. आपको नमूने लेकर फेल होने पर, व्यापारी को मनपसंद प्रयोगशाला से भी जांच करवाने का हक है, पर नियत कानूनी कार्रवाई करने का हक है. नेताओं को घसिटिये और उनकी शिकायत और कोर्ट में लगाइए.
अनिका हर दिन इंदौर के व्यापार को खत्म करने के नए-नए षड्यंत्र यह कलेक्टर कमिश्नर खाद्य सुरक्षा अधिकारीकरते रहेंगे और इन्हें कानून से ही नहीं. इनकी अकाल विदाई के लिए प्रभु से प्रार्थना भी कीजिए उनके नाम के मंगलवार और शनिवार को पीपल के नीचे दिए लगाइये.
वनवे के नाम पर एमजी रोडऔर जवाहर मार्ग का पूरा व्यवसाय चौपट किया जा रहा है. इनको वसूली दे...दोगे सब ठीक हो जाएगा. अब सराफा चौपाटी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं और यहां का मीडिया तो सत्ता के आंगन की नचनिया है.
सभी दैनिक समाचार पत्रों को टीवी मीडिया चैनल को तो रोज प्रदेश व केंद्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रखेलों की सरकार जनता से 1500 से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए गए करों से लूटे गए जीएसटी से 2-4 पेज के विज्ञापन दे रहे हैं. चाहे आप नहीं कर्मचारियों अधिकारियों को देने के लिए समय पर वेतन हो ना हो सरकार चलाने के लिए हजारों करोड़ों का कर्ज लिया जा रहा हो पर फर्जी विज्ञापन बांटने छापने में कोई कमी नहीं होती.
इसलिए यह सब भी भू कॉलोनी माफिया पिल्ले सब देशी व्यापार व्यवसाय उद्योग को खत्म करनेऔर बहुराष्ट्रीय कंपनी के हिसाब से नाचने के लिए तैयार हैं. इसलिए ये जनहकों व हितों की नहीं सरकार जो इन टुकड़ खोरों को टुकड़े डालकर छापने भोकने के लिए बोलता है. बेचारे बोलते हैं, जनता कल की मारती आज मरे...उनकी भला से आवश्यकता इस बात की है कि जनता छोटे व्यापारियों दुकानदारों उद्योगों को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अपने हकों की लड़ाई के लिए सदैव मुस्तैद रहकर कानून के मैदान में जंग के लिए तैयार खड़े रहना होगा.
सबसे पहले सारे व्यापारियों उद्योगों बाजारो मंडियों में व्यापार करने के लिए एकत्रित होकर वकीलों की टीम तैयार रखनी होगी. बेशक मिलावट के खिलाफ हैं. गुलावतियों को सहयोग भी नहीं करते हैं. परंतु जब भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय का खाद्य प्रशासन यह कहता है की 96.4बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा पैक किया हुआ खाद्य पदार्थ घातक कीटनाशक व प्रिजर्वेटिव रसायनों के साथ जानवरों की हड्डी रक्त व अन्य पदार्थों की मिलावट युक्त है.
सूचना के अधिकार में जानकारी मांगने पर यही खाद्य एवं औषधि विभाग क्यों नहीं बताताकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को शॉपिंग मॉल से हर महीने खाद्य वस्तुओं के पैकेज फूड के कितने नमूने लिए जाते हैं. जब स्पष्ट है कि खाद्य पदार्थों के पैकेट पर उसकी समय बाधित दिनांक के बाद उसका उपयोग नहीं किया जाता, तो सारे शॉपिंग मॉल उसे पर 25 और 50का डिस्काउंट देकर अलग-अलग कर क्यों बैचते हैं?
ऐसे अवैधानिक कृत्यों में वह सारे शॉपिंग मॉल बंद क्यों नहीं किए गए? हरामखोरों वहां से महिना मिल रहा है. इसलिये चुप रह उनका व्यापार बढ़ाने छोटे व्यापारी में डर धमक से वसूली करने के लिए किसी भी एक व्यवसाय से सौदा ना पटने पर उस पर कार्रवाई करने फैक्ट्री तोड़ने का षड्यंत्र भी कानूनी अपराध है.
और कानून चाहे कलेक्टर हो खाद्य सुरक्षा अधिकारी हो कमिश्नर हो प्रधानमंत्री हो सब पर एक जैसे ही लगते हैं. तो व्यापारियों इनके खिलाफ भी कोर्ट में केस लगाओ. सबसे पहले दुकानदारों व्यापारियों उद्योगों को चाहिए कि वह सारे ऑनलाइन पेमेंट लेनदेन बंद कर दें.
हो सके सारी खरीद बिक्री नगद में करें. क्योंकि यही कंपनियां खासतौर से गूगल और अमेजॉन आपका डाटा का दुरुपयोग कर सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को कहकर बहानों से छापे डलवा कर आपकी दुकानदारी चौपट करने पर तुले हैं. इससे बचें.
अपनी व्यावसायिक केदो परस्पष्ट ढंग से तख्ती टांग दें कि कृपया नगद में लेनदेन का हम स्वागत करते हैं कृपया ऑनलाइन भुगतान कर आप अपना और हमारा डाटा डकैतो के चंगूल से बचा परस्पर सुरक्षित रहें।
● निवेदक लेखक एवं प्रस्तुति : प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र-इंदौर
आप चाहें तो मेरे कानूनी ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं।
M. 9479535569